बीजेपी की तरह यंग जिलाध्यक्षों की खोज
कांग्रेस ने भी बीजेपी की तरह युवा जिलाध्यक्षों की खोज शुरू कर दी है। ये केवल फौरी खबर नहीं है, बल्कि ये तलाश तेजी से की जा रही है। जिस तरह भोपाल-इंदौर समेत दूसरे शहरों में नौजवान चेहरे लाकर पार्टी ने तरावट का नया दांव खेला है, कांग्रेस ने भी रणनीति बदली है। कमलनाथ के निर्देश पर उनके सिपहसालारों ने महानगरों में नयी उम्र के युवा को जिला अध्यक्ष बनाने की खोजबीन शुरू कर दी है। इंदौर और भोपाल में तो पैनल तैयार भी किया जा चुका है। वक्त को भांपकर ऐलान करने की तैयारी है। इस तलाश में खास फोकस इस बात का है कि नौजवान का कोई कारोबार नहीं हो और कांग्रेस के प्रति समर्पण पूरा हो। मायने निकालना मुश्किल नहीं है, कारोबार नहीं होगा तो बीजेपी किसी तरह का दबाव नहीं डाल सकेगी। कांग्रेस के प्रति समर्पण होगा तो डिगने की संदेह भी नहीं होगा। यानी कांग्रेस ठोंक-बजाकर, तेज़-तर्रार नेताओं की नई कतार खड़ा करने की तैयारी शुरू हो गई है। इस तैयारी से आने वाले समय में कांग्रेस के चुनावी तेवर का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

20 की धमक, फाइलों से हट रही धूल
सीएम शिवराज के तेवर आप फिर देख चुके हैं। जिलों के दौरों में अफसरों की लापरवाही पर एक्शन हो रहा है। इधर सस्पेंड के लिए कहा नहीं कि ऑर्डर जारी हो जाता है। अब बारी है सीएम की कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस की, जो 20 सितंबर सोमवार को होने वाली है। इसे लेकर सरकारी दफ्तरों में ज़बरदस्त तेजी देखी जा रही है। पुरानी से पुरानी फाइलों से धूल हटाकर कंपलीट किया जा रहा है। सीएम ने पिछले दिनों ही निर्देश दिए हैं कि एक फाइल एक अफसर के पास तीन दिन से ज्यादा नहीं रुकनी चाहिए। खौफ खा रहे हैं तो ज़मीन के वो अफसर जिन्हें सीएम साहब ने सड़क सुधारने के निर्देश दिए थे। सड़कों के गड्ढे मिट्टी से भरकर तुरंत एक्शन का संदेश तो इन अफसरों ने दिया, लेकिन फिर से बरसात ने इन कामों की पोल खोल दी है। राजधानी भोपाल में ही हालात खराब हैं। बजट को तरस रहे अफसर सड़क सुधारने के लिए जुगाड़ तलाश रहे हैं।

दिख रही अपनी हिलती कुर्सी
कर्नाटक, उत्तराखंड के बाद गुजरात में जो हुआ उसने नए ज़माने की बीजेपी के दर्शन करा दिए। यानी दिल्ली वाले दोनों लीडर जब चाह लेंगे तब नामुमकिन को भी मुमकिन बनाया जा सकता है। जितनी आसानी और शांति के साथ सीएम बदल रहे हैं उससे बीजेपी के अंदर अनुशासन का ज़बरदस्त संदेश गया है। गुजरात के ज़रिए ये संदेश दिया गया है कि समूची शांति के साथ पूरे घर के बदल देना भी मुमकिन है। बीजेपी में घट रही इन घटनाओं के बाद खुद को पार्टी का मज़बूत पिलर समझ रहे नेताओं का दिमाग भी भन्ना गया है। मंत्रीपद पर बैठे कुछ नेताओं ने तो इस बात की तैयारी भी शुरू कर दी है। बीते दिनों पुराने दोस्त रहे तीन मंत्रियों की मुलाकात हुई तो अंदर का ये खौफ बाहर निकल आया कि पता नहीं कितने दिन बाकी हैं। क्योंकि गुजरात ने केवल ये संदेश नहीं दिया है कि ऊपर के नेता बदले जाते हैं, बल्कि ये साफ कर दिया है कि पूरे भी बदले जा सकते हैं।

साध्वी ने ठोंकी ताल, टाइमिंग के साथ
उमा भारती की टाइमिंग पर हमेशा चर्चा होती है। इस बार भी टाइमिंग की चर्चा है। उमा भारती ने शराबबंदी के मुद्दे पर सीएम शिवराज और वीडी शर्मा के सामने चुनौती पेश कर दी है। शराबबंदी को लेकर 15 जनवरी तक का अल्टीमेटम देकर उन्होंने इस बार अपने तीखे तेवरों का एहसास भी कराया है। सवाल ये उठ रहे हैं कि आखिर ये सवाल उस दिन क्यों उठाए गए जब अमित शाह जबलपुर में मौजूद थे।अमित शाह के साथ एमपी बीजेपी के सारे दिग्गज नेता भी उस दिन शिवराज और वीडी के साथ जबलपुर में ही थे। ये भी कहा जा रहा है कि उमा भारती ने अपने तेवरों का एहसास उसी दिन क्यों कराया जिस दिन सुबह के वक्त राज्यसभा की खाली सीट के लिए दिल्ली से मुरुगन के नाम का ऐलान किया गया था। इन सारी कड़ियों को जोड़ा जाए तो ये नतीजा निकाला जा सकता है कि उमा भारती के मन में कुछ ना कुछ पक ज़रूर रहा है। क्योंकि उनका ये बयान बीजेपी को हिला देने वाला है।

कांग्रेस की माइक्रोलेवल प्लानिंग
कांग्रेस ने पोलिंग बूथ के लिए माइक्रोलेवल प्लानिंग शुरू कर दी है। खबर मिली है कि सेक्टर और मंडलम की संरचना केरल मॉडल की तरह नहीं होगी। बल्कि सेक्टर और मंडल का आकार छोटा किया जाएगा। कांग्रेस की नई रणनीति के मुताबिक 3 बूथों पर एक सेक्टर और 3 सेक्टर पर एक मंडल बनाया जाएगा। समितियां भी उसी तरह बनायी जाएगी। इस बार इन समितियों को कुछ खास जिम्मेदारी भी दी जा रही है। इसमें समिति के पदाधिकारियों को अपने अधीन पोलिंग बूथ के लोगों की समस्याओं के निराकरण के लिए प्रयास करने होंगे। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार समेत पारिवारिक स्तर पर आने वाली परेशानियों में भी भागीदारी देनी होगी। कांग्रेस में ये सब कुछ बिना ढोल पीटे ही शुरू हो गया है। कांग्रेस के इस नए अंदाज़ से ये साफ हो गया है कि वो आरएसएस की तरह अंदर ही अंदर सक्रिय होने की तैयारी में जुट गई है। चूंकि ये कांग्रेस में हो रहा है इसलिए योजना पर शक होना लाजिमी है।

कलेक्टर की तमन्ना दिल्ली
जिस शहर का कलेक्टर बनना हर आईएएस का पहला सपना होता है और इसके लिए ऐड़ी-चोटी का ज़ोर लगाने से भी गुरेज़ नहीं किया जाता। वहीं के कलेक्टर साहब को अब दिल्ली याद आ रहा है। कलेक्टर साहब ये त्याग इसलिए करना चाहते हैं क्योंकि उन्हें अपने बच्चों की पढ़ाई की चिंता है। इस शहर में रहते ये मुमकिन नहीं है, इसलिए बार-बार दिल्ली याद आ रहा है। कुछ अफसर तो चर्चा भी करने लगे हैं कि यदि साहब ने इस शहर की कलेक्टरी के लिए खुद ज़ोर लगाया होता तो शायद महत्व समझते। अपने परिवार के रसूख की वजह से टॉप शहर की कलेक्टरी करने को मिल गई है इसलिए दिल्ली याद आ रहा है। हालांकि कोई और होता तो शायद दिल्ली डेपुटेशन के लिए पापड़ बेलने पड़ जाते, लेकिन अब जिसने यहां पहुंचाया है वही दिल्ली भी आसानी से पहुंचा देंगे।

दुमछल्ला…
भोपाल में तहसीलदार के दो खाली पदों को भरने का इंतज़ार लंबा होता जा रहा है। सरकारी कामकाज प्रभावित होने लगा है। खबर लगी है कि दो पदों के लिए मंत्री और पीएस स्तर के बीच ठन गई है। दोनों के पास अपने-अपने दो अफसर हैं, जिन्हें भोपाल में एडजस्ट किया जाना है। लेकिन टॉप लेवल की अदावत में लिस्ट फाइनल नहीं हो पा रही है। फंसा पेंच सुलझाने वालों ने अब दोनों को एक-एक का फार्मूला सुझाया है, देखना है ये फार्मूला कितना कारगर साबित होता है।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)