रायपुर. छत्तीसगढ़ देश के बागवानी मानचित्र में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, बागवानी फसलों का क्षेत्रफल लगातार बढ़ रहा है. सरकार द्वारा प्रबंधित विभिन्न प्रकार की परियोजनाओं के कारण किसानों का बागवानी फसल उगाने का रुझान बढ़ा है. वहीं विशेषज्ञों का कहना है कि बागवानी फसलों की खेती पारंपरिक कृषि की तुलना में तीन गुना अधिक लाभदायक है. इस समय देश भर में जैविक खेती बनाने में एक मूक क्रांति है. जैविक रूप से उगाई जाने वाली सब्जियों, मसालों, फलों, सुगंधित और औषधीय पौधों के घरेलू और वैश्विक बाजार में जबरदस्त वृद्धि हो रही है. बड़े पैमाने पर शुष्क भूमि वाले छत्तीसगढ़ राज्य में जहां पारंपरिक प्राकृतिक खेती के तरीकों का अभी भी पालन किया जा रहा है, इन भूमि का जैविक खेतों में रूपांतरण बहुत आसान है.

छत्तीसगढ़ में फल और सब्जी की फसलों को बढ़ावा दिया जाता है. ऐसा करने के लिए किसानों को शून्य ब्याज दर पर 3 लाख रुपये तक का ऋण जारी किया जाता है. इसके साथ ही किसानों को बागवानी की अच्छी खेती के लिए ट्रेनिंग भी प्रदान किया जाता है. खासियत ये है कि राज्य सरकार कई तरह के सिंचाई उपकरणों के लिए अनुदान भी प्रदान करती है. इससे कई किसानों को भी फायदा हुआ है और आय में वृद्धि हुई है. यही कारण है कि छत्तीसगढ़ में बागवानी फसलों का क्षेत्रफल अब बढ़कर 834,311 हेक्टेयर हो गया है. यहां हर साल 11236,447 मीट्रिक टन का उत्पादन भी होता है.

अधिकारियों का कहना है कि सरकार द्वारा प्रबंधित विभिन्न प्रकार की परियोजनाओं के कारण किसानों का बागवानी फसल उगाने का रुझान बढ़ा है. वहीं विशेषज्ञों का कहना है कि बागवानी फसलों की खेती पारंपरिक कृषि की तुलना में तीन गुना अधिक लाभदायक है. छत्तीसगढ़ मुख्य रूप से बड़ी मात्रा में टमाटर और हरी मिर्च मिर्च का उत्पादन करता है. इसके अलावा छत्तीसगढ़ में कई प्रकार की भाजी उगाई जाती है, जिनमें पलक, लालभाजी, चेंचभाजी, चौलाईभाजी, पटवाभाजी, मुंगाभाजी, कुसुमभाजी और लुकोंभाजी शामिल हैं. यह मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ में खाया जाता है.

फूलों की भी खेती

वहीं सब्जियों में भिंडी, परवल, फूलगोभी, गोभी, भाटा, करेला, सेमी, कुंदरा, कटहला और मुनगा की खेती की जाती है. जबकि फल अंगूर, केला, अनानास, पपीता, काजू और अमरूद का उत्पादन करता है. कई तरह के फूलों की खेती भी की जाती है.

राज्य सरकार द्वारा प्रशासित योजनाएं

राज्य सरकार कछार नदी/किनारों पर सब्जी उत्पादकों के छोटे समुदायों को फल उगाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए ड्रिप सिंचाई योजना, एक सामुदायिक-फेसिंग योजना और पोषण बाड़ी विकास योजना शुरू कर रही है. इसी तरह संरक्षित कृषि में ग्रीन हाउस, पंखा प्रणाली और स्थलों के निर्माण के लिए अधिकतम 4,000 वर्ग मीटर के लिए कुल लागत का 50 प्रतिशत लाभार्थी को सहायता दिया जाता है. इसी तरह, एक नैचुरल वेंटीलेटैड सिस्टम, एक टयूब्यूलर स्ट्रक्चर शेडनेट हाऊस और एक पॉली हाउस के निर्माण में, कुल लागत के 50 प्रतिशत के लिए अनुदान प्रदान किया जाता है, जो प्रति लाभार्थी अधिकतम 4,000 वर्ग मीटर तक सीमित है. विभाग में संचालित किसान 1800-180-1511 कॉल सेंटर के माध्यम से भी किसानों से परामर्श लिया जाता है.