ज़मीन खरीदने वाले अफसरों की लिस्ट

अफसरों के लिए सावधान होने की खबर है। केरवा बांध के कैचमेंट में अफसरों की कॉलोनी बनने की घटना के बाद सीएम शिवराज ने मुख्य सचिव को बड़ा टास्क दिया है। यह टास्क है उन अफसरों की लिस्ट बनाने का, जिन्होंने बीते सालों में भोपाल और आसपास में ज़मीन खरीदी है। ज़मीन खेती के लिए हो या मकान बनाने के लिए लिस्ट तैयार होनी शुरू हो गई है। यही नहीं, पता ये भी लगाया जा रहा है कि ज़मीन नाते-रिश्तेदार, कर्मचारी या परिचित के नाम खरीदी है। कोई करीबी कारोबारी, ठेकेदार के नाम भी ज़मीन है तो ये भी लिखा जा रहा है कि किन अफसरों के साथ खरीददार का नज़दीकी कनेक्शन है। दरअसल, बीते कई सालों से अफसरों ने भोपाल और आसपास फार्म हाउस, खेती या प्लॉट की तेजी से खरीददारी की है। सीएम सबकी लिस्ट बनाकर उनकी कुंडली तैयार कर रहे हैं तो ये आगे भी गुल खिला सकती है। अफसर चिंता इसलिए भी है कि शिवराज इन दिनों टांगने-गाड़ने के बयान दे रहे हैं और अब कहीं करके दिखाने के मूड में नहीं आ जाएं।

चुनाव क्षेत्र से दिग्विजय की डिमांड नहीं !

ये खबर चौंका सकती है। लेकिन ये है सौ फीसदी सही। दरअसल, चुनाव क्षेत्रों से प्रत्याशियों और रणनीतिकारों ने जिन स्टार प्रचारकों की डिमांड भेजी है, उसमें दिग्विजय सिंह का नाम कहीं नहीं है। ऐसा क्यों हुआ ये दिग्विजय सिंह के करीबियों के लिए शोध का विषय हो सकता है। ऐसा भी नहीं है कि कोई भी प्रत्याशी दिग्विजय सिंह से खुन्नस खा रहा है। जबकि सभी की दिग्गी से नजदीकियां हमेशा ही रही हैं। या तो ये प्रत्याशियों ने इस भरोसे में नाम नहीं भेजा कि दिग्विजय सिंह खुद दौरा कार्यक्रम बनाएंगे। या फिर जानबूझकर दिग्विजय के नाम का प्रस्ताव करने से परहेज़ किया गया। लेकिन कांग्रेस में ही दिग्विजय सिंह की मुखालफत करने वाले नेताओं को ये कहने का मौका ज़रूर मिल गया है कि दिग्विजय सिंह की डिमांड कांग्रेस में ही नहीं है। दिग्गी खेमा इस मामले में अपनी तैयारी में चूक गया नजर आता है।

आश्रम के बाद भोपाल में ट्यूशन क्लास

शिवराज सरकारी कामकाज में व्यस्त हैं तो उनकी पत्नी साधना सिंह समाज के कामकाज में बिजी हैं। विदिशा में उन्होंने अनाथ बालिकाओं के लिए अपने घर को आश्रम का रूप दे दिया है। अब भोपाल में भी उनके लिंक रोड वाले सरकारी बंगले पर एक कोचिंग क्लास शुरू हुई है। ये कोचिंग क्लास आसपास रहने वाले गरीब बच्चों के लिए पूरी तरह निशुल्क है। इंतज़ाम का जिम्मा हमेशा की तरह साधना सिंह ने संभाल रखा है। वे पूरी बारीकी के साथ व्यवस्थाएं संभाल रही हैं। टीचर्स और स्टूडेंट्स दोनों को सुविधा के मामले में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती है। इस प्रयास बच्चों की ज़रूरत की वजह से फलीभूत हुआ है। ज़रूरत महसूस की गई तो साधना सिंह की जानकारी में आते ही ज़रूरत पूरी हो गईं। इस पूरी व्यवस्था को तामझाम और मीडिया की नजरों से दूर रखा जा रहा है।

नए डीजीपी को लेकर कवायद शुरू

एमपी के नए डीजीपी को लेकर कवायद शुरू होने वाली है। वर्तमान डीजीपी अगले साल मार्च में रिटायर हो रहे हैं। इससे पहले सरकार को तीन नामों का पैनल मंजूरी के लिए दिल्ली भेजना होगा। इसके लिए तीन अफसरों के नाम तय होने शुरू हो रहे हैं। नए डीजीपी को लेकर फिलहाल दो अफसरों को लेकर ज़बरदस्त चर्चा छिड़ी हुई है। सीनियरिटी को देखें तो एक अफसर दिल्ली में प्रतिनियुक्ति पर हैं और दूसरे अफसर एमपी में ही पदस्थ हैं। लेकिन बनेगा वही जो सरकार की पसंद का होगा। लंबे वक्त तक चलने वाले के साथ ये भी देखा जा रहा है कि कांग्रेस में कहीं ज्यादा गलबहियां तो नहीं हैं। फिलहाल मंत्रालय के पांचवे माले में दोनों तरफ की दलीलें पहुंचनी शुरू हो गई हैं।

इंटेलिजेंस में तैयार हो रही दो रिपोर्ट

पुलिस मुख्यालय की एक गफलत से सरकार के इंटेलिजेंस सिस्टम में असमंजस के हालात पैदा हो गए हैं। दरअसल, यहां आदर्श कटियार पहले ही एडीजी की पोस्ट पर थे, एक आदेश के बाद यहां योगेश चौधरी को भी इंटेलिजेंस में एडीजी बनाकर भेज दिया गया है। काम में बंटवारे का मामला अभी क्लीयर नहीं हुआ है। नतीजा ये है कि दोनों अफसर अपना फर्ज निभा रहे हैं। हालत ये है कि प्रोटोकॉल के तहत दोनों ही अफसर अपनी इंटेलिजेंस रिपोर्ट पेश कर रहे हैं। गफलत में डिपार्टमेंट का अमला सबसे ज्यादा है। क्योंकि दोनों ही सीएम की गुड लिस्ट में है। किसी को भी इग्नोर नहीं किया जा सकता है। हालात ये हैं कि अब दो रिपोर्ट बनाकर दोनों ही अफसरों को पेश की जा रही है। यानी पुलिस की इंटेलिजेंस टीम का काम बढ़ गया है। चिंता की बात केवल ये है कि इंटेलिजेंस को इनपुट तलाशने पर फोकस करना चाहिए लेकिन यहां काम बढ़ गया है।

फिर पुरानी बिल्डिंग में ले आई बदनसीबी

अफसर के पास बड़ा ओहदा हो लेकिन बड़ा कैबीन नहीं तो काहे का बड़ा अफसर। इसलिए जब वल्लभ भवन की एक्सटेंशन बिल्डिंग तैयार की गई तो उसमें अफसरों के लिए बड़े कैबीन का खास ध्यान रखा गया। बावजूद इसके अतिरिक्त मुख्य सचिव स्तर के कई अफसरों को अब तक बड़ा कैबीन तो क्या नयी बिल्डिंग में जाना नसीब नहीं हो पा रहा है। कई अफसर अब तक वल्लभ भवन एक्सटेंशन बिल्डिंग में बैठने का सुख नहीं ले पाए हैं। अहम डिपार्टमेंट होने के बावजूद भी बड़े कैबीन से महरूम है और पुरानी बिल्डिंग के छोटे कैबीन में मन मसोस कर बैठ रहे हैं। तीन-चार अफसरों के नसीब ने तो पलटी खाई भी थी, लेकिन चंद रोज बाद ही मजबूरी वश पुरानी बिल्डिंग में ही शिफ्ट होना पड़ा। इन तीन-चार अफसरों को दुआओं की बड़ी दरकार है।

दुमछल्ला…

सीएम राइज़ स्कूल में प्राचार्य बनने के लिए प्रदेश भर के सीनियर टीचरों ने जोर लगाना शुरू कर दिया था। लेकिन मामला फिसलता नजर आ रहा है, दरअसल डिपार्टमेंट में ही एक लिस्ट तैयार हो गई और नोटशीट भी चल पड़ी है। हालांकि जब ये खुलासा हुआ कि इसके लिए विज्ञापन जारी करने चाहिए थे, तब इस फाइल को एक टॉप की जगह पर रोक दिया गया है। अब फाइल एक सरकारी बंगले में है, जहां मामले का तोड़ निकालने की जुगाड़ भिड़ायी जा रही है। इस सीएम राइज में डायरेक्ट फंड का इंतजाम होगा, स्कूल का मुखिया भी सीएम और डिपार्टमेंट के टॉप लोगों से डायरेक्ट कांटेक्ट में रहेगा, इसलिए इस फाइल पर भारी-भरकम डिस्कशन होना तय समझिए।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)