चर्चा में ग्वालियर के आईपीएल मामा

आईपीएल का खेल केवल क्रिकेट तक सीमित नहीं है। इसकी लोकप्रियता की आड़ में कई लोग खेला करने वाले भी पैदा हो गए हैं। ऐसे ही एक शख्स का ज़िक्र हम आपके सामने कर रहे हैं। ये शख्स बीते आईपीएल के दौर में तेजी से चर्चाओं में आए हैं, वे केवल उन्हीं लोगों के बीच चर्चाओं में हैं जो आईपीएल के खेला में शामिल हैं। महोदय ग्वालियर से हैं और अपने संपर्कों संबंधों के दम पर उन्होंने इस खेला में जमकर रेला चलाया है। भले ही इस वजह से उनका कुछ जगहों पर आना-जाना बंद हो गया हो। लेकिन खेला जमकर चलता रहा। अब आईपीएल खत्म हो चुका है और ग्वालियर वाले मामाजी पेट पर हाथ फेरकर डकार पर डकार ले रहे हैं।

ड्रिप चढ़ाकर चुनावी बैठक लेते रहे नेताजी

सरकार गंवाने वाले नेताजी ने नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में भी माइक्रो लेवल मॉनीटरिंग कर रखी है। सीरियसनेस का आलम यह है कि सुबह से शाम तक एक-एक शहर के लिए दिमाग खपाया जा रहा है। दिन भर बैठकों में व्यस्त रहना और सभी नेताओं से मिलना इन दिनों का रुटीन है। साहब को मालूम है कि विधानसभा चुनाव से पहले निकाय और पंचायत चुनाव एक प्रैक्टिस मैच की तरह साबित हो सकते हैं। इसलिए पूरा टाइम निकाय चुनाव में प्यादे फिट करने और रणनीति बनाने में दे रहे हैं। बीते दिनों तबीयत नासाज हुई, डॉक्टरों ने आराम की सलाह दी लेकिन साहब मीटिंग से कांप्रोमाइज़ करने को तैयार नहीं हुए। डॉक्टरों ने ड्रिप चढ़ा दी… साहब ड्रिप पूरी होते ही बैठक कक्ष की कुर्सी पर सवार होकर शुरू हो गए। पूरी तन्मयता और सख्ती का मुजाहिरा देखा तो मीटिंग में शामिल लोग भी दंग रह गए। दरअसल, साहब चुनाव हारने के आदी नहीं हैं। प्रदेश में उनके साथी उन्हें इलेक्शन मैनेजर के तौर पर देखते हैं। यदि इस छवि में ज़रा भी दाग पड़ा तो असर आगामी विधानसभा चुनाव पर पड़ सकता है।

जब सीएम बोले – अब नहीं मिलेगा खाना

‘जो खाना है, अभी खा लो… इसके बाद दिन भर खाना मिलना मुश्किल है।’ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ये बात अपने मातहतों से कही तो अधिकारी और दूसरा स्टाफ सीएम शिवराज की सह्रदयता का एक बार फिर कायल हो गया। दरअसल, मौका उत्तराखंड का था जब पन्ना जिले के तीर्थ यात्रियों की बस हादसे का शिकार हो गई थी। सीएम तो तुरत-फुरत उत्तराखंड रवाना हो गए। कुछ डीजीपी, एसीएस गृह, सीएम सचिवालय का स्टाफ और सीएम सिक्योरिटी के लोग उनके साथ ही पहुंचे। देर रात व्यवस्थाएं संभालने के बाद चंद मिनिट ही सोने को नसीब हुए। अल सुबह ही घटना स्थल पहुंचने का कार्यक्रम रात में ही तय कर लिया गया था। सो कई बड़े अफसर भी बगैर नहाये कपड़े पहनकर तैयार हो गए। सीएम खुद भी तैयार थे, लेकिन निकलने से पहले उन्होंने पूरे स्टाफ को कहा – कुछ मिनिट ही हैं। नाश्ता पेट भर के कर लो क्योंकि इसके बाद खाने को कुछ भी मिलना संभव नहीं है। विकट परिस्थिति में शिवराज के ठंडे दिमाग से लिए गए इस तरह के कई फैसलों से यहां मौजूद लोग भली भांति वाकिफ थे। लेकिन इस बार के वाकये ने लोगों का दिल जीत लिया। वाकई शिवराज लीडर हैं।

ऐसे निकाला कमलनाथ ने झगड़ों का पेंच

पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने निकाय चुनाव के दावेदारी से जुड़े झगड़ों से निपटने के लिए एक युक्ति अपनाई जो कारगर साबित हुई। हर मेयर कैंडिडेट का नाम फाइनल करने के लिए कमलनाथ ने सभी दावेदारों को एक साथ बैठाया। तीन-तीन सर्वे रिपोर्ट सामने रख दी। जिसका नाम सर्वे में अव्वल रहा, वह इसलिए मौन रहा क्योंकि उसकी बांछे खिल गई थीं। लेकिन बाकी दावेदारों के तर्क कमलनाथ की तीन सर्वे रिपोर्ट के आगे बौने साबित हो गए। यहां ना केवल कमलनाथ ने सबको साथ चुनाव लड़ने की नसीहत दी बल्कि उनकी दावेदारी को स्वत: ही संतुष्ट करके शांत कर दिया। चेहरे फीके पड़े हुए थे लेकिन कहने को कुछ था नहीं। मीडिया से मुखातिब भी हुए तो सबने एक साथ चुनाव लड़ने का नारा दोहरा दिया।

फंस गया बड़े कारोबारी ग्रुप का स्कूल

राजधानी भोपाल में स्थित एक बड़े कार्पोरेट घराने का नामी स्कूल पर कार्यवाही कर दी। मामला एक कर्मचारी की बेदखली से जुड़ा था लेकिन इतने छोटे से घटनाक्रम पर इतनी बड़ी कार्यवाही ने सबका ध्यान खींच लिया। मालूम पड़ा कि बेदखली से एक प्रभावशाली और पहुंच-पकड़ वाला परिवार प्रभावित हो रहा था। इसलिए स्कूली शिक्षा विभाग ने मिसाल कायम करने जैसा फैसला लिया। बहरहाल, आगे की खबर यह है कि इस बेदखली के घटनाक्रम के बाद पीड़ित ने स्कूल से जुड़े कई कच्चे-चिट्ठे खोल दिये। अब सरकारी दफ्तर से जुड़े लोगों ने मामले की फाइल दूसरे महकमों के पास सरका दी है। अब कुछ दूसरे महकमे और जांच एजेंसियां भी पोजिशन लेना शुरू कर दिया है। हालांकि यह भी बता दें कि ये स्कूल न केवल बड़े घराने का है, बल्कि शहर का नामचीन भी है। जाहिर है, ऐसी जगहों पर कई बड़ी एजेंसियां ‘कांटा’ डालने के लिए बेताब रहती हैं।

दुमछल्ला…
सीएम के करीब अब एक ऐसी महिला अफसर पहुंच गई हैं, जो आसपास हो रही घटनाओं पर बारीकी से नजर रखती हैं। ये अफसर बीते महीनों में फेसबुक की प्राइवेसी पॉलिसी पर सवाल खड़े कर रही थीं। इस सवाल को खड़े करने के पीछे भी उनकी बारीक जासूसी नजरें थीं। अब सीएम के आसपास हो रही घटनाओं पर भी ऐसी ही नजर रखी जाएं और उसपर कार्यवाहियां होने लगे तो अंदाज़ा ज़रूर लगा लीजिएगा कि ये इसके इनपुट का नतीजा हो सकता है।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)

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