रायपुर. अक्सर दो राज्यों के बीच पानी और जमीन के मालिकाना हक को लेकर झगड़ा होता रहा है. कई बार झगड़ा इतना बढ़ गया कि मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा औऱ देश की सर्वोच्च अदालत को फैसला करना पड़ा हो. क्या आपने सपने में भी सोचा होगा कि दो राज्य एक मुर्गे के लिए आपस में भिड़ जाएं. यकीन नहीं होता लेकिन है एकदम सच.

दरअसल, कड़कनाथ छत्तीसगढ़ में बेहद मशहूर होने के साथ ही मध्य प्रदेश में भी खासा लोकप्रिय है. इसके अंदर पाए जाने वाले ढेर सारे मेडिसिनल वैल्यूज के चलते ये मुर्गा बेहद खास है. इससे भी बड़ी बात ये कि ये मुर्गा छत्तीसगढ़ औऱ मध्य प्रदेश दोनों राज्यों में पाया जाता है. बस, इसी बात को लेकर दोनों राज्य इस बार भिड़ गए हैं.

दरअसल मध्य प्रदेश औऱ छत्तीसगढ़ कड़कनाथ की जीआई (जियोग्राफिकल आइडेंटिफिकेशन) टैगिंग को लेकर इस पर अपना अपना दावा कर रहे हैं. जीआई टैग किसी खास चीज को दिया जाता है. खासकर उस शहर या राज्य को जहां से वो चीज जुड़ी होती है. जैसे रसगुल्ला को पश्चिम बंगाल की जीआई टैगिंग दी गई यानि ये माना गया की रसगुल्ला पश्चिम बंगाल की खोज है औऱ मूल रुप से वह बंगाल का ही ब्रांड है. ठीक इसी तरह कड़कनाथ मुर्गे को लेकर दोनों राज्य अपना-अपना दावा कर रहे हैं. मध्य प्रदेश जीआई टैग पर दावा करते हुए कह रहा है कि इस प्रजाति का मुख्य स्रोत उनके राज्य का झाबुआ जिला है. इसलिए कड़कनाथ के लिए उनके राज्य को जीआई टैग मिलना चाहिए. जबकि दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ राज्य का दावा है कि कड़कनाथ मूल रुप से दंतेवाड़ा में पाई जाने वाली प्रजाति है. जहां कि उसका संरक्षण औऱ प्रजनन सदियों से होता आ रहा है. खास बात ये है कि फिक्की ने भी छत्तीसगढ़ के इस दे को सही माना है. छत्तीसगढ़ का कहना है कि अकेले दंतेवाड़ा में ही सालभर में दो लाख कड़कनाथ मुर्गे जन्म लेते हैं या उनका उत्पादन किया जाता है.

दरअसल जहां ब्रायलर चिकन 150 से 200 रुपये किलो बिकता है वहीं कड़कनाथ 400 से 500 रुपये प्रति किलो तक बिकता है. सदियों से आदिवासी बहुल इलाकों में ये पाया जाता रहा है. इसकी खास बात ये है कि ये काले रंग का होता है साथ ही इसका खून भी काले रंग का होता है. ऐसा माना जाता है कि लंबे समय तक इसका सेवन सेक्सुअल पावर में इजाफा करता है. जिसके चलते इसकी खूब कालाबाजारी भी होती रही है.

अब देखना ये है कि कड़कनाथ के जीआई टैग पर किसका हक बनता है वैसे दोनों राज्य इसपर दावा छोड़ने को राजी नहीं हैं. आखिर जीआई टैग मिलने के बाद ये साबित हो जाएगा कि ये मुर्गा मूल रुप से उस राज्य का प्रोडक्ट है. इसलिए कड़कनाथ को अपना बताने में कोई भी पीछे नहीं हटना चाहता.