आशुतोष तिवारी, विनोद दुबे जगदलपुर/रायपुर। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार ने किसानों की कर्जमाफी की घोषणा की थी, सरकार का दावा था कि सूबे के कर्जदार किसानों के ऋण माफ कर दिये गए. खुद सूबे के मुख्यमंत्री इसे अपनी सरकार की बड़ी उपलब्धियों में गिनाते हैं. वहीं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी देश भर में चुनाव प्रचार के दौरान इसका जिक्र करते हैं कि कांग्रेस जो कहती है वो करती है. सरकार के इन दावों में बहुत हद तक सच्चाई भी है. लेकिन जगदलपुर एक ऐसी खबर सामने आई है जिसने सरकार के सामने उनके वादे को लेकर बड़ा प्रश्न खड़ा कर दिया है. जगदलपुर से खबर ये है कि कर्ज नहीं पटा पाने के चलते दो किसानों को जेल हो गई है. जिन किसानों को जेल हुआ उनके कर्ज क्यों नहीं माफ हो पाए, क्यों नहीं पट पाए, जेल जाने की नौबत क्यों और इसके लिए कौन जिम्मेदार है ? ये सब जांच का विषय है. लेकिन सवाल तो यही है कि क्या इसे प्रशासनिक लापरवाही और उदासीनता ही कही जाएगी कि सरकार द्वारा कर्जमाफी का फायदा पूर्व की भाजपा सरकार में रहे मंत्रियों को तो मिला लेकिन कई किसानों को अब तक नहीं मिल सका. या जिन किसानों को जेल हुआ उनके प्रकरण कर्ज माफी से अलग थे.

ये है पूरा मामला-

बस्तर के सैकड़ों किसानो ने केसीसी के तहत बैंक से लोन ले रखा है. उन्हीं में से बस्तर ब्लॉक के ग्राम भाटपाल के किसान तुलाराम मौर्य और ग्राम बस्तर के रहने वाले किसान सुखदास ने जगदलपुर के धर्मपुरा स्थित स्टेट बैंक से ड्रिप एरिगेशन के नाम पर 10 लाख और 4 लाख रुपये का लोन लिया था. किसानों के परिजनों का आरोप है कि बलराम चावड़ा और रघु सेठिया नामक बिचौलियों ने उनके घर आकर बैंक से लोन दिलाने दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कराया. बैंक ने उन्हें कितना कर्ज दिया इसकी जानकारी भी किसानों को नहीं दी गई और एक किसान को 40 हजार और दूसरे किसान को 60 हजार देकर सारा पैसा बिचौलियों ने डकार लिया. जिसकी जानकारी उन्हें पहले नहीं थी.

किसान के परिजनों का कहना है कि कर्ज लेने के बाद इन किसानों ने खेती-बाड़ी शुरू कर दी लेकिन 4 साल बाद कर्ज़ नहीं चुका पाने  के चलते एडीबी शाखा ने किसानों पर लोन चुकाने का दबाव बनाया और उन्हें नोटिस भेजा तब उन्हें जानकारी हुई कि उनके नाम से लाखों रुपये का लोन लिया गया है. परिजनों का आरोप है कि लोन की राशि देख किसान बैंक पहुंचे और अपने द्वारा लिये गए लोन के दस्तावेज दिखाने की मांग की लेकिन बैंक के अधिकारियों ने उन्हें वहां से भगा दिया. बाद में बैंक ने चेक बाउंस का परिवाद कोर्ट में दाखिल किया. किसानों ने बैंक को पिछले साल 11 दिसंबर 2018 को लिखित में आवेदन देकर जानकारी लोन के दस्तावेज की कॉपी मांगने के साथ ही आवेदन में कहा कि जब उन्होंने चेक जमा ही नहीं किया है, बैंक के पास उनका चेक जमा है तो वे उसकी जानकारी भी दें. लेकिन बैंक ने उन्हें कोई भी जानकारी मुहैया नहीं कराया. जहां तीनों किसान जब शुक्रवार को पेशी पर कोर्ट पहुंचे तो उसके बाद उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

कलेक्टर को सौंपा गया आवेदन

जिला प्रशासन को दी थी जानकारी

ऐसा नहीं कि जिला प्रशासन को किसानों के साथ हुई ठगी की कोई जानकारी नहीं थी. किसान ने जिला कलेक्टर को 7 मार्च 2019 को लिखित में आवेदन दिया. जिसमें उन्होंने सारे मामले की जानकारी देते हुए जांच की मांग की औऱ कलेक्टर साहब से न्याय की गुहार लगाई. लेकिन जिला प्रशासन के कानों में कोई जू नहीं रेंगी और अन्नदाताओं को जेल जाना पड़ गया जबकि उनके साथ ठगी करने वाले बिचौलिये खुलेआम घूम रहे हैं.

इस पूरे मामले में बैंक अधिकारियों-कर्मचारियों के साथ जिला प्रशासन की भूमिका भी सवालों के दायरे में है. बैंक प्रबंधन को जब किसानों ने लिखित में आवेदन दिया कि उनके द्वारा लिए गए लोन से ज्यादा लोन दर्शाया जा रहा है तो बैंक ने मांगे गए लोन के दस्तावेजों की कॉपी उन्हें क्यों नहीं दी. किसान ने कलेक्टर को दिये आवेदन में इस चीज का जिक्र भी किया है कि बैंक अधिकारियों द्वारा उन्हें दर्जनों बार बैंक बुलाया और उन्हें घुमाकर वापस भेज दिया. सवाल यह भी है कि बैंक में बिचौलिये कैसे किसी को लोन दिलाने का कार्य कर रहे हैं.

बैंक को दिये आवेदन की कॉपी

सवालों के घेरे में बैंक और जिला प्रशासन

वहीं जिला प्रशासन को जब मार्च में ही किसानों ने अपने साथ धोखाधड़ी की जानकारी दी तो जिला प्रशासन ने इस मामले में गंभीरता क्यों नहीं दिखाई. मामले की जांच क्यों नहीं करवाई गई. जब कलेक्टर ने मामले की जांच नहीं करवाई तो फिर सरकार को भी इस मामले की कोई जानकारी नहीं दी होगी.

और भी किसान हुए ठगी का शिकार

बताया जा रहा है कि अभी ऐसे और भी किसान हैं जिनका कर्ज माफ नहीं हुआ है वहीं बैंक और बिचौलियों की मिलीभगत से केवल ये दो किसान हीं नहीं बल्कि और अन्नदाता भी ठगी का शिकार हुए हैं. राम सिंह भी ऐसा ही एक किसान है. जिसके ऊपर 5 लाख रुपये का कर्ज है और इसे भी बैंक से नोटिस मिल चुकी है.

मुख्यमंत्री से न्याय की उम्मीद

जाहिर है भूपेश सरकार को भी इस मामले की जानकारी नहीं रही होगी. इस वक्त स्वयं मुख्यमंत्री समेत कई मंत्री चुनावी दौरे पर अन्य राज्यों में है. सरकार की ओर से भी अभी तक कोई जवाब भी नहीं आया है कि दोनों किसानों को जेल से रिहा कराने क्या कदम उठाए जा रहे हैं. अन्नदाताओं की भीगी आंखे सरकार की और कातर दृष्टि से निहार रही है कि कब सरकार उन्हें राहत देगी. उन्हें उम्मीद है कि नरवा, गरवा, घुरवा और बाड़ी का नारा देने वाले और खुद को किसान पुत्र कहने वाले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल उनकी पीड़ा समझेंगे और उन्हें व उनके परिवार को बड़ी राहत पहुंचाएंगे. हालांकि यह देखने वाली बात होगी कि सूबे के किसान मुख्यमंत्री तक इन अन्नदाताओं की आवाज पहुंचती भी है या नहीं.