भोपाल-जबलपुर के प्रत्याशियों का हूटर प्रेम
बीते कुछ सालों से बीजेपी ने परिवारवाद पर चोट करने के लिए ऐसे चेहरों को बड़े-बड़े ओहदों तक पहुंचाया है, जिससे यह संदेश दिया जा सके कि यहां किसी चिरपरिचित या बड़े नाम की बजाय पार्टी के लिए काम करने वालों को मौका मिल सकता है। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी निकाय चुनाव से पहले इसी फार्मूले पर काम करने की तरकीब भी दी थी। मकसद यह था कि सियासी चकाचौंध वाले नेता की बजाय इसे दबे-कुचले नेताओं को मौका देने वाली पार्टी वाली छवि में ढाला जा सके। लेकिन मेयर टिकट की घोषणा करते ही यह पता लग गया कि जलवे, रसूख और हाईप्रोफाइल वाले नेता कैसे बनते हैं। भोपाल में मेयर घोषित की गईं प्रत्याशी घोषणा वाली रात में ही राजधानी की सूनी सड़कों पर हूटर बजाते लोकल नेताओं को धन्यवाद देती पहुंचती रहीं। सड़कें भले ही सूनी थीं, मगर कार का हूटर रात के सन्नाटे को तोड़ता रहा। यही हाल जबलपुर के सीधे-सादे भोले-भाले प्रत्याशी का है, उनकी गाड़ी भी अब जबलपुर की व्यस्त सड़कों पर बिना हूटर नहीं चलती है।

हनीट्रेप जंजाल से बाहर तलाशे-सुकूं
जिस कांड की वजह से दो साल जेल की हवा खानी पड़ गई। देश-प्रदेश में वायरल हुई तस्वीरें और वीडियोज की वजह से सूबे के मंत्रालय, सचिवालय और रसूखदार नेताओं ने सुर्खियां बटोर ली थीं। इस कांड की वजह बनी दो लेडी बाहर आकर इन दिनों शायद सुकून की तलाश कर रही हैं। ये लेडीज़ इन दिनों दो अलग-अलग क्लबों में वक्त बिताते देखी जा रही हैं। लोग कयास तो ये लगा रहे थे कि ये सभी ज़मानत मिलने के बाद अंडर ग्राउंड हो जाएंगी, लेकिन खुल्लमखुल्ला अंदाज़ में नाईट क्लब में सुकून की तलाश में ये फिर से सुर्खियां बटोर रही हैं। ये अलग बात है कि इन्हें महफिल अब वैसी नहीं मिल रही है जैसी पहले मिला करती थी। कहने वाले तो ये भी कह रहे हैं कि ये तो बस शुरुआत है, आगे-आगे देखिए होता है क्या।

कहीं भौंहे तनी, कहीं रणनीतिक मौन
टिकट जिन्हें नहीं मिली उनकी प्रतिक्रिया सोशल मीडिया से सड़कों पर साफ दिखाई दे रही हैं। लेकिन टिकट दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले नेता मन मसोस कर बैठे हैं। ये नेता पार्टी संगठन और दावेदार कार्यकर्ता के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे थे, कार्यकर्ताओं की बदौलत ही नेताजी की ताकत थी। अब टिकट नहीं मिलने पर उनकी ताकत खत्म हो रही है। इसी वजह से प्रदेश बीजेपी दफ्तर में बैठक के दौरान इंदौर के एक पूर्व विधायक तमतमाये लहजे में मौन बैठे रहे। हा-हूं तक नहीं की। यही हाल, भोपाल की एक दिग्गज नेत्री का भी है। कांग्रेस से बीजेेपी में शामिल हुए बड़े नेताजी की वजह से उनके कई समर्थकों की टिकट कट गई। मैडम ने संगठन के फैसले को सर्वोच्च मानकर चुप्पी साधने का फैसला ले लिया है। हालांकि ऐसी ही चुप्पी की वजह से उनका खुद का टिकट पक्का हुआ था।

जिला कांग्रेस की मंत्री से चुनावी सेटिंग
यह मामला मालवा के एक जिले के वार्ड नंबर 15 का है। जिला कांग्रेस के एक नेताजी ने अपने ही इलाके के एक मंत्री से सेटिंग कर ली है। सेटिंग ऐसी कि कमलनाथ को पता ही नहीं लगा कि मंत्रीजी के करीबी नेता के सामने कांग्रेस का एक कमजोर कैंडिडेट उतार दिया गया है। सबकुछ ठीक-ठाक निपट गया और लोकल पार्टी नेताओं को भी इसे एक स्वाभाविक ही समझ रहे थे। लेकिन किसी हरिराम ने मामले की सूचना कमलनाथ के बंगले तक पहुंचा दी है। बगावत और धोखेबाजी के प्रति असहनीय हो चुके कमलनाथ के लिए यह सूचना किसी झटके से कम नहीं थी। फिलहाल बंगले पर कमलनाथ के रणनीतिकार इस मसले के हल तलाशने में जुटे रहिए। कार्यवाही होते ही यह टॉप सीक्रेट खुल जाएगा।

बॉलीवुड में एंट्री के लिए नेतापुत्र का प्रेशर
एक दिग्गज नेताजी के पुत्र बॉलीवुड में एंट्री की पुरजोर कोशिशों में जुटे हुए हैं। पिताजी की इलाके में ऐसी धमक है कि उनकी मर्जी से हर दिक्कत हल हो सकती है। इसलिए बॉलीवुड के लोगों के सामने उनके इलाके में शूटिंग के लिए जिम्मेदार शख्स यानी लाइन प्रोड्यूसर की कोशिशों में जुटे हुए हैं। अंदर की बात यह है कि इस काम के लिए करोड़ों के वारे-न्यारे किए जाते हैं। आमतौर पर बॉलीवुड ऐसे पचड़ों को दूर करने के लिए इस तरह के लोकल सपोर्टर्स को तैनात रखते हैं। दिक्कत केवल इस बात को लेकर है कि जिस इलाके में नेतापुत्र की दिलचस्पी है, उस इलाके में यह काम कोई और पहले से ही बखूबी कर रहा है। अब यहां नेतापुत्र काम करने की इच्छा रखते हैं तो दबाव भी तरह-तरह के परोसे जा रहे हैं। नेतापुत्र ने इसे अपनी ज़िद बना लिया है। इस सीक्रेट का खुलासा आपके सामने तब होगा, जब उनके इलाके में होने वाली शूटिंग में परेशानियां आएंगी। वैसे यह बता दें कि फिलहाल कोई शूटिंग संबंधित इलाके में नहीं चल रही है।

दुमछल्ला…
नौकरशाही के आगे सब बौने। चुनाव आयोग के निर्देश हैं कि लंबे वक्त से एक ही जगह जमे अफसरों का तबादला किया जाए। निर्देश का पालन ने भी ब्यूरोक्रेसी ने बखूबी किया। छोटी मछलियां इधर से उधर हो गईं और बड़े नामदारों को उसी जिले की अन्य ऐजेंसी में एडजस्ड करने का फार्मूला निकाल लिया। कई नामदार अफसर तबादला होने के बावजूद भी लोकल पोस्टिंग का मजा ले रहे हैं। भई नियम कायदे कोई नौकरशाहों से बेहतर जानता है क्या? चंद महीनों बाद ये फिर उसी मनपसंद पोस्टिंग पर तैनात होंगे इसके बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के वक्त भी जब चुनाव आयोग के निर्देश आएंगे तो वे ठप्पे से कह सकते हैं कि तीन साल अभी हुए कहां है?

(संदीप भम्मरकर की कलम से)

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