कुशीनगर. गन्ना बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण कुशीनगर को कभी चीनी का कटोरा कहा जाता था. जनपद में कभी 9 चीनी मिलें हुआ करती थी, लेकिन सरकारों की उदासीनता के चलते चार चीनी मिलें किसानों का करोड़ों रूपया लेकर बैठ गईं. वर्तमान समय में पांच चीनी मिलें ही चल रही हैं, जिन पर किसानों का करोड़ों रुपया बकाया है. वहीं विगत दो वर्षों से साठ फीसदी गन्ना सुख गया जिसके चलतें किसानों के उपर सकंट लटका हुआ हैं और किसान परेशान हैं किसानों के आय का एक मात्र जरिया गन्ना जिसके चलते किसान भूखमरी के कगार पर पहुंच गया हैं.

पडरौना विधानसभा क्षेत्र में दो चीनी मिल हैं, लेकिन दोनों चीनी मिलें बंद हैं. वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में पडरौना चीनी मिल को लेकर कांग्रेस सरकार पर तंज भी कसा था. लोगों की उम्मीदें जगी थी कि बीजेपी सरकार बनी तो पडरौना की चीनी मिल चलेगी, लेकिन आज तक उस पर कोई चर्चा चुनावों में नहीं होती जिससे किसानों में निराशा हैं. कुशीनगर भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली होने के कारण विश्व में विख्यात है. पूरे विश्व से बौद्ध भिक्षु और पर्यटक यहां पूजा करने और घूमने के लिए आते हैं. कुशीनगर में सभी बौद्ध देशों के मंदिर बने हुए हैं. कुशीनगर में रेलमार्ग की सुविधा नहीं है, लेकिन यहां अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट शुरू हो गया है.

राजनीतिक इतिहास

कुशीनगर लोकसभा का अधिकांश प्रतिनिधित्व भाजपा ने ही किया है, लेकिन इस सीट पर कांग्रेस का भी दबदबा रहा है. 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के कारण इस पर भाजपा के राजेश पांडेय विजयी हुए, लेकिन सांसद राजेश पाण्डेय के खिलाफ लोगों का गुस्सा देखते हुए 2019 में भाजपा ने विजय दुबे को मैदान में उतारा और वह जीते.

सामाजिक-आर्थिक तानाबाना

कुशीनगर गन्ना बहुल इलाका है, यहां के किसान गन्ने के अलावा केला, हल्दी, मूंगफली की पैदावार करते हैं. पहले इस जिले में 9 चीनी मिलें चलती थी, लेकिन सरकारों की लापरवाही के कारण 5 चीनी मिलें बंद हो गईं. इस समय चार चीनी मिलें चल रही हैं. चीनी मिलों के बंद होने से गन्ना किसान बेहाल हो गए. बंद पड़ी चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का करोड़ों रूपया आज भी बकाया है, जिसे पाने के लिए गन्ना किसान भटक रहे हैं. बन्द चीनी मिल चलवाने को लेकर किसान आंदोलन भी करते रहें रामकोला विधानसभा क्षेत्र में दो चीनी मिल बंद पड़ी हैं जिस पर काफी दिनों तक आंदोलन चला.

इसके अलावा कुशीनगर को रेल मार्ग से जोड़ने के लिए भी लगभग सभी पार्टियों की सरकारों ने घोषणाएं की, लेकिन अभी तक इस कोई ठोस पहल नहीं हो सका. जिले का आंशिक हिस्सा ही रेल नेटवर्क से जुड़ा हुआ है. हर साल बाढ़ की विभीषिका झेलना इस जनपद के लोगों की नीयत बन गई है. जिले के दो तहसील खड्डा और तमकुहीराज को अधिकांश क्षेत्र में नेपाल से निकलने वाली नारायणी नदी (गंडक नदी) भीषण तबाही मचाती है.

जिले में बड़ी संख्या में मुसहर जाति के लोग रहते हैं. मुसहरों की बदहाली का मुद्दा वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सांसद रहते हुए लोकसभा में उठाया था और मुसहरों के उत्थान के लिए आंदोलन भी किया था. योगी आदित्यानाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद सबसे अधिक खुशी मुसहर समुदाय के लोगों को हुआ था. योगी आदित्यानाथ की प्राथमिकता होने के कारण शुरूआत में प्रशासनिक अमले ने मुसहरों के तमाम योजनाएं चलाई, लेकिन धीरे-धीरे प्रशासनिक अमला भी उदासीन होता गया. तमाम कसरतों के बाद भी मुसहरों की हालत में कोई खास सुधार नहीं हुआ है.

2017 का जनादेश

कुशीनगर जनपद में कुल सात विधानसभा सीटें हैं, जिनमे पांच पर भाजपा का कब्जा है तो वहीं एक कांग्रेस और एक बसपा के खाते में है. पडरौना सीट से 2017 बसपा से पाला बदलकर भाजपा में आये स्वामी प्रसाद मौर्य जीते थे. इसके अलावा कुशीनगर सीट से 2017 में भाजपा से प्रत्याशी रहे रजनीकांत मणि त्रिपाठी ने बसपा के राजेश प्रताप राव को 48103 वोट के अंतर से हराया था. 2012 में कुशीनगर विधानसभा अस्तित्व में आई थी. रामकोला सीट 2012 में सुरक्षित हो गई है. 2017 के चुनाव में यह सीट बीजेपी ने सुभासपा को दी थी, जिसके टिकट पर रामानंद बौद्ध चुनाव जीते थे.

इसके अलावा फाजिलनगर सीट से बीजेपी के गंगा सिंह कुशवाहा ने 102778 मत पाकर बड़े अंतराल से सपा के विश्वनाथ सिंह को पटकनी दी थी. सपा को महज 60856 मत ही मिले थे. कुशीनगर की ही तमकुही राज सीट यूपी की सियासत में इन दिनों सुर्खियों में रहती है, क्योंकि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू विधानसभा सीट से जीतकर आते हैं.

खड्डा विधानसभा सीट पर 2017 में भाजपा ने समाजसेवी जटा शंकर त्रिपाठी को उम्मीदवार बनाया. उन्होंने सपा-बसपा प्रत्याशियों को हराकर जीत हासिल की थी. हाटा विधानसभा कुशीनगर जिले की सबसे दिलचस्‍प सीटों में से एक है. यहां 1985 के चुनाव से एक ट्रेंड है कि कोई पार्टी दो बार लगातार नहीं जीती. 2017 में बीजेपी के पवन केडिया चुनाव जीते थे.