लखनऊ. नदियों के किनारों पर तैरती लाशों ने यूपी की योगी सरकार के होश उड़ा दिये हैं. सूबे में 1140 किलोमीटर की दूरी तय करती गंगा के किनारे बसे गांवों-शहरों के हाकिमों को कह दिया गया है कि लाशें मिलीं तो खैर नहीं. सवाल यह कि अचानक नदियों के किनारे मिल रही लाशें क्या कहना चाहती हैं.
देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के 27 जिलों में गंगा 1140 किलोमीटर की दूरी तय करती है. कल तक गंगा वाले जिले खास हुआ करते थे. लेकिन अब बिजनौर, मेरठ, मुजफ्फरनगर, बुलंदशहर, हापुड़, अलीगढ़, कासगंज, संभल, अमरोहा, बदांयू, शाहजहांपुर, हरदोई, फर्रुखाबाद, कन्नौज, कानपुर, उन्नाव, रायबरेली, फतेहपुर, प्रयागराज, प्रतापगढ़, भदोही, मिर्जापुर, वाराणसी, चंदौली, गाजीपुर और बलिया के गंगाघाटों पर कोई जाना भी नहीं चाहता. वजह यह कि वहां हर तरफ मातम पसरा है. कहीं लाशें तैरती दिख जाती हैं, कहीं उतराती तो कहीं उधड़ी हुंई.
हजारों लाशों की तस्वीरें मीडिया और सोशल मीडिया पर नजर आने लगीं तो राजधानी में हड़कंप मचा. कलेक्टरों को इन तस्वीरों पर लगा दिया गया, जल टुकड़ियों को पानी में उतार दिया गया, निगम के अधिकारियों और गांव के हाकिमों-प्रधानों को कहा गया कि अब पानी में लाशें नहीं दिखनी चाहिए. प्रशासन की तरफ से मदद होगी, यह भी कह दिया गया. लेकिन सवाल यह कि अचानक गंगा में इतनी लाशें उतराने का मतलब क्या?
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सरकार के दावों की सरकार जानें, लेकिन हकीकत जुदा है. रोजगार छिनवा कर और चुनाव के बुलावे पर अपने गांव लौटे लोगों का रास्ता महामारी, सरकारी बेपरवाही और आपदा में अवसर तलाशते लोगों ने रोक लिया है. इलाज के लिए प्राथमिक-सामुदायिक-जिला अस्पताल हैं. मगर वहां कागजी कार्रवाई इतनी ज्यादा है कि लोग खुद को ईश्वर के भरोसे छोड़ चुके हैं. ऐसे में अगर जिंदा बचे तो ठीक लेकिन प्राणपखेरू उड़ गए तो श्मशान में भी लूट मची है. ऐसे में महामारी का शिकार बने लोगों को मां गंगा के हवाले करने का रास्ता ही दरअसल आखिरी रास्ता बचता है. बात दीगर है कि सरकारी दावों में वो महामारी के शिकार नहीं होते.
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