महकमे के मंत्री की फोटो नदारद
सूबे के मंत्रियों के बीच इन दिनों बड़ी योजनाओं को लेकर मोहभंग हो रहा है। मंत्री अपने करीबियों के बीच चर्चा कर रहे हैं कि पूरी तैयारी करने के बाद जब योजना की लांचिंग का मौका आता है उस वक्त उन्हें केवल मंच पर बैठने के लिए बुलाया जाता है। खास तौर पर उन लांचिंग प्रोग्राम में जब पीएम, एचएम या दूसरे केंद्रीय मंत्री इस मौके पर मौजूद रहे। वे केवल बिजूका की भूमिका में ही रह जाते हैं। एक मंत्री तो करीबियों के बीच यह भी कहते सुनाई दिए कि बड़ी योजना या किसी योजना की बड़ी लांचिंग के लिए महकमे के अफसर केवल पार्टी के पावर और सुपर पावर तक ही सीमित हो जाते हैं। मंत्री यदि ज्यादा दबाव डालें तो अफसर ऐसा जवाब देते हैं कि मंत्री चुप्पी साधने में ही भलाई समझते हैं। एक ज़माना हुआ करता था, जब महकमे की किसी बड़ी योजना में मंत्री को भी खूब क्रेडिट मिलता था। अब ये क्रेडिट चंद मंत्रियों तक ही सीमित रह गया है। वैसे, इस नए ट्रेंड ने बाकी मंत्रियों को बड़ी योजनाओं में दिलचस्पी लेने से निराश ज़रूर कर दिया है।

महारानी जब बन गई गाइड
ग्वालियर के महल में शाह की एंट्री हुई तो महाराज ने सभी आगंतुकों का ध्यान रखा। महाराज खुद पीछे रहे और सीएम, तोमर, वीडी समेत दूसरे लीडरों को आगे किया। हालांकि यह आगे भी दूसरी पंक्ति ही कहलाई। क्योंकि सबसे आगे अमित शाह थे और उनके साथ महारानी। महारानी साहिबा इस महल की होम मिनिस्टर का दर्जा रखती हैं, जो दस्तूर के मुताबिक देश के होम मिनिस्टर को महल की सैर करा रही थीं। महारानी साहिबा ने महल की गरिमा का इस तरह वर्णन किया कि आमित शाह पूरे वक्त महल को निहारते ही रहे। वे पूरे वक्त महल की आलीशान वस्तुओं का वर्णन के ज़रिए हिन्दुस्तान और सिंधिया राजघराने की ऐतिहासिक विरासत में डूब गए। पीछे-पीछे दूसरी पंक्ति थी और उस पंक्ति को तवज्जो देते महाराज सिंधिया। आमतौर पर महल के ज़रिए सिंधिया राजघराने का शाही रुतबा ही नज़र आता था, यह पहली दफा तस्वीरें साझा हुई कि महाराज और महारानी आगंतुकों के स्वागत में पलक-पांवड़े बिछाने में भी कसर नहीं छोड़ते हैं। यह महज़ महल की आवभगत की चर्चा है, इसके सियासी मायने आप अपने हिसाब से निकालते रहिए।

IAS अफसरों की गुपचुप बैठक
बीते हफ्ते ही एक बड़े रसूखदार अफसरों की बड़ी गोपनीय बैठक हुई है। इस टॉप सीक्रेट बैठक के कुछ रहस्य बाहर आने शुरू हो गए हैं। सूत्रों का कहना है कि इस सीक्रेट मीटिंग में बड़े साहब की नज़रअंदाज़ी को गंभीरता से लिया गया है। दरअसल, बड़े साहब सरकार को खुश रखने के लिए अपने साथी अफसरों पर तलवार लटकाने में मौन सहमति दे रहे हैं। बीते दिनों जिस तरह से कार्यवाही का दायरा बाबू-पटवारियों से ऊपर अब केंद्रीय सेवाओं के अफसरों तक पहुंचा है तो मंत्रालय के बड़े साहब चुप्पी साधकर बैठ गए हैं। आईएएस बिरादरी को यह बात हजम नहीं हो रही है। नाराज़गी का यह सिलसिला पुलिस कमिश्नरी सिस्टम की शुरुआत से ही शुरू हो गया था। लेकिन पिछले दिनों तबादलों को लेकर बड़े साहब ने ऐसे निर्देश दिए कि अफसर मंत्रियों की नाराज़गी के शिकार होने लगे हैं। यहां तक तो ठीक था, लेकिन अफसरों पर कार्यवाहियां और नेताओं का आमसभा के मंच से सीधे अफसरों को लताड़ने पर नाराज़गी बढ़ गई है। ये अफसर पहले ही कांग्रेसी नेताओं के निशाने पर थे, अब सरकार में बैठे हर एक नेता ही अफसरों पर अविश्वास जाहिर करेंगे तो सीक्रेट बैठक में चर्चा होने लगी है। सूत्र तो यह भी बता रहे हैं कि आने वाली एनुअल मीट में मुद्दे को गरम किया जाएगा।

एक दूसरे के भरोसे में छूटा दिल्ली
एक दूसरे पर भरोसा होना तो सदैव अच्छी निशानी समझी जाती है। लेकिन मल्लिकार्जुन खरगे की दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष पद पर हो रही ताजपोशी के दिन एमपी से किसी भी लीडर के नहीं पहुंचने पर दिल्ली में चर्चाएं होने लगी हैं। इस गैरहाजिरी के पीछे एक दूसरे पर भरोसा करना ही बताया जा रहा है। इस कार्यक्रम के लिए सभी प्रमुख लीडरों को एआईसीसी की तरफ से टेलिफोनिक न्योता दिया गया था। दिल्ली से फोन पर आने का भरोसा दिलाया जा रहा था। लेकिन प्रथम पंक्ति का कोई भी लीडर नहीं पहुंच सका। जबकि प्रथम पंक्ति के सारे लीडर कांग्रेस की हर बड़ी गतिविधि के प्रमुख हिस्से होते हैं। लेकिन इस बड़े कार्यक्रम में किसी के नहीं पहुंचने पर बीजेपी ने कांग्रेस नेताओं को घेरना शुरू कर दिया है। दरअसल, इन कांग्रेसी दिग्गजों को भरोसा था कि कोई न कोई ज़रुर पहुंच जाएगा। लेकिन इसी भरोसे में कोई भी नहीं पहुंचा और बीजेपी को मौका मिल गया। हालांकि कांग्रेस की ही दूसरी पंक्ति के नेताओं ने अपनी मौजूदगी दी। लेकिन वे बड़े नेताओं के खालीपन को नहीं भर सके।

पीडब्ल्यूडी में तारीख पर तारीख
वैसे तो सभी सरकारी विभाग अपनी समीक्षा बैठक से घबराते हैं। खास तौर पर तब जब मीटिंग सीएम साहब लेने वाले हों। लेकिन इन दिनों PWD विभाग समीक्षा बैठक के लिए लालायित नजर आ रहा है। बीते कई महीने से इस महकमे की समीक्षा बैठक करीब 6 बार तय हो चुकी है। दिन, वक्त सबकुछ तय होने के बाद कुछ ना कुछ वजह आ जाती है, जिससे मीटिंग पोस्टपोन्ड करनी पड़ती है। महकमे के मंत्री और सारे अफसर पूरी तैयारी के बाद जाने के लिए तैयार होते हैं, कि मैसेज पोस्टपोन्ड का मैसेज आ जाता है। अब तो महकमे के लोग झल्लाने भी लग गए हैं। समीक्षा बैठक में कई फाइलों पर सहमति लेनी है और बजट बढ़वाना है। कुछ नयी परियोजनाएं भी हैं, जिन्हें चुनाव से पहले लांच करना ज़रुरी है। वैसे, यह बात अलग है कि इन परियोजनाओं के लिए ग्रीन सिग्नल वक्त पर मिल जाता तो शायद दीपावली की रौनक कई गुना बढ़ जाती। बहरहाल, बीते हफ्ते ही छठवीं बार मीटिंग पोस्टपोन्ड हुई है और नयी तारीख का इंतज़ार किया जा रहा है।

दुम छल्ला…
एमपी में इन दिनों हिंदी पर खूब पर चर्चा है। लिहाज़ा ‘डकैत’ और ‘बदमाश’ जैसी संज्ञाओं के भी गहराई से अर्थ निकाले जा रहे हैं। सीएम साहब ने बीते दिनों ग्वालियर में एक गुड्डा नाम के शख्स की चर्चा करते हुए अफसरों को निर्देश दिए थे कि गुड़्डा डकैत को ठिकाने लगाइए। लेकिन चंद रोज़ बाद ही इसी इलाके के एक कद्दावर मंत्री का बयान आ गया कि गुड्डा केवल बदमाश है। अब सियासी हलकों में डकैत और बदमाश शब्द की व्याख्या शुरू हो गई है। लोग अपने-अपने तरीके से व्याख्या के साथ गुड्डा के साथ बदमाश और डकैत जोड़ रहे हैं। बिटवीन द लाइन्स यह भी चर्चा है कि जब साहब ने डकैत कह ही दिया है तो उसकी दोबारा नयी और कमज़ोर संज्ञा देने की ज़रुरत क्या पड़ गई। इसके पीछे सियासी मायने भी खोजे जा रहे हैं।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)

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