जब तेज़ बरसात में फंसे आला अफसर
भोपाल में जब तेज़ आंधी के जब घनघोर बादलों ने शुरूआत की तो शहर के लोग बिजली की आंख-मिचौली और कॉलोनी की सड़कों पर बहते पानी को देखकर अनहोनी के लिए तैयार हो रहे थे। लेकिन कुछ लोगों को यह सुहाना मौसम आउटिंग के लिए मुफीद लगा और केरवा पहाड़ियों की तरफ बने अपने फॉर्म हाउस की तरफ कूच कर गए। दोपहर बाद पता लगा कि मौसम ज्यादा बिगड़ चुका है और मुसीबतें खड़ी होने लगी हैं। कई इलाकों की बिजली गुल हो गई, फार्म हाउस में चाय समेत पीने के पानी के लाले पड़ गए। लौटने का मन बना तो पता लगा कि चारों तरफ पानी भरा हुआ है। फिर क्या था, करीब 22 अफसरों और उनके परिवारों की तरफ से लोकल के अमले को फोन लगाए। कोई कुछ करने की स्थिति में नहीं था। कुछ को तो बोट के जरिए बाहर निकाला गया। पूरा शहर मुसीबत में था और आपदा प्रबंधन का एक दस्ता यहां वीआईपी ड्यूटी में व्यस्त हो गया। बात अब तक सीक्रेट थी, लेकिन अब बाहर आ गई है।

कहो न कहो’, पर खुल गई मलिका-ए-हुस्न
बॉलीवुड की एक मलिका-ए-हुस्न हैं। बीते दो महीनों में भोपाल और ग्वालियर के 16 चक्कर काट चुकी है। पहली ही मूवी में बोल्ड और चुंबन दृश्यों की वजह से मशहूर हो गई थीं। जलवा अब तक कायम है। लेकिन भोपाल और ग्वालियर में लगातार दौरों की वजह से पुलिस की इंटेलिजेंस टीम सिर खुजलाने को मजबूर हो गई है। अब यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि इस बोल्ड अभिनेत्री की चोरी छिपे यात्राओं की वजह क्या है। मैडम एयरपोर्ट पर भी लुकाछिपी करते हुए अंदर-बाहर होती हैं। पता यह लगाने की कोशिश हो रही है कि इसके बाद कहां जाती हैं। कुछ लोगों के लिए गंतव्य स्थल सीक्रेट नहीं रह गया है। लेकिन इंटेलिजेंस की टीम टटोलने की कोशिश पूरी कर रही है। मुंबई से भोपाल या ग्वालियर होकर वापिस लौटने का सीक्रेट ज्यादा दिन तक सीक्रेट नहीं रहने वाला है।

कांग्रेस नेता को भारी पड़ गई टाइपिंग
पूरी महफिल कमलनाथ को पूरे गौर से सुन रही थी। लेकिन एक नेताजी भाषण को टाइप करने में जुटे थे। तन्मयता इतनी की कमलनाथ की खुफिया टीम ने नोटिस कर लिया। बात यहीं तक सीमित रहती तो ठीक था। लेकिन जिस वक्त मीटिंग चल रही थी, उसी वक्त बाहर इसकी सूचनाएं पहुंचने लगीं। टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर रीयल टाइम ब्रेकिंग चलने लगीं तो इसे गंभीरता से लिया गया। दरअसल, इस मीटिंग की कई ऐसी बातें जो कमलनाथ ने सहज रूप से कही, वह गंभीर बनाकर बाहर प्रेषित कर दी गईं। सूचना के इस संप्रेषण को गंभीरता से लिया गया और खुफिया टीम ने मोबाइल पर टाइपिंग की सूचना कमल नाथ तक पहुंचा दी। इसे अत्यंत अगंभीर और इनफॉरमेशन लीकेज समझा गया है। इस घटना के बाद कमल नाथ ने निर्देश दे दिए हैं कि कार्यवाही किस तरह की होनी चाहिए। फिलहाल निर्देशों पर अमल का इंतज़ार है।

12 नर्सिंग कॉलेज के मालिकों की तलाश
मामला नर्सिंग कॉलेज पर पिछले दिनों हुई कार्यवाही से ही जुड़ा है। लेकिन तलाश मालिकों की नहीं की जा रही है, बल्कि मालिक उचित व्यक्ति की तलाश कर रहे हैं। 12 मालिक इकट्ठा हो गए हैं, सबने मिलकर एक रकम भी तैयार की है। सूचना है कि प्रति मालिक 2-2 पेटी का इंतज़ाम किया गया है। पूरी रकम मिलाकर जो थैला तैयार किया गया है। उसके लिए प्रदेश के एक प्रभावशाली शख्स का दरवाजा खटखटाया गयाहै। मुख्य द्वार के पास देर तक मेल-मुलाकात की कोशिशें भी हुई हैं। इसके बाद क्या हुआ यह सूचना आना अभी बाकी है, लेकिन इस बात का भी इंतज़ार है कि नर्सिंग कॉलेजों पर हुई कार्यवाही क्या आने वाले दिनों में ढीली पड़ जाएगी और क्या यह कार्यवाही केवल औपचारिकता साबित होगी?

महज़ पैरवी पर मिल गया ‘कद’
कद हो या पद पैरवी के साथ आसानी से हासिल किया जा सकता है। पैरवी हो तो कद और पद की योग्यता भी ज़रूरी नहीं है। यही हुआ, बीते हफ्ते हुए 12वें भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान फिल्म फेस्टिवल के दौरान भी कुछ ऐसा ही तजुर्बा हुआ है। इस फेस्टिवल में एक ऐसी फिल्म प्रदर्शित कर दी गई, जिसका विज्ञान से दूर-दूर तक लेना देना नहीं था। फिल्म प्रदर्शन के दौरान पूरे वक्त दर्शक विज्ञान की तलाश करते रहे, जो आखिर तक नहीं मिली। अब वैज्ञानिक ठहरे वैज्ञानिक। उन्होंने अपने इंटरनल सिस्टम में इस फिल्म के अविज्ञान की आपत्ति उचित मंच पर पहुंचा दी है। पता यह लगा है फिल्म को स्थान दिलाने में एक पैरवी का बड़ा योगदान रहा है। इस पैरवी की वजह से फिल्म में वैज्ञानिक साम्य टूटने का अफसोस केवल वैज्ञानिकों को है, लेकिन विज्ञान और वैज्ञानिक फिल्म निर्माताओं को कद हासिल करने का एक रास्ता ज़रूर मिल गया है।

दुमछल्ला…
बीते हफ्ते उम्रदराज नेता गुलाम नबी आज़ाद के कांग्रेस छोड़ने की चर्चा तो खूब हुई। लेकिन आज़ादी के दिन कांग्रेस से आज़ाद कर दिए एक तजुर्बेकार और सक्रिय नेता की चर्चा सियासी गलियारों में नदारद है। दरअसल, कांग्रेस विधायक दल के स्थाई सचिव को 15 अगस्त के दिन पद मुक्त करके नयी नियुक्ति के आदेश जारी कर दिए गए हैं। जब कांग्रेस में उम्रदराज और तजुर्बेकार नेता अलग-अलग मोर्चे पर लीड कर रहे हैं, तब इन साहब की पदमुक्ति के मायने उनके करीबी ही खोज रहे हैं। अब तक ये नेता अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाते रहे हैं, इन पर किसी भी गुट का प्रभाव कभी नहीं रहा। विधायक दल के कामकाज की स्मूदनेस में उनकी कार्यशैली और संयोजन का बड़ा योगदान होता था। लेकिन अब बदली हुई परिस्थितियों में नये स्थाई सचिव को तैनात कर जिम्मेदारी सौंप दी गई है।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)

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