‘प्यारे’ के बहाने टारगेट पर रसूख़वाले

भोपाल। नाबालिग बच्चियों के यौन शोषण कांड में नया अपडेट आ रहा है। यह अपडेट कोर्ट से नहीं है, बल्कि ऐसी कवायद से है जिससे कई रसूख़दारों के नाम इस कांड में आ जाएं। एक गैंग तो सक्रिय हो भी गयी है। यह गैंग प्यारे मियां के दोस्तों का नाम शामिल करने की जुगत तलाश रही है। ये वो दोस्त-यार हैं जिनके साथ प्यारे मियां की महफिलें जमती थी। इस कोशिश को तकनीकी तौर पर इतना पुख्ता करने की पूरी तरकीब भिड़ाई जा रही है, जिससे कि रसूखदार लोगों से पूछताछ शुरू हो जाए और वे कोर्ट की कार्यवाही का हिस्सा बन जाएं। खबर तो यह भी है कि इस कवायद पर अमल शुरू हो चुका है और इसे अदालती कार्यवाही का हिस्सा बनाया जा चुका है। एक अहम बयान इसमें हो चुका है, इस बयान में बाकायदा नाम लेकर बताया गया है कि महफिलें कहां-कहां और कैसे जमती थीं। जगह का नाम और चश्मदीद भी सबूत बतौर कोर्ट की कार्यवाही का हिस्सा बन चुके हैं। इसके बाद अब प्यारे के करीबी रहे लोगों को सांप सूंघ गया है। यदि आगे कुछ हुआ तो उनका नाम पूछताछ में शामिल हो जाएगा और प्यारे के सिर पर मंडरा रही बदनामी के छींटे उन रसूखदारों पर भी पड़ेंगे। जिन पर आंच आ रही हैं, उनकी तरफ इशारा भी कर देते हैं, एक हैं कानून के बड़े जानकार, दूसरे एक पुराने अफसर, एक कारोबारी का ताल्लुक बैरागढ़ से है और नाम के साथ डॉक्टर लगाते हैं, एक को आप इशारों से नहीं पहचान पाएंगे लेकिन कारोबारी पार्टनरशिप केबलवालों के साथ है। बाकी आप जानिए।

तालमेल का घालमेल में माथापच्ची!

सरकारी मशीनरी की चाल बिगड़ रही है। रफ्तार नहीं पकड़ पा रही है। जैसे-तैसे तो मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ, लेकिन प्रॉपर कामकाज के लिए कई मंत्रियों का तालमेल विभाग के प्रशासनिक मुखिया यानी पीएस या एसीएस से नहीं बन पा रहा है। पटरी नहीं बैठ रही है तो महकमे के कामकाज पर असर पड़ रहा है। मंत्रियों के काम में आला अफसर अड़ंगे डाल दे रहे हैं, कई जगह पर विवाद के हालात हैं। मंत्रियों के काम अटके पड़े हैं और ये बात मंत्रियों ने सीएम साहब के साथ हुई वन टू वन चर्चा में पहुंचा दी है। मंत्रियों के हिसाब से पीएस-एसीएस तय करने की कवायद शुरू हो भी चुकी है। लेकिन यहां भी मामला माथापच्ची वाला हो गयी है। कई मंत्री अभी भी अपनी पसंद के पीएस को बैठाने में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं। अंदरखाने तो चर्चा ये भी है कि बीजेपी के रणनीतिकारों ने पांसा फेंक दिया है कि मंत्रियों की मनमानी पर कंट्रोल होना चाहिए। इसलिए विभाग प्रमुख की कुर्सी पर वही बैठे जो ऊटपटांग फैसलों को अमल में आने से रोक सके। कांग्रेस की सरकार के बाद अस्तित्व में आयी नयी शिवराज सरकार में बीजेपी नहीं चाहती है कि उस पर भ्रष्टाचार या गलत-सलत फैसलों का कोई आरोप लगे।

निकाय चुनाव में अप्रत्यक्ष प्रणाली की फांस

ये खबर उन लोगों के लिए निराशाजनक है जिन्हें निकाय चुनाव बेहद करीब दिखायी दे रहा है। दरअसल, बीजेपी में एक तबका अभी तक इस बात को लेकर तैयार नहीं है कि निकाय चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से हो। इसे निकाय चुनाव टालने का एक आसान फंडा भी कहा जा रहा है। दरअसल, पिछले विधानसभा सत्र में निकाय चुनाव को प्रत्यक्ष प्रणाली से कराने के अध्यादेश को पटल पर नहीं रखा जा सका और ये विधेयक नहीं बन पाया तो तय वक्त पर ये अध्यादेश खुद-ब-खुद समाप्त हो गया। इसके बाद चुनाव आयोग के जानकारी मांगने पर खुद नगरीय प्रशासन विभाग ने जानकारी दी कि वर्तमान में चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से ही कराने का नियम लागू है। सियासी जानकार ऐसे फैसलों को गलती या नज़रअंदाजी नहीं मानते हैं बल्कि इसे बड़ा पैंतरा बताते हैं। दरअसल, कोविड परिस्थितियों के बाद कोई भी चुनाव बड़ा जोखिम हो सकता है। बीजेपी की हार छोटी हो या बड़ी कांग्रेस को बड़ा जीवनदान दे सकती है। दमोह उपचुनाव में हार के बाद बीजेपी के बड़े रणनीतिकार तुरंत निकाय चुनाव जैसा बड़ा चुनाव कराने का कदम उठाने को ठीक भी नहीं मान रहे हैं। ऐसे में अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराने का कदम बीजेपी के अंदर ही इन चुनाव को होल्ड कराने का एक बहाना दे सकता है।फिर बीजेपी के सामने आने वाले उपचुनाव भी हैं जो 1 लोकसभा सीट और 3 विधानसभा की खाली सीट पर होने हैं। ऐसे में इसी के जरिए जनता में पैठ और अपनी तैयारी परखने का मौका मिल सकता है। जब बीजेपी को अपनी ताकत और जनता का रुख परखने के लिए उप चुनाव का मौका है तो फिर निकाय चुनाव जैसा कदम उठाने की गलती क्यों की जाए। यदि शतरंज की इसी चाल का इस्तेमाल किया जा रहा है तो यकीन मानिये निकाय चुनाव अगले साल के मार्च तक ही होंगे। वैसे भी बीजेपी अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव को भ्रष्टाचार का मौका करार दे चुकी है।

ग्वालियर में कांग्रेस का नया क्षत्रप कौन?

सिंधिया के बीजेपी में जाने के बाद ग्वालियर-चंबल अंचल में कांग्रेस में परंपरानुसार इलाके के क्षत्रप की होड़ शुरू हो गई है। अब चंबल की धरती पर क्षत्रप भी वैसा ही होना चाहिए। बड़ा दावा आ रहा है दिग्गज दिग्विजय सिंह के सुपुत्र जयवर्धन सिंह का। तर्क ये है कि चॉकलेटी इमेज वाले महाराज को दूसरे चॉकलेटी चेहरे यानी युवराज से ही वाजिब चुनौती मिलेगी। हालांकि चंबल पर क्षत्रप के दावे की शुरुआत चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी ने की थी। लेकिन उन्हें अजय सिंह और डॉक्टर गोविंद सिंह की जोड़ी ने पटखनी दी। अजय सिंह ने खुद भी उप चुनाव में मौजूदगी दिखाकर दावा प्रस्तुत किया जो वक्त के साथ धुंधला हो गया। अब दिग्विजय सिंह समर्थकों ने जयवर्धन सिंह की पैरवी शुरू कर दी है। जेवी को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाने की सलाह भी दे डाली। दरअसल, कांग्रेस में क्षत्रप का बड़ा रोल होता है, आलाकमान क्षत्रप की सलाह ज़रूर लेता है, कमलनाथ भी ये रिवाज़ अपनाते हुए उनके फीडबैक को नज़रअंदाज़ नहीं करते हैं । ऐसे में चंबल के क्षत्रप को लेकर बयानबाज़ी शुरू हो गई है। जेवी ने कोरोना की दूसरी लहर में अपने संपर्कों का इस्तेमाल करके सिंधिया के प्रभाव वाले इलाके गुना में ऑक्सीजन की किल्लत को दूर किया। इसका क्रेडिट भी जेवी को मिला। कोरोना की दूसरी लहर में सिंधिया भी गुना में उतनी सक्रियता नहीं दिखा पाए। अब यही सारे तर्क देकर जेवी ने ज़मीन तलाशनी शुरू कर दी है। अब सुनिए फायदे, यदि क्षत्रप बन गए तो टिकट वितरण में एकतरफा चलेगी।

भोपाल में दफ्तर की तैयारी में सिंधिया

सिंधिया जल्द ही भोपाल में अपना दफ्तर खोलने वाले हैं। यहां उनका सरकारी-गैर सरकारी स्टाफ पूरे टाइम बैठेगा। ये पहला मौका होगा जब सिंधिया महल से बाहर भोपाल में दफ्तर बनाएंगे। सारी तैयारी हो चुकी हैं। ये दफ्तर सिंधिया के लिए अलॉट भोपाल वाले बंगले में होगा। दफ्तर में प्रदेश भर में फैले सिंधिया समर्थक आवेदन दे सकेंगे, जिनके निराकरण के लिए प्रॉपर सिस्टम तैयार किया जाएगा। हालांकि ये तरकीब सिंधिया ने अपने समर्थकों को आ रही दिक्कतों को दूर करने के लिए बनायी है। लेकिन चर्चाएं इस बात की शुरू हो गई हैं कि कहीं ये समानांतर सरकार का रूप नहीं ले ले। सिंधिया का सरकार में रुतबा और शिवराज से ट्यूनिंग से प्रदेश भर में ये संदेश साफ हो गया है कि सिंधिया की सिफारिशों पर तुरंत अमल करना है। इसका असर भी हुआ, जो सिफारिशें बीजेपी के स्थानीय दिग्गजों को सिंधिया ने सीधे तौर पर की, वे टाली नहीं गईं। सिंधिया समर्थक बीजेपी की जिला कार्यकारिणी में एडजस्ट किए गए। अफसरों में भी यही संदेश है। अब देखना ये है कि सिंधिया का भोपाल में नया दफ्तर प्रदेश की सियासत में क्या गुल खिलाता है।

तबादले खुले, फाइलों में अटके

तबादले 1 जुलाई को खुल गए थे, लेकिन अब फाइलों में अटक गए हैं। तबादले का आवेदन देने वालों को लग रहा था कि काम अब तुरंत हो जाएगा, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है। दरअसल लालफीताशाही सारे आदेश एक साथ निकालने का मन बना चुकी है। हालात ये हैं कि तबादले का फाइनल आदेश आने तक जुलाई का आखिरी हफ्ता शुरु हो सकता है। दरअसल, सबकुछ फाइनल होने के लिए मंत्रीजी की चिड़िया ज़रूरी है। फाइलें यहां पहुंच जरूर रही है लेकिन चिड़िया नहीं बैठ रही है। मंत्री के स्टाफ को साफ हिदायत है कि 25 जुलाई से पहले कुछ नहीं होगा। लेकिन राहत की एक खबर भी है, जिन आवेदकों के जुलाई के पहले आवेदन दे दिए थे, उनके आदेश धीरे-धीरे निकलने लगे हैं, उन लोगों के लिए महकमा केवल तबादला खुलने की इंतज़ार कर रहा था। प्रक्रिया पूरी थी इसलिए फुटकर आदेश जारी किए जा रहे हैं। जिन्होंने जुलाई में आवेदन दिए हैं वे अपनी धड़कनों को थामे रखिए, धैर्य बनाए रखिए और केवल इंतज़ार कीजिए।

दुमछल्ला…

मालवा से आने वाले सत्तापक्ष के एक विधायक को लेकर एक बड़ा खुलासा हो सकता है। एक मैडम अंतरंग तस्वीरें लेकर परफेक्ट प्लेटफॉर्म की खोज में हैं। कुछ लोगों से संपर्क हो गया है। अब जो इधर-उधर मुंह मारते फिरते हैं वो चैक कर लें कि कहीं पाप का घड़ा भर तो नहीं गया है।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)