कर्ण मिश्रा,ग्वालियर। मध्य प्रदेश के ग्वालियर चंबल संभाग को उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया (Minister Jyotiraditya Scindia) के पिता स्वर्गीय माधवराव सिंधिया (Madhavrao Scindia) की जंयती पर टूरिज्म के क्षेत्र में बड़ी सौगात मिल रही है. कल यानि शुक्रवार को कूनो अभ्यारण्य के बाद अब शिवपुरी जिले के माधव नेशनल पार्क (Madhav National Park) में टाइगर (Tiger) की दहाड़ सुनाई देगी. सीएम शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया तीन टाइगर को यहां रिलीज करेंगे.

उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि मेरे पिताजी के जन्म दिवस पर बड़ी सौगात मिल रही है. माधव नेशनल पार्क शिवपुरी में 27 साल से टाइगर की आवाज के लिए सूना था, लेकिन अब 27 साल बाद टाइगर आ रहे हैं. इसके लिए पीएम नरेंद्र मोदी, केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र सिंह का धन्यवाद करता हूं. कल हम 3 टाइगर को रिलीज करेंगे. जिससे ग्वालियर चंबल संभाग में टूरिज्म का एक नया कॉरिडोर में बन रहा है. रणथंबोर राजस्थान से टूरिस्ट कूनो आएगा. कूनो में उसे चीते मिलेंगे. उसके बाद शिवपुरी आएगा, तो माधव नेशनल पार्क में टाइगर मिलेंगे और उसके बाद पन्ना माधव नेशनल पार्क में वाइल्डलाइफ के प्राणियों को देखेगा.

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अब टूरिज्म का नया कॉरिडोर स्थापित हो गया है. मेरे पूज्य पिताजी का सपना कल के कार्यक्रम से पूरा हो रहा है. बता दें कि शिवपुरी के माधव नेशनल पार्क में 27 साल बाद एक बार फिर से टाइगर की दहाड़ सुनाई देगी. माधव नेशनल पार्क में 1990- 91 तक यहां काफी संख्या में टाइगर हुआ करते थे, लेकिन अंतिम बार 1996 में यहां टाइगर देखा गया था. अब माधव नेशनल पार्क एक बार फिर से बाघों से आबाद होने जा रहा है. टाइगर प्रोजेक्ट के तहत यहां कुल पांच बाघों को बसाए जाने की योजना है. पहले चरण में यहां तीन बाघों को शिफ्ट किया जाएगा.

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इसमें पन्ना, बांधवगढ़ से एक-एक मादा टाइगर और भोपाल से एक नर टाइगर को शिफ्ट किया जाएगा. माधव नेशनल पार्क में पहले चरण में आने वाले तीनों टाइगरों को फ्री रेंज में रखा जाएगा. यानी यहां टाइगरों को पिंजरे में कैद करके ना रखते हुए पार्क में उनके लिए बनाए गए बाड़े में खुले में रखा जाएगा. यहां इन टाइगरों को लेकर अध्ययन भी किया जाएगा कि वह यहां किस तरह से रहते हैं और खुद को कैसे इस नए वातावरण में अनुकूल करते हैं. हालांकि माधव नेशनल पार्क टाइगर सहित अन्य वन्य प्राणियों का प्राकृतिक घर है. लेकिन लगातार शिकार के चलते एक समय बाद यहां बाघों की संख्या खत्म हो गई थी.

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