गरियाबंद. छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में स्थित उदंती टायगर रिजर्व में ओडिशा से आए लोगों की घुसपैठ की शिकायत पर रायपुर से टीम ने जाकर दो दिनों तक ग्राउंड ज़ीरो का जायज़ा लिया.इस टीम के साथ लल्लूराम डॉट कॉम की टीम भी गई थी. लल्लूराम डॉट कॉम की टीम ने दो दिन तक घने जंगलों में जाकर ज़मीनी हकीकत को जाना और समझा.लल्लूराम डॉट कॉम की टीम ने जो जांच की, उसकी रिपोर्ट कड़ियों में प्रकाशित कर रही है. आज इसकी पहली रिपोर्ट प्रकाशित की जा रही है.

दरअसल, 28 सितंबर को उदंती रिज़र्व के ग्राम धनौरा में रहने वाले ग्रामीण एक बस में वनमंत्री मोहम्मद अकबर के यहां आए थे. ग्रामीणों ने वनमंत्री से उदंती टायगर को बचाने की गुहार से गुहार लगाई थी. ग्रमीणों ने बताया था कि हज़ारों हैक्टेयर जंगल उदंती में ओडिशा के लोगों ने काट डाला है और वे घने जंगल में अवैध तरीके से रह रहे हैं. जिसके बाद वनमंत्री मोहम्मद अकबर ने इसकी व्यापक जांच कराने की बात कही थी.

इसके बाद वन विभाग ने एपीसीसीएफ देवाशीष दास की अगुवाई में एचएल रात्रे, मयंक अग्रवाल, विष्णु नायर की टीम 4 और 5 अक्टूबर को जांच करने घटनास्थल पहुंची. इससे पहले ग्रामीणों ने इस बात की शिकायत गरियाबंद जिले के वरिष्ठ अधिकारियों से 19 सितंबर को की थी. जिसके बाद वन विभाग ने कार्रवाई करके अवैध रुप से रह रहे ओडिशा के 26 घुसपैठियों को गिरफ्तार करके जेल भेजा. विभाग ने बताया कि उदंती के कक्ष क्रमांक 1206 में करीब 5 हैक्टेयर का जंगल का जंगल इन लोगों ने साफ कर दिया था.

लेकिन धनौरा के ग्रामीण इस कार्रवाई को नाकाफी बताते हुए 28 सितंबर को वनमंत्री के पास पहुंच गए. ग्रामीणों ने बताया कि ओडिशा के अतिक्रमणकारियों ने सिर्फ 5 हैक्टेयर नहीं बल्कि सैकड़ों हैक्टेयर के जंगल काट दिए हैं. ये कटाई कक्ष क्रमांक 1204,1205, 1208 और 1210 तक फैले क्षेत्र में हुई है.

ग्रामीणों का कहना था कि धनौरा पंचायत के ही आश्रित गांव पीपलखुंटा के वन प्रबंधन समिति के सदस्यों ने ओडिशा के लोगों को जंगल काटने में सहयोग दिया. ग्रामीणों के आरोपों के घेरे में पीपलखुंटा के सरपंच नीलांबर और वहां के रेंजर गंगवैर भी शामिल थे. ग्रामीणों ने ये भी आरोप लगाए कि ओडिशा के लोगों को बसाने और वनाधिकार पट्टा दिलाने के नाम पर उनसे 10-10 हज़ार रुपये वसूले गए.

धनौरा गांव के लोगों की दो शिकायतें सही पाये जाने के बाद ये लाज़िमी था कि उनकी अन्य बिंदुओं पर हुई शिकायतों को गंभीरता से लिया जाए. क्योंकि मामला छत्तीसगढ़ की शान माने जाने वाले उदंती टायगर रिजर्व से जुड़ा था. महत्वपूर्ण बात है कि उदंती टायगर रिजर्व जंगली भैंसों और टाइगर का ठिकाना रहे हैं.

ग्रामीणों का ये भी आरोप है कि इस मामले में एक जनप्नतिनिधि की भूमिका भी संदिग्ध है. ग्रामीणों की माने तो उसके ही संरक्षण में जंगल काटने और ओडिशा वालों को बसाने का खेल चल रहा है.

ग्रामीणों के आरोप बेहद गंभीर थे और मामला बेहद संवेदनशील था. इस मामले में एक बड़ा पेंच ये था कि जिन लोगों ने शिकायत की है, उसमें से कुछ लोग पहले खुद जंगल के आरोपी रह चुके हैं. हालांकि, इस पर उनका कहना था कि उन्होंने जब जंगल कटने की शिकायत पहले की तो उन्हें विभाग के कर्मचारियों ने फंसाकर जेल भेज दिया. लेकिन इस बात की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता था कि उन्होंने बदला लेने की नीयत से ये शिकायत की हो.
लेकिन उन्हीं ग्रामीणों की शिकायत पर वन विभाग ने उदंती में हो रहे अवैध कटाई के बड़े मामले को जाना और कार्रवाई की थी. लिहाज़ा सिर्फ बदला लेने की आशंका के चलते उनकी शिकायत को खारिज़ नहीं किया जा सकता था.
मामले की जांच पूरी पारदर्शिता के साथ हो, इसलिए मीडिया की टीम को भी जांच टीम के साथ जाने का फैसला किया गया. रायपुर और गरियाबंद से कई मीडिया हाऊस के प्रतिनिधियों की टीम 3 अक्टूबर को रायपुर से उदंती के लिए रवाना हुई.
यात्रा बेहद चुनौतीपूर्ण और जोखिम भरी थी. इलाका घोर नक्सल प्रभावित था. नक्सली आए दिन इस इलाके में वारदातों को अंजाम देते रहते हैं. इसके अलावा घटनास्थल से 60 किलोमीटर पहले संचार व्यवस्था खत्म हो जाती है. लेकिन सच जानने खतरा मोल लेते हुए टीम 4 अक्टूबर की सुबह गरियाबंद के लिए रवाना हो गई.