वाराणसी. पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र में विकास की बयार दौड़ रही है. लोगों तक विकास की गाथा गाने के लिए जमकर प्रचार-प्रसार के लिए पैसे बहाए जा रहे हैं. भले ही विकास को क्रीम-पाउडर लगाकर सुंदर दिखाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन असल में विकास धूल फांक रहा है. विकास को विकास की सख्त जरूरत है. जिसकी एक तस्वीर सामने आई है. विकास की सुनहरी तस्वीर जिला अस्पताल के एमआरआई सेंटर की है. जो बनकर तो तैयार हो गया है, लेकिन 6 साल से धूल फांक रहा है और मरीज विकास की खोज में दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं. अब सवाल ये खड़ा हो रहा है कि कागजों के बाहर विकास का विकास कब होगा?

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बता दें कि 6 साल पहले 2019 में 96.81 लाख रुपये की लागत से वाराणसी जिला अस्पताल में एमआरआई सेंटर का भवन निर्माण कराया गया था. भवन का निर्माण तो हो गया, लेकिन आज तक ताले के कैद में ही है. जो धूल फांकता नजर आ रहा है. एमआरआई सेंटर बनने के बाद से आज तक शुरू नहीं हो पाया है. जिसका खामियाजा आम नागरिक भुगत रहे हैं. मरीजों को सुविधा दिलाने की योजना कागजों में ही दम तोड़ती नजर आ रही है और मरीज दर-दर की ठोकरें खाने पर विवश नजर आ रहे हैं.

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5 हजार से 15 हजार करना पड़ रहा खर्च

जिला अस्पताल में बने एमआरआई भवन निर्माण कराने के पीछे की वजह ये थी कि मरीजों को जांच के लिए अधिक पैसे नहीं खर्च करने पड़ेंगे और किसी भी प्रकार की समस्या नहीं होगी. भवन बनने के बाद भी अब तक भवन में मशीनें नहीं रखी जा सकी. इसी जांच के लिए मरीजों को 5 हजार से 15 हजार रुपये तक खर्च करने पड़ रहे हैं. अब सवाल ये खड़ा हो रहा है कि आखिर इतनी मोटी रकम खर्च भवन क्यों बनाया गया, जब उसमें ताला ही लटकाना था तो? आखिर किसकी लापरवाही की वजह से एमआरआई सेंटर शुरू नहीं हो सका? अगर पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र का ऐसा हाल है तो प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था तो बद से बद्तर होगी! जो स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक के दावे पर भी सवालिया निशान खड़े कर रही है.