आयकर छापों के सियासी मायने
एमपी के तीन बड़े कारोबारी घरानों पर पड़े आयकर छापों के सियासी मायने निकाले जाने लगे हैं। लोग यह तो समझ रहे थे कि देश के दूसरे हिस्सों के बाद एमपी में भी चुनाव से पहले कई जगह छापेमारी की जाएगी। बीते हफ्ते तीसरा बड़ा कारोबारी घराना भी इसकी चपेट में आ गया। तीसरी कार्यवाही तो अचानक अंजाम दी गई थी। कार्यवाही शुरू होने के बाद फिर से कुछ टीमें इस कार्यवाही का हिस्सा बनाई गईं। दरअसल, इन बड़े कारोबारियों के एमपी समेत दीगर राज्यों में भी कामकाज फैले हैं। शुरुआत इन सभी ने मध्य प्रदेश के भोपाल से ही की थी। अब ये देश के बड़े कारोबारियों में शामिल हो चुके हैं। इनकी सरकार से नज़दीकी के किस्से भी चौक-चौराहों पर किए जाने लगे हैं। लेकिन अब सियासी मायनों में इसे ‘दस्तावेज संग्रहण’ के तौर पर देखा जा रहे हैं। अब यह बात तो हम सब जानते-समझते हैं कि दस्तावेज संग्रहण के बाद सियासी नफा-नुकसान का आकलन करके समुचित समय पर उपयोग किया जा सकेगा।

रातीबड़ में फॉर्म हाउस सरकार
भोपाल के रातीबड़ इलाके में होने वाले हादसे पुलिस के लिए सिरदर्द साबित हो रहे हैं। हादसों के बाद निर्देश सीधे ऊपर से आते हैं, इसलिए अमल तुरंत शुरू हो जाता है। बीते दिनों एक दीवार गिरने से दो मज़दूरों की मौत हो गई, लेकिन किसी को कानों-कान खबर नहीं हुई। दरअसल, इस इलाके में बने फॉर्म हाउसों का ताल्लुक प्रदेश के दिग्गज नौकरशाह और नेताओं का है। जिनपर कोई अफसर आंच नहीं आने देने के लिए प्रतिबद्ध है। इसलिए यहां होने वाले हादसे केरवा के जंगलों से बाहर ही नहीं आ पाते हैं। दबाव सीधे राजधानी पुलिस पर बनाया जाता है। जहां से निर्देश आते हैं, वहां की बात टालना किसी अफसर के बूते की बात नहीं होती। ऐसे कई टॉप सीक्रेट्स हैं जो केरवा के जंगलों की आड़ में कैद हैं। जल्द ही इसी इलाके के एक और सीक्रेट आपके सामने पेश करेंगे।

तबादलों से चुनावी जमावट का दौर
तबादलों का वक्त खत्म हो चुका है। लेकिन कुछ तबादला आदेश अब भी निकल रहे हैं। ये आदेश सीधे हितग्राही तक पहुंचाए जा रहे हैं। राज्य सरकार के आदेशों की जानकारी तो आप सब को होगी ही। लेकिन हम आपको केंद्र सरकार के तबादला आदेशों की जानकारी दे रहे हैं, जिसकी जानकारी किसी प्लेटफॉर्म पर नहीं मिलेगी। दरअसल, संघ ने अपना काम शुरू कर दिया है। केंद्र सरकार के अलग-अलग विभाग और एजेंसियां एमपी में रहने वाले संघ पृष्ठभूमि के लोगों को संबंधित इलाकों में अलग-अलग जगह तैनात कर रहे हैं। आप इसे चुनावी जमावट भी कह सकते हैं। जो लोग चुनाव में अपना प्रभाव रखते हैं, उन्हें खास तौर पर चिन्हित कर विशेष जगह भेजा जा रहा है। इससे वे टारगेटेड इलाके में अपना प्रभाव दिखा सकते हैं। इस तरह की पोस्टिंग में कई जगह ऐसी हालत भी बनने लगी है कि इलाके के कद्दावर नेताओं के समीकरण बिगड़ने लगे हैं। भई, हर बार सकारात्मक परिणाम निकलना ज़रुरी नहीं है।

दिग्गजों के बार-बार दौरे से बढ़ी धड़कनें
ये ऐसे-वैसे दिग्गज नहीं हैं। संघ प्रमुख मोहन भागवत और पीएम मोदी के दौरों की हलचल से ही कई लोगों की सांसे ऊपर नीचे हो जाती हैं। बीते दिनों पीएम मोदी के लगातार एमपी में कार्यक्रम और मोहन भागवत के दौरों ने कई सियासी दिग्गजों की सांसे फुला दी हैं। एक कार्यक्रम की तैयारी में जुटे रहने के दौरान भी सांसे अटकी रहती हैं कि दूसरे दिग्गज का कार्यक्रम तो नहीं आने वाला है। बीते डेढ़-दो महीने में ऐसा ही हुआ है। वैसे, गृह मंत्री अमित शाह के दौरे की तैयारियों के लिए तो वक्त मिला लेकिन राष्ट्रपति के अचानक तय हुए दौरे में पसीने आ गए थे। दरअसल, दिग्गजों के दौरों से सियासी माहौल बनाने वाले सक्रिय हो जाते हैं। पार्टी के लिए ये दौरे चुनावी ज़मीन को उपजाऊ बनाने से जोड़कर देखती है, लेकिन माहौल बनाने वाले इसे भविष्य की उठापटक को जोड़ देते हैं। बहरहाल, यह बता दें कि ये दौरे अब कम नहीं होने वाले हैं। गुजरात चुनाव के दौरान यदि दिग्गज एमपी की तरफ एकाग्र हो जाएं तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

कबूतर और केकबाज़ी से मुसीबत
वैसे तो सियासी दिग्गजों की हर एक गतिविधि निशाने पर रहती है। इसलिए खूब सावधानी बरती जाती है। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ बीते दिनों केक काटने को लेकर बीजेपी के निशाने पर आ गए। कार्यकर्ताओं ने मंदिर की आकृति का केक कटवा दिया। इसके बाद कमलनाथ के दफ्तर ने सलाह जारी कर दी है कि साहब तो मासूम हैं, अब उनकी हर गतिविधि के पहले एक निगरानी टीम काम करेगी। यह सलाह जारी कर दी गई है कि साहब को कबूतर और केकबाज़ी से दूर रखा जाए। कबूतर उड़ाने के चक्कर में कहीं विपक्षी दर कबूतर को पिंजरे में रखकर परेशान करने का मुद्दा नहीं उछाल दें। दरअसल, कुछ खास बीजेपी नेता कमलनाथ और कांग्रेसी दिग्गजों पर नजर रखने का काम कर रहे हैं। आदेश कांग्रेस के निकलते हैं, बीजेपी के निशानेबाज़ ट्वीट करके कांग्रेस को जवाब देने पर मजबूर कर देते हैं। ऐसे में कांग्रेस विपक्ष में रहने के बावजूद ज्यादातर मुद्दे पर केवल जवाब देने की हालत में रह जाती है।

दुमछल्ला…
सिंधिया बीजेपी की जड़ों में गज़ब विश्वास पैदा कर रहे हैं। वे संघ, आम कार्यकर्ता और दिग्गज नेताओं से लगातार संपर्क में रहते हैं। किसी भी इलाके में अपने दौरे के दौरान वे इस खास रणनीति पर काम कर रहे हैं। सीधे नागपुर से कनेक्ट होना या भोपाल में समिधा में एंट्री मारने से तो बीजेपी के नेता भी सकपका रहे हैं। हालात यह हैं कि इससे दिग्गजों और उनके समर्थकों में असुरक्षा का माहौल बनने लगा है। यह बात सभी जानते हैं कि सिंधिया अपने समर्थकों के लिए समर्पित हैं। उनके लिए वे ज़िद करने में भी संकोच नहीं करेंगे। यदि संघ से ज्यादा नज़दीकियां हो गईं तो समर्थकों का पत्ते कट सकता हैं। बीजेपी दिग्गजों के समर्थकों के बीच अब यह चर्चा खुलकर होने लगी है।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)

Read more- Health Ministry Deploys an Expert Team to Kerala to Take Stock of Zika Virus