जिलों में बर्खास्तगी, शो-कॉज़ नोटिसों की बाढ़

कोविड काल में दूसरा लॉक डाउन खत्म होने के बाद सरकार अपने काम शुरू करती, इससे पहले ही कर्मचारी आंदोलनों ने सरकार और अफसरों की नींद हराम कर दी। नतीजतन सीएम को कैबिनेट बैठक में ये निर्देश देने पड़े कि अमर्यादित आचरण बर्दाश्त नहीं होगा। इसके बाद अब अफसरों ने कर्मचारी आंदोलनों पर सीधी कार्यवाही शुरू कर दी है। कई जिलों में कलेक्टरों ने पंचायत कर्मियों के आंदोलनकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिए हैं। कई जिलों में तो बर्खास्तगी तक शुरू हो गयी है। रोजगार सहायकों के लिए ऐसे आदेशों की झड़ी लग गई है। खास बात ये है कि जिलों स्तर पर कलेक्टरों की ये सख्ती कर्मचारी नाराज़गी की नई वजह बन सकती है। बात अभी भोपाल पहुंची नहीं है, लेकिन जल्द ही हल्ला होने की आशंका है।

तबादलों पर स्टे की सीक्रेट वजह ?

तबादलों का इंतज़ार कर रहे अब नई चर्चा ये है कि क्या ग्वालियर-चंबल अंचल की बाढ़ से प्रदेश भर के तबादला आदेश पर रोक लगा दी गई है? कुछ लोग भले ही बेसब्र हो रहे हों, लेकिन राहत की सांस ली है मंत्रियों को अफसरों ने। दरअसल, बीजेपी के विधायक-पूर्व मंत्री-सांसदों की फर्जी नोट शीट कांड ने नए सिरे से सिफारिशी लैटरों की जांच की जा रही थी। इसमें काम को फिर से ज़ीरो से शुरू करना पड़ रहा था। इसलिए तय मियाद तक आदेश निकल नहीं पा रहे थे। अब 15 अगस्त तक का वक्त और मिल गया है। कुछ मंत्रियों और अफसरों ने ये शिकायत ऊपर तक पहुंचा दी थी कि सभी नोटशीट की जांच ज़रूरी है। कई जगह क्रॉस चैक करना बेहद जरूरी है।

स्टाफ तो पहले भी धराया था

तबादलों की बात निकली है तो ये भी बताते चलें कि नेताजी के नाम वाली नोटशीट पर फर्जी सिफारिशें करने वाले एक बार पहले भी शिकार हो चुके हैं। तब नेताजी के स्टाफ के एक कर्मचारी का स्टिंग ऑपरेशन भी कर दिया गया था। ये उन दिनों की बात है जब नेताजी की सरकार और श्यामला हिल्स पर तूती बोला करती थी। फिलहाल ओहदा नहीं है, लेकिन सीधी श्यामला हिल्स तक पहुंच होने के कारण रुतबे में कोई कमी नहीं आयी है। ऐसे ही तबादलों के वक्त जब स्टिंग ऑपरेशन का वीडियो नेताजी के सामने प्रस्तुत किया गया तो उनके होश उड़ गए। उस वक्त जैसे-तैसे मामले को संभाला गया था। हैरत की बात ये है कि एक बार उलझने के बावजूद नेताजी के स्टाफ की करतूतों में कमी नहीं आयी है। सवाल भी खड़े हो रहे हैं कि नेताजी की तरफ से अपने निजी स्टाफ के लिए ये ढील है या डील?

कांग्रेस में एनपी की ‘छड़ी’ की तलाश

कांग्रेसी में चर्चाएं हैं कि आखिर एनपी प्रजापति के पास कौन सी जादू की छड़ी है कि बीजेपी सरकार उनके बंगले पर मेहरबान हैं? अच्छे-अच्छे बंगले से बेघर कर दिए गए। कुछ लोगों को बेआबरू तक होना पड़ा। लेकिन एनपी के मामले में बीजेपी का सॉफ्ट कॉर्नर आखिर क्यों हैं। कुछ लोग कहने लगे हैं कि एनपी के पास कोई जादू की छड़ी होगी, जिसे वे बीजेपी पर घुमा रहे हैं। जबकि डॉ.गोविंद सिंह जैसे सीनियर मोस्ट नेता को अपना बंगला छोड़कर नए बंगले के लिए इंतज़ार करना पड़ा। जीतू पटवारी को भी अपने बंगले का एक हिस्सा छोड़ना पड़ा, जो एक दिग्गज अफसर को अलॉट किया गया। तरुण भनोत और लाखन सिंह पटेल के बंगले पर नोटिस चस्पा किया गया था। लेकिन एनपी के पास सरकारी बंगला अब भी जिंदाबाद हैं।

पुराने दफ्तर की निशानियां

भोपाल के एक बड़े नेताजी के दफ्तर में पुराने बड़े दफ्तर की निशानियां दिखाई दे रही हैं। ये नेताजी सरकार के लौटने के बाद मिली एक बड़ी ज़िम्मेदारी से बीते दिनों ही फारिग हुए हैं। जिस जिम्मेदार ओहदे पर बैठे थे, उस दफ्तर की कई निशानियां अब नेताजी के दफ्तर में नुमायां हो रही हैं। मिलने-जुलने वाले लोग तो सहज़ ही अंदाज़ा लगा रहे हैं कि ये आइटम कहां से आए होंगे। अंदाज़ा लगाने के बाद मिलने वाले लोग ये सवाल भी पूछ नहीं पा रहे हैं कि जो नए साजो-सामान यहां दिखाई दे रहे हैं, वे यहां पहुंचे कैसे? सवाल उठने लगे हैं कि क्या वे वहां का सामान भी उठा लाए हैं? वैसे, सियासत में सरकारी ओहदा और बंगला त्यागने के बाद नेताओं पर ये आरोप लगते रहे हैं कि वे नल की टोटी और फर्नीचर जैसा सामान भी लेकर चल पड़ते हैं।

कलेक्टर के खिलाफ तंत्र-मंत्र

राजधानी से ही सटे एक जिले के कलेक्टर को हटाने के लिए तंत्र क्रिया का सहारा लिया गया है। ये बात इलाके के कर्मचारियों में जमकर चर्चा का विषय बनी हुई है। मंत्रालय तक ये चर्चा हो रही है कि आखिर अर्दलियों की नाराज़गी के लिए क्या अफसरों को ऐसे भी जूझना पड़ेगा? पुख्ता सूत्र बताते हैं कि उसी जिले की कस्बाई शहर के तांत्रिक की मदद ली गई। बीड़ा जिले के ही दो अफसरों ने उठाया था, ये अफसर कलेक्टर साहब से परेशान थे। बड़ी तांत्रिक क्रिया करवाई गयी लेकिन कलेक्टर साहब अब भी अंगद के पैर की तरह बैठे हैं। हां, जिस तांत्रिक ने क्रिया की थी उसका चंद रोज़ पहले देहांत हो गया है। कलेक्टर साहब का काम लगातार चल रहा है, जानकारों ने मामला ऊपर पहुंचा दिया है।

मैडम का इनपुट आखिर है क्या?

जब सीएम साहब बाढ़ पीड़ित इलाकों की जानकारी ले रहे थे, तभी अचानक इलाके से संबंधित एक मंत्री का फोन आया। फोन पर कहा गया कि वे सीएम साहब से तुरंत कोई बात करना चाहती हैं। इससे चंद मिनिट पहले मैडम सीएम साहब की वीडियो कांफ्रेंसिंग से हो रही बैठक में जुड़ी हुई थी। बैठक में जुड़े लोग हैरत में पड़ गए कि आखिर ऐसी कौन सी बात है, जो वीसी में ना कहकर फोन पर कही जानी है। फिर भी ये बात सीएम तक पहुंचाई गई। सीएम साहब ने पूरी तवज्जो देकर बाद में अलग से बात करने का जवाब दिया। अपने इरादों की पक्की मैडम ने दूसरे दिन सीएम को बाकायदा कागज देकर अपनी बात रखी। यही नहीं, अगले दिन हुई कैबिनेट बैठक में ये ज़ाहिर भी कर दिया कि जो कागज़ दिया है, उसका ध्यान रखिएगा। कोई समझे या नहीं समझे, बैठक में बैठे अफसर ज़रूर समझ गए कि मामला सीरियस है। आखिर मैडम ने कौन सा इनपुट दिया है, जिसका फॉलोअप भी पूरी शिद्दत के साथ लिया जा रहा है।

दुमछल्ला…

बात उज्जैन में हुई एक पोस्टिंग की जो साल भर पहले हुई थी, लेकिन अब उसे हिलाने की कोशिश हो रही है। ये पोस्टिंग मौजूदा सरकार में एक दिग्गज मंत्री की व्यक्तिगत दिलचस्पी से हुई थी। जब सरकार नहीं थी, तब भी साहब इस पोस्टिंग के लिए तत्कालीन मंत्री के बंगले पहुंच गए थे। इसके बाद जिले स्तर की इस पोस्ट के लिए शासन स्तर पर आदेश निकाले गए थे। इस चक्कर में पोस्टिंग कई महीनों तक अटकी भी रही। लेकिन सरकार लौटने के बाद ये सारे अवरोध खत्म कर दिए गए। मैडम कुर्सी पर दबंगता से बैठी हैं और हिला देने वाले आदेश-निर्देश दे रही हैं। पता ये लगा है कि इस पोस्टिंग के पीछे कुछ स्थानीय नेता पड़ गए हैं। आगे-आगे देखिए होता है क्या।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)