इलेक्शन के लिए कलेक्शन की चिंता
तैयारी शुरू हो चुकी है 2023 में होने वाले एमपी के विधानसभा इलेक्शन की। पर्दे के पीछे सबसे ज्यादा तैयारी चुनाव में खर्च की जाने वाली रकम को इधर से उधर पहुंचाने को लेकर है। पिछले लोकसभा इलेक्शन के दौरान प्रदेश में कांग्रेस की सरकार रहते कांग्रेस के लोगों पर आयकर छापेमारी हो गई थी। इस बार तो सरकार भी नहीं है, चिंता इस बात की है कि चुनावी इलाकों तक कैसे रकम पहुंचाई जाए। आयकर विभाग ने इसकी निगरानी शुरू कर दी है। हवाला कारोबारियों पर नज़र रखी जा रही है और सिंडिकेट के ज़रिए हो रहे लेनदेन का फ्लो की निगरानी शुरू हो गई है। इसके मद्देनज़र कांग्रेसी खेमे में चिंता बढ़ गई है। जब सरकार में रहते हुए आयकर छापे झेलना पड़ा था, तो इस बार विपक्ष में हैं और बीजेपी भी आक्रामक है। कांग्रेस का खेल बिगड़ सकता है। एक तरफ तरकीबों की तलाश की जा रही है तो दूसरी तरफ आयकर विभाग की अपनी तैयारी है। इस बार यूपी के इत्रवाले कारोबारी जैसा नजारा एमपी में भी दिखाई दे जाए तो चौंकिएगा नहीं।
DGP बनने ‘शाह’ के दरबार में दस्तक
एमपी के नए डीजीपी के लिए सरकार ने नाम तय कर लिया है, लेकिन कोशिश करने वाले हार मानने को तैयार नहीं है। एक साहब ने अपने नंबर बढ़ाने के लिए हाल ही में तीन बड़े आयोजन किए हैं। आयोजन के जरिए नेताजी को साधने की कोशिश की गई है। इस कोशिश के जरिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से एप्रोच लगाने की कवायद की जा रही है। अमित शाह के ज़रिए एमपी सरकार तक नाम पहुंचाने का रास्ता तलाशा गया है। तीर तो सही जगह से चलाया जा रहा है, इसके कारगर बैठने की संभावना भी पर्याप्त है। दरअसल, सरकार की तरफ से नए डीजीपी का नाम घोषित करने में हो रही देरी की वजह से कोशिश करने वालों को सक्रिय होने का मौका मिल रहा है। सरकार को नए डीजीपी के लिए 3 नामों का पैनल दो महीने पहले भेज देना चाहिए था। ये काम अब तक बाकी है। जबकि अगले महीने यानी 4 मार्च को ही मौजूदा डीजीपी रिटायर हो रहे हैं। नियमानुसार 15 दिन पहले नए डीजीपी बनने वाले अफसर को पीएचक्यू में ओएसडी बनाकर भी बैठाने की औपचारिकता करना है।
पुलिस कमिश्नर को लेकर ख्याली पुलाव
भोपाल या इंदौर के पहले पुलिस कमिश्नर की तैनाती हुए चंद हफ्ते ही बीते हैं, लेकिन इस कुर्सी पर कुछ सीनियर अफसरों ने अभी से ही निगाह गाड़ रखी है। ये अफसर इन ओहदे को हासिल करने के लिए बेताब नजर आ रहे हैं। काम भी इसी तरह परोसे जा रहे हैं कि करने वालों की निगाह में इन शहरों के अगले पुलिस कमिश्नर के लिए नाम ज़ेहन में रहे। लॉबिंग बेहद सलीके से की जा रही है। इसमें लकीर लंबी करने के अलावा दूसरों की लकीर छोटी करने की तरकीब का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। इस ओहदे पर नजर गाड़ने वाले एक-दो नहीं बल्कि कई हैं। सभी से सीएम शिवराज बेहतर परिचित हैं और उनकी गुड लिस्ट में शामिल हैं। एक अफसर हाल ही में राजधानी में ही तैनात हैं तो दो पीएचक्यू में पदस्थ हैं। एक साहब अक्सर सीएम के करीब देखे जाते हैं। लॉबिंग जारी है, बस वक्त का इंतज़ार किया जा रहा है।
चुनाव देख ‘राम’ के बाद ‘कीर्तन’ की राह
पिछले चुनाव में हनुमान पूजन और राम-वन गमन पथ के जरिए अपना चुनावी एजेंडा सेट करने वाली कांग्रेस अब भजन-कीर्तन का रास्ता अपनाने वाली है। कांग्रेस ने गली-गली और गांव-गांव में भजन-कीर्तन करने का प्लान तैयार किया है। कांग्रेस के एक खास प्रकोष्ठ और विचारशील नेता को कमलनाथ ने ये टास्क सौंपा है। खास बात ये है कि महात्मा गांधी का नाम लेकर भजन-कीर्तन किया जाएगा। भजन भी खास किस्म के होंगे। इसमें ईश्वर के महिमा-मंडन वाले भजनों की बजाय गांधी के भजन गाए जाएंगे। कांग्रेस ने इसके लिए भजनों की लिस्ट बनायी है। इन भजनों के ज़रिए समरसता, परोपकार और अच्छे व्यवहार का संदेश दिया जाएगा। चुनाव से पहले इस खास तरह की मंडली जमाकर कांग्रेस ने आरएसएस की तरह जनता में पहुंचने की तैयारी की है। वॉट्स एप और सोशल मीडिया के जमाने में कांग्रेस इस मंडली जमाने की तरकीब को ज़मीन पर कैसे उतारती है, देखना दिलचस्प होगा।
वक्त के पाबंद दिग्गज की वापसी
बड़े नेताओं के अंदरूनी मतभेदों की वजह से टूल बनाकर इस्तेमाल किए गए कद्दावर कांग्रेसी नेता को पार्टी आलाकमान चुनाव से पहले नज़रअंदाज़ नहीं कर पाया। लंबे वनवास के बाद इस हफ्ते उनकी वापसी हो गई। नेता वक्त के इतने पाबंद हैं कि उनके पीसीसी पहुंचने पर लोग अपनी घड़ी का कांटा ठीक 10 बजे पर सेट कर देते थे। फिलहाल वापसी का ऑर्डर ही जारी हुआ है, कमरा और जिम्मेदारी तय नहीं है। लेकिन इस नेता की आमद के ऐलान से ही पीसीसी में चर्चाएं गर्म हो गई हैं। चुनाव से पहले नेताजी की वापसी के कई मायने निकाले जा रहे हैं। अब नेताजी की वापसी कैसे और क्यों हुई, ये तो प्रदेश के दो पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज नेता के बंद कमरे में हुई बातचीत है। लेकिन ये चर्चाएं ज़रूर है कि कोई अहम टास्क ही दिया गया होगा। नेताजी को बिना जिम्मेदारी बैठाया नहीं जा सकता है। अब मीडिया विभाग के नेताओं को ये चिंता ज़रूर सता रही होगी कि उन्हें भी तैयार होकर वक्त पर पीसीसी पहुंचना पड़ेगा।
दुमछल्ला…
अपनी बात को मीडिया तक पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया जैसे प्लेटफॉर्म का उपयोग करने वाले कांग्रेस और बीजेपी के दो नेता अब खुद ही सोशल मीडिया जर्नलिस्ट की भूमिका में नजर आ रहे हैं। बीजेपी की तरफ से डॉ.हितेष वाजपेयी ने ‘दवाखाना’ की हैडिंग के जरिए कांग्रेस पर प्रहार कर रहे हैं और कमलनाथ के मीडिया कोर्डिनेटर नरेंद्र सलूजा ने ‘कही-अनकही’ नाम से गॉसिप पोस्ट कर रहे हैं। ये पोस्ट इन दोनों नेताओं की व्यक्तिगत अभिव्यक्ति है, जिससे एक-दूसरे पर जमकर प्रहार किए जाते हैं। लेकिन मीडिया के वॉट्स एप ग्रुप्स के अलावा कहीं पहुंच जाए तो ये किसी पत्रकार के कॉलम जैसा आभास देती है। सलूजा की तरफ से ऐसी पोस्ट की जाती हैं, मानों बीजेपी के अंदर से कोई खबर पहुंचा रहा है। वाजपेयी की पोस्ट भी ऐसी ही होती हैं। दोनों नेताओं का सोशल मीडिया जर्नलिज्म अवतार सियासी गलियारों में खूब चटखारे लेकर पढ़ा जा रहा है।
(संदीप भम्मरकर की कलम से)