लखनऊ. 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश में भाजपा को बड़ा झटका लगा है. यूपी में 80 लोकसभा सीटें हैं. इस बार यहां सपा और कांग्रेस वाले इंडिया गठबंधन को 44 सीटें और भाजपा वाले एनडीए गठबंधन को 35 सीटें मिली है. वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को यहां 64 सीटों पर जीत मिली थी. इसमें से 62 सीटें बीजेपी के खाते में आई थीं. चुनाव परिणाम के बाद अब लोगों के मन में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर ऐसे क्या कारण थे, जिनकी वजह से भाजपा को मतदाताओं ने सिरे से नकारा. आइये जानते हैं यूपी में भाजपा की हार की वजह क्या रही.
ये रही भाजपा की हार की 10 बड़ी वजह
प्रत्याशियों के चयन में गड़बड़ी
टिकट वितरण के साथ ही यूपी में कई जगह भाजपा के चयनित प्रत्याशियों का विरोध शुरू हो गया था. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में जहां भाजपा को तकरीबन 50 प्रतिशत मत मिले थे. वहीं इस बार ये आंकड़ा 42 प्रतिशत पर सिमट गया. यानी मत प्रतिशत में लगभग 8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई.
हिंदू मतदाताओं का बंटवारा भी पड़ा भारी
भाजपा की हार में एक बड़ा कारण हिंदू मतदाताओं के बीच बंटवारा रहा. एक तरफ जहां कांग्रेस व सपा ने अल्पसंख्यकों खासकर मुस्लिमों को एकजुट कर लिया तो वहीं भाजपा हिंदुओं को एकजुट कर पाने में सफल नहीं हो पाई. राम मंदिर जैसे मुद्दे का प्रभाव कम होना भी इसका बड़ा कारण माना जा रहा है.
युवाओं की नाराजगी दूर नहीं कर पाई भाजपा
लोकसभा चुनाव के प्रचार और जनसभाओं में राहुल गांधी, प्रियंका गांधी समेत अखिलेश यादव हमेशा मोदी-योगी सरकार पर आरोप लगाते रहे कि भाजपा सरकार युवाओं को नौकरी नहीं दे पा रही है. पेपर लीक हो जाता है. यह युवाओं के लिए बड़ा मुद्दा था. इस पर भाजपा ने कोई सफाई नहीं दी. साथ ही युवाओं को रिझाने के लिए कोई वादा भी नहीं किया.। इसी वजह से युवाओं में नाराजगी देखते को मिली.
बसपा सुप्रीमो मायावती के खेल को नहीं समझ सकी भाजपा
लोकसभा चुनाव 2024 में बसपा सुप्रीमो मायावती इंडिया ब्लॉक से अलग जरूर थीं, लेकिन उन्होंने ऐसे कैंडिटेट उतारे, जो सपा-कांग्रेस गठबंधन के लिए फायदा बने और भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा. दरअसल मायावती के प्रत्याशी उतारने से बसपा का कोर वोटर माने जाने वाले दलित मतदाता दो धड़ों में बंट गए. एक धड़े ने पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक के नाम पर सपा को सपोर्ट किया, जबकि दूसरे धड़े ने मायावती के प्रत्याशी को वोट कर दिया. इसके चलते मेरठ, मुजफ्फर नगर, चंदौली, खीरी और घोसी लोकसभा सीटों पर इसी वजह से मुकाबला रोचक रहा. इसमें से सिर्फ मेरठ लोकसभा सीट भाजपा ने जीती है, यहां भी बहुत कम अंतर है.
ये भी नाराजगी का बना कारण
मोदी सरकार सबका साथ सबका विकास की बात तो कहती रही, लेकिन सबका विश्वास नहीं जीत पाई. दरअसल, पसमांदा समाज से ज्यादा प्रेम दिखाना पीएम मोदी के लिए मीठा जहर साबित हुआ है. इस वजह से धर्म के नाम पर भाजपा से जुड़े रहने वाला मूल वोटर्स नाराज हो गया. इसका असर मतदान पर पड़ा. भाजपा के मूल वोटर्स घरों से ही नहीं निकले. इसके चलते भाजपा का वोट प्रतिशत नीचे गिर गया.
सपा ने सामाजिक समीकरण का रखा ध्यान
यूपी में समाजवादी पार्टी (सपा) ने प्रत्याशी चुनने में सामाजिक समीकरण का पूरा ध्यान रखा. इसके साथ ही सपा प्रत्याशी जमीन पर उतरकर भाजपा को टक्कर देने में जुटे रहे. मेरठ, घोसी, मिर्जापुर जैसी सीटें इसका उदाहरण है, जहां अखिलेश ने सूझबूझ से भाजपा प्रत्याशियों के लिए मुसीबत खड़ी की.
ओबीसी वोटर्स की नाराजगी पड़ी भारी
लोकसभा चुनाव में भाजपा ने ‘अबकी बार 400 पार’ का नारा दिया. भाजपा के कुछ नेता दावा करने लगे कि 400 पार इसलिए चाहिए, क्योंकि संविधान बदलना है. इसे आरक्षण से जोड़ते हुए चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस और सपा ने भुनाया. सपा और कांग्रेस ने भी प्रचार में जनता के सामने यह दावा किया कि भाजपा इतनी सीटें इसलिए चाहती है, ताकि वह संविधान बदल सके और आरक्षण खत्म कर सके. ये बातें दलितों और ओबीसी के बीच काफी तेजी से फैलने लगी. इससे दलित और ओबीसी वोटरों में नाराजगी देखने को मिली. ऐसे में संविधान बदलने वाली चर्चा भाजपा के लिए नुकसानदेय साबित हुआ.
जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं की शिथिलता
लोकसभा चुनाव 2024 में पिछले चुनाव जैसा जोश कार्यकर्ताओं में नहीं दिखा. यानी भाजपा कार्यकर्ता पहले ही मान चुके थे कि मोदी के नाम पर आसानी से लोकसभा चुनाव जीत लेंगे. वहीं सपा-कांग्रेस ने जमीन पर उतरकर लोगों से संवाद स्थापित किया.। इसका असर भी चुनाव परिणाम पर देखने को मिला.
अगड़ी जातियों की नाराजगी दूर नहीं कर सकी BJP
जाति पर अभद्र टिप्पणियां भाजपा खेमे के लिए नासूर बन गई. केंद्रीय मंत्री रूपाला का बयान आखिरी तक असर करता रहा. इससे बड़ी जातियों के वोटर भी नाराज हो गए. दरअसल, गुजरात में केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री पुरषोत्तम रूपाला ने वाल्मीकि समाज के एक कार्यक्रम में बयान दिया, जिसने भाजपा की मुश्किलें बढ़ा दी.
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