टीआई ने लिखवा दिया सांसद से इस्तीफा
वाकया एक महानगर के सांसद से जुड़ा है। जिनके कारोबारी रिश्तेदारों पर एक टीआई ने बड़ी अड़ी डाल दी थी। मामला ज़मीन से जुड़ा था, जिसकी वजह से रिश्तेदारों की जेब से करोड़ों रुपए ढीले हो रहे थे। सांसद ने दखल दिया तो टीआई ने नजरअंदाज कर दिया। पुलिस में ऊपर तक शिकायत करने पर भी मामला काबू में नहीं आया तो सबसे ऊपर शिकायत की गई। यहां सांसद जी ने यह कहकर इस्तीफा सौंप दिया कि जब रिश्तेदारों को ही अड़ीबाजी से बचा नहीं सकता हूं तो फिर सांसद रहने का भी कोई औचित्य नहीं। इसके बाद टॉप लेवल ने दखल देकर टीआई को शांत कराया। फिलहाल सांसद जी अपने इलाके में मुस्कुराते हुए देखे जा सकते हैं। इसके बाद सांसद ने टीआई की हिम्मत की वजह तलाशना भी ठीक नहीं समझा, वे केवल अपने रिश्तेदारों को छुटकारा दिलाकर ही खैर मना रहे हैं। आपकी जानकारी के लिए यह जरूर बता दें कि टीआई का तुरंत ही तबादला कर दिया गया था।

कैलाश-जटिया दर्शक, पंकजा की फजीहत
मौका उज्जैन में महाकाल लोक के लोकार्पण कार्यक्रम का था। मोदी की सभी में शामिल होने के लिए बीजेपी के कई दिग्गज उज्जैन पहुंचे। मोदी की आमद शाम साढ़े 5 बजे थी। लेकिन सुरक्षाकर्मियों ने 3 बजे से ही उज्जैन की मुख्य सड़कों पर बैरीकेड लगा दिए। नतीजतन कई दिग्गजों को परेशान होना पड़ गया। परेशान होने वालों में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, मंत्री भूपेंद्र सिंह भी थे। जिन्हें लंबा रास्ता तय करते हुए सभा स्थल पर पहुंचना पड़ा। ये दोनों व्यवस्थापकों में भी शामिल थे। लेकिन मोदी की सिक्योरिटी के आगे किसी की नहीं चली। पंकजा मुंडे सभा स्थल पहुंचने के लिए तीन घंटे पहले निकल पड़ी लेकिन हरी फाटक चौराहे पर ही पंकजा मुंडे का वाहन रोक दिया गया। यहां पंकजा के निजी स्टाफ ने पुलिसकर्मियों के साथ हुज्जत भी की, लेकिन सुरक्षाकर्मी नहीं माने, उन्हें जाने से रोक दिया गया। इसके बाद पंकजा को अपना वाहन लौटाना पड़ गया। यहां पुलिसकर्मियों को बताया भी गया कि मोहतरमा कोई लोकल लीडर नहीं है, बल्कि पार्टी की प्रदेश प्रभारी हैं। इस जानकारी का भी कोई असर नहीं हुआ। सभा स्थल पहुंचे कैलाश विजयवर्गीय और सत्यनारायण जटिया को भी सभा स्थल पर मंच की बजाय दर्शकदीर्घा में ही बैठना पड़ा।

सोनू निगम ने मंत्री-मेयर को कराया इंतजार
ये वाकया भी उज्जैन का ही है। मशहूर सिंगर सोनू निगम उज्जैन में एक नाइट शो में परफार्मेंस देने पहुंचे थे। जब उनसे मिलने इलाके के ही मंत्री और मेयर मिलने पहुंचे। लेकिन यहां सोनू निगम ने अपना स्टारडम दिखा दिया। थोड़ी देर का कहकर सोनू निगम के स्टाफ ने मंत्री और मेयर को लंबा इंतज़ार करा दिया। दोनों के ही आगामी कार्यक्रम तय थे, जहां उनका इंतज़ार किया जा रहा था। लेकिन ये दोनों सोनू निगम के इंतज़ार में बैठे रहे। स्टाफ को बार-बार बोला गया कि मंत्री और मेयर को ज़रूरी काम से जाना है। लेकिन सोनू के कानों में जूं तक नहीं रेंगी। पांच-पांच मिनिट करते हुए जब पूरा एक घंटा हो गया तो दोनों झल्लाकर उलटे पैर वापिस हो लिए। दोनों नेताओं का वीआईपी दर्जा यहां काम नहीं आया। सोनू निगम ने दोनों वीआईपी की सुध ही नहीं लगी। अपने ही शहर में ये दोनों लीडर एक फिल्मी सिंगर की बेतकल्लुफी के शिकार हो गए।

अधूरी सुविधाओं से काम चला रहे नेताजी
नेताजी को अब जाकर राजपाठ करने का मौका मिला तो है। लेकिन वे खुलकर भागदौड़ नहीं कर पा रहे हैं। ज्यादा भागदौड़ हो जाती है तो ड्राइवर के बहाने शुरू हो जाते हैं। ड्राइवर को कभी भूख लगने लगती है तो कभी चाय की तलब मिटाने की ज़रूरत पड़ जाती है। लगातार दौरे हो जाएं तो ड्राइवर थकावट का रोना रोने लग जाता है। इससे नेताजी की पूरी नेतागिरी की वाट लगने लगी है। अब तक नेताजी भलमनसाहत में कुछ नहीं बोल रहे थे। लेकिन अब वे शिकायत करने के मूड में आ गये हैं। उनका स्टाफ अब जिम्मेदार लोगों को कहने लगा है कि नेताजी को अब तक पूरी सेवा-सुविधाएं नहीं दी गई हैं। इसमें एक ड्राइवर ही मुहैया कराया जाना भी शामिल है। नेताजी जैसे-तैसे तो नए बंगले में शिफ्ट हुए हैं। काफी तलाश के बाद उन्हें अपनी पोस्ट के मुताबिक बंगला मिला है। अब बंगले में शिफ्ट हुए हैं तो सुविधाओं का टोटा समझ में आ रहा है।

नए मेयर साब की बिल्डरों से गलबहियां
जबलपुर के नए मेयर साहब ने 20 साल पहले मेयर बनने का सपना देखा था। अपने सियासी आका के सामने उन्होंने बस यही एक सपना रखा था। जब इस सपने को पूरा करने के लिए चुनाव लड़ने का मौका मिला तो नेताजी शहर के बड़े बिल्डर भी बन चुके थे। खैर, चुनाव जीतकर उन्होंने अपना कामकाज संभाल लिया है। अपनी जिम्मेदारी को वे इतनी शिद्दत से निभा रहे हैं कि नगर निगम अफसरों का दफ्तर खुले न खुले, मेयर का ऑफिस सुबह 9 बजे से शुरू हो जाता है। यहां अल सुबह ही बिल्डरों की धमाचौकड़ी से रौनक अफरोज़ हो जाती है। बिल्डरों की मेयर साहब से कमरा बंद बैठकें घंटों तक चलती हैं। हालांकि मेयर दिन में आम नागरिकों से भी मिलते हैं। लेकिन सुबह की महफिलों से जबलपुर जैसे सियासी अखाड़े में नयी हलचलों के संकेत दे रहे हैं। आने वाले दिनों में विधानसभा के चुनाव भी होने हैं। उस वक्त इन दिनों हो रही गलबहियां काफी फायदा पहुंचा सकती हैं। वैसे, यह बताने की ज़रुरत नहीं है कि नए मेयर साहब से जितना कांग्रेसी खेमा खुश है, उतने ही शहर के बिल्डर और कॉलोनाइज़र्स भी हैं।

दुमछल्ला…
हाल ही में संपन्न हुए नगरीय निकाय चुनावों में बीजेपी के पार्षद ज्यादातर इलाकों में बहुमत में नज़र आ रहे हैं, लेकिन नगर पालिका और नगर परिषद के चुनाव कांग्रेस के खाते में जा रहे हैं। सीधी सी बात है यहां बीजेपी आपस में ही भिड़ती और हारती नजर आ रही है। प्रदेश मुख्यालय की तरफ से तैनात किए गए पर्यवेक्षक भी यहां अनसुनी के शिकार हो रहे हैं। गुटबाज़ी इतनी हावी है कि पर्यवेक्षक पार्टी मुख्यालय में जवाब देने की स्थिति में नहीं है। दूसरी अहम बात यह है कि पार्टी स्तर पर अब तक इस गुटबाजी को लेकर कोई एक्शन शुरू नहीं हुई है। स्थानीय इकाई जहां खुद गुटीय राजनीति में शामिल है। बीजेपी में इस तरह की गतिविधियां अब तक घनघोर अनुशासनहीनता की श्रेणी में नज़र आती थी। लेकिन अब तक इस पर आंखें मूंदी रखने से कई सवाल खड़े हो रहे हैं।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)

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