बुंदेलखंड. आज भी जातिवाद समाज में व्याप्त है. किसी दलित को मूंछ रखने पर पीटा जा रहा है तो किसी दलित दूल्हे को घोड़ी पर सवार होकर बारात निकालने पर उनके साथ मारपीट की जा रही है. ऐसा ही एक गांव है, जहां आजादी के 74 सालों बाद भी घोड़ी में सवार हो कर कोई भी दलित बारात नहीं निकाल पाई है. अब इस सामंतशाही परंपरा को एक दलित युवक ने चुनौती दी है. अब इस गांव की रुढ़िवादी टूट कर चकनाचूर हो जाएगी. युवक अपनी शादी में घोड़ी पर सवार होकर बारात निकालेंगे.

उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के महोबा जिले के एक गांव में दलित दूल्हों को घोड़ी में चढ़ कर बारात निकालने की इजाजत नहीं है. इसी से परेशान एक दलित दूल्हा अलखराम सिंह जिसकी बारात 18 जून को जानी है, उसने फेसबुक में पोस्ट डाल कर इस रुढ़िवादी और दलित विरोधी कुप्रथा को चुनौती दी है. अलखराम ने सोशल मीडिया में लिखा कि ‘अभी तो शुरुआत हुई है, बहुत कुछ बाकी है, तुम लोग विरोध करो हम भी फतेह करेंगे. किसी गुमान व अहंकार में मत रहना. जय भीम संविधान.

दलित युवक ने साथ ही लोगों से मदद मांगते हुए लिखा है कि मेरी शादी 18 जून को है और मैं घोड़े में सवार हो कर अपनी बरात ले जाना चाहता हूं. क्या कोई मेरी मदद कर सकता है? दूल्हे की इस पोस्ट से हडकंप मच गया है और लोग पूछ रहे है कि आजाद भारत में दलित दूल्हे को घोड़ी में चढ़कर बारात निकालने की अनुमति क्यों नहीं?

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22 साल का दूल्‍हा अलखराम सिंह के गांव में दबंग, सामंतवादी लोग दलितों को घोड़ी में सवार हो कर बारात निकालने की इजाजत नहीं देते है. इसके चलते अलखराम की घोड़ी में चढ़कर बरात निकालने के अरमान पूरे होते नही दिखाई दे रहे है. पिता ने महोबकंठ थाने में प्रार्थना पत्र भी दिया है.

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