हर्षराज गुप्ता, खरगोन। मेहंदी की रश्म.. हल्दी का शगुन.. घराती-बरातियों का भोजन.. गणेश पूजन के साथ मंडप प्रतिष्ठा और अग्नि के सात फेरे.. यह सब सुनकर जेहन में शादी-समारोह के दृश्य उभरते हैं। जी हां! हम भी यहां शादी समारोह की बात ही कर रहे हैं, लेकिन यह शादी अपने आप में अनोखी है। दूल्हा-दुल्हन तो है लेकिन इंसान नहीं, बल्कि एक बछिया और बछड़े की अनोखी शादी हुई।

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दरअसल, प्रेमनगर में दो परिवार ऐसे हैं जहां एक दंपति के यहां लड़का नहीं है और दूसरी दंपति संतानहीन है। दोनों ने गाय के बछड़े और बछिया को बेटा और बेटी मानकर उनकी शादी रचाई है। सारे रीति-रिवाज अपनाए। इस अनोखी शादी में परिवारों ने करीब चार लाख रुपए खर्च किए। इस अनोखी शादी में न केवल परिवार, रिश्तेदार बल्कि समूचा गांव शामिल हुआ।

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शादी बिल्कुल आम शादियों जैसी हुई। बकायदा मंडप सजाया गया। सारी रस्में निभाई गई। इस शादी को लेकर पूरा गांव उत्साहित दिखा। प्रेमनगर निवासी मुकेश दिवाले ने बताया कि सनातनी संस्कृति में गाय को माता का दर्जा दिया गया है। हम गोपालक परिवार है। उनकी कोई संतान नहीं है, बछिया लक्ष्मी को ही उन्होंने बेटी की तरह पाला है। कन्यादान, गोदान को सबसे बड़ा दान माना जाता है, उसी का अनुसरण करते हुए लक्ष्मी का विवाह गांव के ज्योति लिमये के बछड़े नारायण से तय किया। ज्योति बाई भी ‘नारायण’ को बेटा मानती हैं। दो माह पहले इनकी सगाई की रश्म भी की गई। अब मुहुर्त देखकर उनकी शादी तय की है।

वहीं ज्योति लिमये ने बताया उनके पति की पिछले साल ही मृत्यु हो गई थी। पेंशन से वह अपना भरण-पोषण करती है। बेटा नहीं होने से बछड़े नारायण को ही बेटा मानकर पाला है। बेटी संगीता और दामाद राजेश उसके विवाह में शामिल हुए। साथ ही शादी में 800 से अधिक लोग शामिल हुए।

दोनों परिवारों ने बांटे एक हजार आमंत्रण पत्र

दिवाले और लिमये परिवार में खुशी का आलम यह है कि तीन दिन तक शादी का कार्यक्रम चला। इसके लिए बकायदा एक हजार आमंत्रण कार्ड बांटे गए थे। रिश्तेदारों के साथ ग्रामीणों को भी आमंत्रित किया। मंगलवार को गणेश पूजन, हल्दी, मंडप की परंपरा निभाई गई। इस दौरान रिश्तेदारों ने पेरावणी भी दी।

क्या कहते हैं ग्रामीण
इस अनोखी शादी की लोग खुले दिल से प्रशंसा कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि इससे गायों को मिलने वाले सम्मान में इजाफा होने के साथ ही लोग उनकी सेवा के लिए प्रेरित होंगे।

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