रायपुर। मधुमेह (शुगर) वक्त के साथ खास से आम हो चुका है. उम्रदराज व्यक्तियों के साथ-साथ अब यह बीमारी बच्चों को भी अपनी जद में ले रही है. बीमारी भले ही आम हो गई हो, लेकिन इसकी दवा आम नहीं हुई है. ऐसे में सरकारी अस्पताल में नि:शुल्क मिलने वाली मधुमेह की दवा गरीबों को भारी राहत देती है. लेकिन बीते कुछ महीनों से दवा की किल्लत ने गरीबों को बेबस कर दिया है.
मधुमेह पीड़ित लोगों के लिए राज्य सरकार अलग-अलग मात्रा वाली दवा (इंसुलिन) की खरीदी करती है. इनमें से ज्यादा इस्तेमाल किए जाने वाले 10 दवाओं में Glibenclamide, Glimepiri de जैसी अलग-अलग मात्रा वाली दवाओं के साथ इंसुलिन की खरीदारी की जाती है. लेकिन महीनों से यह दवा सरकारी अस्पतालों से गुम है.
जरूरत की दवाओं में शामिल होने के बाद भी उपलब्धता शून्य है. वहीं अंदरखाने से जो बात सामने निकलकर आ रही है, वह और चिंता पैदा करती है. बताया जा रहा है दवा की तो खरीदी हो रही है, लेकिन कहां खप रहा है, इसकी कोई जानकारी नहीं है.
सबसे बड़ी समस्या उन गरीब परिवारों के लिए हैं, जिनके बच्चे टाइप – वन मधुमेह से ग्रसित हैं. ऐसे बच्चों के लिए केंद्र सरकार ने वर्ष 2017 में बाल मधुमेह योजना शुरू की थी, इसमें बच्चों को इंसुलिन किट उपलब्ध कराया जाता है. लेकिन बालोद, कवर्धा, नारायणपुर, कांकेर और बस्तर जैसे जिलों में किट ही उपलब्ध नहीं है. ऐसी स्थिति में अपने बच्चों की जान बचाने के लिए गरीब परिवारों को निजी मेडिकल स्टोर्स का सहारा लेना पड़ रहा है.
ऐसा नहीं ही इस समस्या से विभाग या संबंधित मंत्री वाकिफ नहीं हैं. छत्तीसगढ़ जुवेलाइन डायबिटीज पैरेंट्स एसोसिएशन ने स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव से मुलाकात कर अवगत कराया था, लेकिन अब तक कोई समाधान नहीं मिल पाया है.
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टर्म्स एण्ड कंडीशन ने पैदा की समस्या
मधुमेह की दवा की सरकारी भंडार में अनुपलब्धता के पीछे जानकारी सरकारी खरीदी व्यवस्था को जिम्मेदार ठहराते हैं. बताया जा रहा है कि दवा खरीदी के लिए विक्रेताओं के लिए ऐसी नियम और शर्तें थोपी जा रही है, जिसे पूरा करना उनके लिए संभव नहीं है. ऐसे में दवा की खरीदी नहीं हो पा रही है. जाहिर है इसका खामियाजा गरीब परिवार ही भुगत रहे हैं.
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