कांग्रेसी दिग्गज को मदद से इनकार
दिल्ली में बैठे एक नेता कोर्ट-कचहरी के मामलों में हर कांग्रेसी की मदद करते थे, लेकिन बीते दिनों दिल्ली में ऐसी हवा बही कि वे यूपी की दिग्गज पार्टी ने रेड कार्पेट की मदद से राज सुख भोगने लगे। अब एमपी के दिग्गज कांग्रेसी को उनकी मदद लगी तो वे हमेशा की तरह दिल्ली के उन्हीं दिग्गज के दफ्तर में अर्जी लगाने पहुंच गए। लेकिन इस बार साहब के तेवर अलग थे। दिल्ली वाले दिग्गज ने मदद देने से दो टूक इनकार कर दिया। एमपी के ये दिग्गज कांग्रेसी को अपनी ही पार्टी के दूसरे दिग्गज से मदद ज़रूर मिल गई। लेकिन वे जिन संबंधों की बुनियाद की आस में दिल्ली वाले साहब से मिले थे, उनका तेवर देखकर तमतमा गए हैं। वैसे पार्टी के अलंबरदार भरपूर उनकी इज्जत करते हैं। दिल्ली में भी जलवे हैं, लेकिन जब पर्सनल मुसीबत आई तो दिल्ली वाले साहब के तेवरों ने हिला सा दिया है।

मंत्रियों की लिस्ट अटकी, नयी की तैयारी
मंत्रालय के आला अफसरों को भनक लग गई है कि सरकार चुनाव से पहले मनमाफिक पोस्टिंग के लिए तबादलों की शुरुआत कर सकती है। जाहिर है, मंत्रालय के गलियारों से होते हुए यह बात मंत्रियों की कैबिनों में भी फैल गई। चूंकि मंत्रियों की एक वाजिब लिस्ट फिलहाल कोर्डिनेशन की धूल खा रही है और मंत्रियों और उनके स्टाफ के लिए तगादों का विषय बन गई है। तबादलों की शुरुआत की खबर पर एक बार फिर यह संभावना बन गई है कि मंत्रियों की बंगलों पर रौनक बढ़ जाएगी। ऐसे में कामकाज फिर शुरू किया जा सकता है। लेकिन यह डर भी सता रहा है कि हश्र पुरानी फाइल जैसा नहीं हो जाए। दरअसल, पुराने आवेदकों से तगादे टेंशन के बीच नए-नए आवेदकों की जमात की आमद की कल्पना से ही रोम-रोम खिलने लग रहा है। इंतज़ार है तो बस इतना कि घोषणा जल्द हो जाए।

मंत्रियों से जामवाल की कमरा बंद चर्चा
प्रदेश कार्यसमिति बैठक में जामवाल ने कुछ मंत्रियों के साथ कमरा बंद बैठक भी की। ये मंत्री सदैव एक साथ रहने और दिखाई देने के लिए जाने जाते हैं। इनमें से ज्यादातर इन दिनों किसी ना किसी विवाद की वजह से सुर्खियां बटोर रहे हैं। जामवाल ने इन मंत्रियों को अपने लहज़े में नसीहत दी है कि बेफिक्र कुछ भी करने वाला अंदाज़ महंगा भी पड़ सकता है। पार्टी में ऊपर से नीचे तक निगरानी की व्यवस्था है। ऐसे विवादों के ज़रिए सुर्खियों में आने से भविष्य में बातें बिगड़ भी सकती हैं। दरअसल, बीजेपी में नुकसान होने के बाद अंदाज़ा होता है कि वजह क्या रही। कई बार विवाद के धरातल में आने से पहले ही नुकसान हो चुका होता है। यदि विवादों फ्लोर पर आ जाएं तो नुकसान होने की संभावना ज्यादा होती है। बातें तो और भी हैं… लिहाजा, इशारों को अगर समझो कुछ राज़ को राज़ रहने दो…।

सोशल पोस्ट के झटके, सकते में बीजेपी
बात निकली है तो एक और घटनाक्रम से अवगत करा दें। इन दिनों सोशल मीडिया पर कुछ लोगों की पोस्ट बीजेपी को परेशान कर रही है। इस तरह की पोस्ट बीजेपी परंपरा का हिस्सा नहीं है। दरअसल, सोशल मीडिया पर कुछ नेताओं की कुंठा निकल रही हैं। ये सब एक ‘विशेष’ नेताजी से ताल्लुक रखते हैं। कुछ लोग एमपी के मान्य नेताओं की तस्वीरों को दरकिनार कर पोस्ट कर रहे हैं। तो कुछ अपने विचारों के जरिए कुंठा निकाल रहे हैं। ऐसी कुंठा नेताओं के मन में चल रहे बवाल को प्रदर्शित करती है। आमतौर पर बीजेपी कुंठाग्रस्त नेताओं की पीठ पर हाथ रखकर ढाढस बंधाने का काम करती है। लेकिन लगातार पोस्ट से लगता है, फॉर्मूला आज़माया नहीं जा रहा है या फिर असर नहीं कर रहा है। दोनों ही परिस्थितियां बीजेपी से मेल नहीं खाती है। खैर चुनावी दौर है, देखना है ये घटनाक्रम आने वाले दिनों में क्या गुल खिलाता है।

कांग्रेसी विधायकों की नापतौल जांच
यह बात तो जगजाहिर हो चुकी है कि कमलनाथ जिसे भी टिकट देंगे, नापतौल कर ही देंगे। नापतौल में खरे उतरे वजनदार नेताओं को चुनाव लड़ने का इशारा भी कर दिया गया है। जो लोग इस इशारे को नहीं समझ रहे हैं, वे चुनावी मैदान में जमकर रैलियां और प्रदर्शन करके खुलकर तैयारी में जुटे नेताओं की एक्टिविटी देख सकते हैं। बहरहाल, पिछले दिनों कुछ विधायकों को पता चला कि उनकी नापतौल शुरू हो गई है तो उन्होंने कमलनाथ दरबार में दस्तक देने में देर नहीं की। पांच हजार से कम वोट से जीते विधायकों की कुंडली भी कमलनाथ ने तैयार करनी शुरू कर दी है। जो खरा उतरेगा टिकट उसे ही मिलेगा। टिकट कटने की आशंका के चलते कमलनाथ के दरबार में रोना शुरू कर दिया गया। लेकिन नाथ ने भी साफ कर दिया कि ना मेरी ना तेरी… जो सर्वे में फिट बैठेगा, वही बजाएगा चुनावी समर में रणभेरी। अब बाकी के उम्मीदवार सर्वे वाली ज़मीन पर अपने बीज डालना शुरू कर सकते हैं।

दुमछल्ला…
राजनीति में तो साम, दाम, दंड, भेद का इस्तेमाल होता ही है। हम बताते हैं एक नए ‘बुकलेट अस्त्र’ के बारे में। भोपाल की एक विधानसभा सीट पर एक अन्य नेताजी ने टिकट लेने की कोशिशें शुरू करके सेंधमारी की कोशिश शुरू कर दी थी। नतीजतन मौजूदा विधायकजी ने ‘बुकलेट अस्त्र’ का इस्तेमाल किया। एक ऐसी बुकलेट छपवाने का ऑर्डर दे दिया जिससे व्यापमं का कच्चा-चिट्ठा लोगों के बीच में आ जाता। सेंधमारी वाले नेता भी कम तिकड़मी नहीं थे। मौजूदा विधायक के घर-दफ्तर में बैठे अय्यारों के ज़रिए उन तक खबर पहुंची तो होश फाख्ता हो गए। बुकलेट की प्रिंटिंग रोकने के लिए ज़मीन-आसमान एक कर दिए। कांग्रेस के अंदर मची इस सियासी-मारकाट को टालने के लिए दिग्विजय सिंह एक्टिव हुए। दिग्गी दरबार में मौजूदा विधायक ने किसी भी तरह की प्रिंटिंग प्रयास से इनकार कर दिया। दिग्गी की कोशिशों से बुकलेट वितरण फिलहाल तो थम गया है। लेकिन अब चुनाव लड़ने की कोशिश करने वाले नेताजी पर संकट आ गया है। वे जहां से कोशिश करेंगे, उस जगह का दावेदार बुकलेट अस्त्र रिलीज कर सकता है। वितरण भले ही टल गया है, लेकिन बुकलेट पेपर लीक हो गया है।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)

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