नितिन नामदेव, रायपुर। आज विश्व पर्यावरण दिवस पर छत्तीसगढ़ के रायपुर स्थित तेलीबांधा तालाब (मरीन ड्राईव) में पिघलती हुई पृथ्वी का मॉडल बनाकर खुद काले परिधान पहने युवाओं ने अनोखा प्रदर्शन किया। युवाओं ने पृथ्वी के बढ़ते तापमान के कारणों में से ग्रीनहाउस गैस के प्रभाव और उसे कम करने के लिए लोगों को “गो विगन” (Go Vegan) यानि शाकाहारी बनने के प्रति जागरुक किया है।
ऐसे किया प्रदर्शन
पर्यावरण संरक्षण के लिए संदेश देने पहुंचे युवाओं ने विशाल कांटा-चाकू और तख्तियां पकड़ कर प्रदर्शन किया, जिन पर लिखा था, “मांस ग्रह को पिघला रहा है।”
दरअसल, “वीगन चुनें” प्रदर्शन का उद्देश्य ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रमुख कारण के रूप में मांसाहारियों (Non Vegetarians) के लिए मांस उत्पादन और खपत को उजागर करना था।
जानिए मांस उत्पान और खपत से कैसे बढ़ता है ग्लोबल वॉर्मिंग
“मर्सी फ़ॉर एनिमल्स” ग्रुप के कुशल समद्दर ने कहा, “समुद्र के बढ़ते स्तर, तेज़ तूफान, बाढ़ और पिघलते हिमालय के साथ, भारत को ग्लोबल वॉर्मिंग के सबसे बुरे प्रभावों का सामना करना पड़ रहा है।”
ग्लोबल वॉर्मिंग को कम करने का सबसे प्रभावी तरीका
कुशल ने बताया कि “मांस और डेयरी के उत्पादन (Production) लिए जानवरों को पालना ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का एक प्रमुख कारण है। इसके साथ ही वीगन यानि शाकाहारी आहार अपना कर ग्रीनहाउस गैसों को कम करने का सबसे प्रभावी तरीका है।”
दुनिया का 33% मीथेन करती हैं फूड प्रोडक्शन कंपनियां
दुनियाभर में फूड प्रोडक्शन कम से कम 33% ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन करती हैं। जिसमें मांस उत्पादन के लिए पशुपालन करने वाले उद्योग अकेले ही 20% के लिए जिम्मेदार है।
बता दें, भारत का पशुधन उद्योग, गाय और भैंस सहित 303 मिलियन मवेशियों के साथ, ग्लोबल वार्मिंग गैसों के उत्सर्जन में सबसे अधिक जिम्मेदार है।
भारत है शीर्ष मीथेन उत्सर्जकों में से एक
मीथेन गैस, कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 80 गुना अधिक गर्मी को वातावरण में बनाए रखती है। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मीथेन गैस उत्सर्जक है, जिसमें से लगभग 48% मीथेन उत्सर्जन में पशुधन का योगदान है।
युवाओं का कहना है, कि जैसे-जैसे भारत लगातार विकास कर रहा है, ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रभावों को कम करने के लिए पर्यावरणीय प्रबंधन के साथ आर्थिक विकास को संतुलित करना महत्वपूर्ण है। इसके लिए लोगों को शाकाहारी में बदलने की आवश्यकता और भी अधिक जरूरी हो गई है। लोगों में मांस की डिमांड कम होने से मांस उत्पादन की आवश्यक्ता भी कम हो जाएगी और इस तरह ग्लोबल वॉर्मिंग को हम कर सकते हैं।
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