रायपुर. पापांकुशा एकादशी आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहते हैं. इस एकादशी का महत्त्व स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था. इस एकादशी पर भगवान पद्मनाभ की पूजा की जाती है. पापरूपी हाथी को इस व्रत के पुण्यरूपी अंकुश से वेधने के कारण ही इसका नाम पपांकुशा एकादशी हुआ है. इस दिन मौन रहकर भगवद स्मरण तथा भोजन का विधान है. इस प्रकार भगवान की अराधना करने से मन शुद्ध होता है तथा व्यक्ति में सद्-गुणों का समावेश होता है.

पापांकुशा एकादशी कथा

पुराणों के अनुसार विंध्याचल पर्वत में क्रोधना नामक क्रूर शिकारी रहता था. उस शिकारी ने जीवनभर  दुष्टता से भरे काम ही किए थे. शिकारी के अंतिम समय में  यमराज अपने सैनिक को उसे लाने भेजते हैं. मृत्यु से क्रोधना को बहुत डर लगता था. इसलिए वे अंगारा नामक ऋषि से मदद की गुहार करता है. उस समय ऋषि ने क्रोधना को पापांकुशा एकादशी व्रत के बारे में बताते हुए रखने को कहा. पापांकुशा एकादशी का व्रत रख उसने भगवान विष्णु की उपासना की. ऐसा करने से उसे सभी पापों से मुक्ति मिल गई.

व्रत विधि

इस एकादशी व्रत का नियम पालन दशमी तिथि की रात्रि से ही शुरू करना चाहिए तथा ब्रह्मचर्य का पालन करें. एकादशी के दिन सुबह नित्य कर्मों से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की शेषशय्या पर विराजित प्रतिमा के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लें. इस दिन यथा संभव उपवास करें. उपवास में अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए. संभव न हो तो व्रती एक समय फलाहार कर सकता है. इसके बाद भगवान श्पद्मनाभश् की पूजा विधि-विधान से करनी चाहिए. यदि व्रत करने वाला पूजन करने में असमर्थ हों तो पूजन किसी योग्य ब्राह्मण से भी करवाया जा सकता है.

भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराना चाहिए. स्नान के बाद उनके चरणामृत को व्रती अपने और परिवार के सभी सदस्यों के अंगों पर छिड़के और उस चरणामृत का पान करे. इसके बाद भगवान को गंध, पुष्प, धूप, दीपक, नैवेद्य आदि पूजन सामग्री अर्पित करें. विष्णु सहस्त्रनाम का जप एवं उनकी कथा सुनें. रात्रि को भगवान विष्णु की मूर्ति के समीप हो शयन करना चाहिए और दूसरे दिन यानी द्वादशी के दिन वेदपाठी ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देकर आशीर्वाद प्राप्त लेना चाहिए. इस प्रकार पापांकुशा एकादशी का व्रत करने से दिव्य फलों की प्राप्ति होती है.