बीजेपी में पनप रहा बवंडर
सूबे के एक अंचल से इसी महीने एक बड़ा विस्फोट होने वाला है। यह अंचल बीजेपी का ठेठ गढ़ कहा जाता है। बीते चुनाव में यहां कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था। अब नाउम्मीदी के बाद यहां जो हलचल होगी वह पोखरण विस्फोट से कम नहीं होगी। इस विस्फोट से बीजेपी को जो नुकसान होगा सो होगा, कांग्रेस को भी बड़ा नुकसान हो सकता है। आपको यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि एक पार्टी का नुकसान हो रहा है तो दूसरी पार्टी को फायदा क्यों नहीं हो रहा है। इसका उत्तर आपको तब अपने आप पता लग जाएगा, जब वह विस्फोट हो जाएगा। यहां लिखी हर पंक्ति का हर शब्द आने वाले दिनों में तस्वीर बनकर आपके सामने आने वाला है।दरअसल, इस अंचल में भारी विद्रोह की तैयारी है। यह विद्रोह सियासत में भारी हलचल मचा सकता है। इसकी तैयारी कोई एक-दो दिन में नहीं हुई है। बीते लंबे अर्से से बीज बो दिए गए हैं। अब बस हलचल की बारी है। मार्च के दूसरे पखवाड़े का इंतज़ार कीजिए।

जीतू की हीरोगिरी के चर्चे
2 मार्च के लिए बीजेपी और कांग्रेस ने पब्लिसिटी की जो फॉरवर्ड प्लानिंग कर रखी थी, विधानसभा में हुए ‘जीतू प्रकरण’ की वजह से सारा गुड़ गोबर हो गया। चंद मिनिट की तनातनी की वजह से मामला जीतू पटवारी के निलंबन तक पहुंच गया। बीजेपी और कांग्रेस इसमें अपने-अपने हिस्से की जीत समझ रहे हैं। लेकिन इस घटनाक्रम के साइड इफेक्ट से जो दूसरे मामले पनप गए हैं। इससे जो आग भड़की है, उससे कई दूसरे किरदार भी चपेट में आने लगे हैं। दोनों तरफ से आर-पार के मूड में एक दूसरे को पूरी तरह खत्म करने के हालात बनते नजर आ रहे हैं। लगातार हालात बिगड़ रहे हैं। अब इसमें पॉजिटिव खबर सुनिए। मध्य प्रदेश के इतिहास में कभी ऐसा नहीं हुआ है कि दोनों पक्ष एक दूसरे को ही तहस-नहस कर दें। अब तक के इतिहास में गंभीर गलती करने वाले को भी माफ कर दिया जाता है। इसी सरकार के दौरान सदन ऐसी घटनाओं का साक्षी रहा है। अभी सदन शुरू होने में वक्त है, तब तक दोनों तरफ का गुस्सा ठंडा होने की उम्मीद है। वैसे, यह बता दें कि होली के पहले ही ‘ठंडाई’ देने का सिलसिला शुरू हो चुका है।

एक नमाज़ पर बवाल, दूसरा तैयार
एक टीचर ने स्कूल में नमाज़ पढ़ी जिससे महकमा ही नहीं, पूरा मंत्रालय हिल गया। जगह-जगह चर्चाएं शुरू हो गईं। अफसरों को यह मालूम था कि मौजूदा दौर की सियासत में ऐसे मामले तुरंत बड़ा बखेड़ा कर देते हैं। इसलिए ऐहतियाती कदमों की तैयारी चालू कर दी गई हैं। महकमे के सीनियर अफसरों ने मामले को खुद ही हैंडल करना शुरू कर दिया है। फिलहाल सियासी हलचल किन्हीं दूसरे मुद्दे पर है। पर जल्द ही ये तस्वीरें फिर से सुर्खियां बटोरेंगी यह तय है। अहम बात यह है कि एक टीचर की नमाज़ से इतनी हलचल है, लेकिन दूसरा एक और मामले की नींव रख दी गई है, जो विवादों में पड़ सकता है। दरअसल, इसी महकमे के एक दफ्तर ने आदेश निकालकर दफ्तर के एक हिस्से में नमाज़ पढ़ने के लिए स्थान मुकर्रर कर दिया है। यह आदेश फिलहाल सीनियर अफसरों के संज्ञान में नहीं आया है। दूसरे, यह आदेश सरकारी फाइलों से बाहर निकल आया है। जाहिर बात है मामला फिर उलझेगा।

भोपाल में 100 करोड़ का इन्वेस्टमेंट!
कर्नाटक के एक लीडर ने भोपाल में 100 करोड़ की प्रॉपर्टी पसंद कर ली है। यह प्रापर्टी अरेरा कॉलोनी के अलग-अलग हिस्सों में है। कुछ का सौदा होकर लिखापढ़ी खत्म हो चुकी है। कुछ प्रॉपर्टी में औपचारिकताएं बाकी हैं। खास बात यह है कि इस लीडर का मध्य प्रदेश से कोई वास्ता नहीं रहा है। लिहाज़ा इसे इन्वेस्टमेंट के तौर पर देखा जा सकता है। सुना तो यह भी जा रहा है कि लीडर को अपनी कमाई का इस्तेमाल दीगर शहर में करना था। भोपाल जैसे शहर पर किसी की निगाह नहीं जाती, इसलिए इसे पसंद किया गया है। बहरहाल, यह ज़रूर बता दें कि प्रॉपर्टी इन्वेस्टमेंट के लिहाज़ से भोपाल की अरेरा कॉलोनी हर रसूखदार को पसंद आ रही है। ब्रोकरी कर रहे टॉप लेवल के लोग इस जगह का प्रस्तुतिकरण ही इस तरह करते हैं कि इन्वेस्टर तुरंत हां कर देता है। अब मध्य प्रदेश का कोई शख्स यहां प्रॉपर्टी लेगा तो तुरंत हल्ला मच जाएगा। लिहाज़ा, वे अपनी कमाई का इस्तेमाल अन्य जगहों पर करते हैं। इसलिए यहां की प्रॉपर्टी पर बाहरी इन्वेस्टर्स हाथ रखने लगे हैं।

असेंबली में अफसर दीर्घा के किस्से
महज़ पांच दिन चली विधानसभा में जितनी किस्सागोई राजनीति से जुड़ी रही, उतनी ही अफसरों को लेकर भी की गई। दरअसल, सदन में अधिकारी दीर्घा पर सबकी नजर होती है। इस बार उनकी चर्चा राज्यपाल के अभिभाषण से ही शुरू हो गई थी। शुरुआत में यह चर्चा हुई कि राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान अधिकारी दीर्घा खाली-खाली रही। फिर चर्चा तब शुरू हुई जब जूनियर अफसर आगे वाली कुर्सियों पर बैठ गए। सीनियर अफसर इस दौरान दीर्घा में आए तो जगह नहीं मिलने की वजह से उन्हें तुरंत दीर्घा से बाहर जाना पड़ गया। एक बार तो यह स्थिति भी बनी कि विधानसभा स्टाफ को दखल देकर कहना पड़ा कि सीनियर अफसर बाहर खड़े हैं, आप पीछे बैठ जाइए। उस वक्त गफलत की स्थिति बन गई जब जीतू पटवारी ने अपने भाषण के दौरान वन विभाग की एक घटना का ज़िक्र कर दिया। उस दौरान सरकार के सामने स्थिति स्पष्ट करने के लिए अफसर ही मौजूद नहीं थे। उस वक्त मंत्री विश्वास सारंग ने भागदौड़ करके मामला समेटा। एक दफा तो एक मंत्री सदन में चर्चा के दौरान ही सवाल खड़े कर दिए गए कि सदन में अफसर मौजूद नहीं रहते हैं।

दुमछल्ला…
चंद रोज़ पहले एक सुसाइड हो गया। खुदकुशी एक टीटी नगर इलाके के एक शख्स ने की थी। पुलिस ने जब शुरुआती बयान दिया कि कोई सुसाइड नोट नहीं मिला। बाद में एक सुसाइड नोट अचानक प्रकट हो गया। जिसमें एक विशेष शख्स का बेटा फंस सकता था। लेकिन अब सुसाइड नोट की प्रामाणिकता पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं। जिसमें विशेष पुत्र साफ बचता हुआ निकल रहा है। मामला हाई प्रोफाइल है। जैसे नो वन किल्ड जैसिका हुआ था। वैसे ही सुसाइड की वजह का पता भी नहीं लग सकेगा। सीनियर पुलिस अधिकारियों के पास मामला पहुंचा है। देखना यह है कि तहकीकात आने वाले दिनों में क्या रुख लेगी?

(संदीप भम्मरकर की कलम से)

Read more- Health Ministry Deploys an Expert Team to Kerala to Take Stock of Zika Virus