नई दिल्ली. राजस्थान जैसलमेर के लोकगायक उस्ताद अनवर खां मांगणियार को सोमवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद्मश्री पुरुस्कार से सम्मानित किया. अपने लोककला को देश विदेशों में पहचान दिला चुके अनवर ने मीडिया से खास बातचीत में कहा, मेरे बुजर्गों की ही दुआ थी, जो मुझे यह सम्मान मिला.
दरअसल जैसलमेर जिले के छोटे से गांव बहिया में लोक गायक रोजड़ खान के घर जन्मे अनवर खां के दादा भी लोक गायक रह चुके हैं. विरासत में मिले इस हुनर को वह अब भी जिंदा रखे हुए हैं . उन्हें उम्मीद है कि इसी तरह से उनकी आने वाली पीढ़ी दर पीढ़ी यह परंपरा चलती रहेगी.
अनवर तमाम बड़ी बड़ी हस्तियों के साथ मंच साझा कर चुके हैं. पद्मश्री से सम्मानित होने के बाद उन्होंने मीडिया से खास बातचीत में कहा, मेरा इतना सम्मान हुआ, हमारी आगे की पीढ़ियों को भी इस सम्मान को बरकरार रखना होगा. भारत सरकार का शुक्रिया करता हूं कि मुझे इस कला और संगीत के लिए सम्मान दिया. उन्होंने कहा, हमारे देश के अन्य गीतकार भी इसी तरह सम्मानित होने चाहिए, ताकि भारत की सांस्कृतिक विरासत बनी रहे. मुझे बहुत खुशी है कि मेरा जन्म एक कलाकार परिवार में हुआ, मेरे दादा, पर दादा पारम्परिक गीत गाते हुए आए हैं और हम भी इसी तरह गाते रहेंगे.
उन्होंने कहा, उस वक्त जो राग, ताल और गीत तैयार किया गया, कई पीढ़ियों से इन्हें सजाया गया है. हम इस गीत की परम्परा को आगे बढाते रहेंगे. हर गीत के पीछे एक इतिहास और कहानी होती है. इसलिए हम पुरानी चीजों को जिंदा रखते हुए बिना किसी बदलाव के उन्ही शब्दों और वेशभूषा का इस्तेमाल कर गाते रहेंगे.
उन्होंने बताया, हमने इस संगीत की साधना की और आज मेरे बुजुर्गों की मेहरबानी है, जो यह पुरुस्कार मुझे मिला है. अनवर खां 50वर्षों से अधिक समय से गा रहें हैं. उनके मुताबिक, उनके परिवार में जन्म लिया हुआ बच्चा भी सुर में रोता है.
उन्होंने बताया कि, बचपन से माता -पिता को सुना, उनसे सीखा और ध्यान लगाकर यह भी जाना कि कब कौन सा गीत गाया जाएगा. इसके अलावा ताल और राग को भी सही पकड़ना होता है. इसलिए कहीं बाहर सीखने नहीं जाना पड़ा क्योंकि आपके घर का संगीत रहा. बाकी अपनी लग्न और महनत के साथ इन्हें सीखना और गाना होता है.
दरअसल अनवर खां को राजस्थानी और सूफी गायिकी की भी मिसाल कायम है. अपने गीत और अपनी बुलंद आवाज को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने मे उनका एक अहम योगदान रहा है. 50 से अधिक देशों में अनवर अपनी लोक कला का प्रदर्शन करके देश के लिए मिसाल बन चुके हैं. यही कारण है कि उनकी इस कामयाबी और इसी उपलब्धि के लिए भारत सरकार ने अनवर खां को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया है.
अनवर खां अपने लोक गीत संगीत की परम्परा को हमेशा जिंदा रखना चाहते हैं. मारवाड़ी, राजस्थानी, हिन्दी, उर्दू, पंजाबी, सिन्धी भाषाओं में लोक संगीत को नई ऊंचाइयों पर शिखर पर पहुंचाना उनका एक सपना है.