उत्तराखंड की धामी सरकार ने बच्चों के भविष्य को खिलौना समझ रखा है. अगर ऐसा न होता तो 1149 प्राइमरी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने के लिए टीचरों की नियुक्ति की जाती. प्राइमरी स्कूलों में एक भी टीचर न होने के बावजूद धामी सरकार और उनका सिस्टम गहरी नींद में सोया हुआ है. इससे न सिर्फ तथाकथित सुशासन सरकार की पोल खुली है, बल्कि कई गंभीर सवाल भी खड़े हो रहे हैं. सवाल ये कि क्या कागजों में ही विकास की बयार बहाई जा रही है? अगर यही हकीकत है तो धामी सरकार को अपने खोखले दावों को लेकर आत्ममंथन करने की सख्त जरूरत है. साथ ही प्राइमरी स्कूल के उन बच्चों के परिजनों से माफी मांगने की जरूरत है, जिनके भविष्य के साथ सरकार और उसके सिस्टम ने खिलवाड़ किया है.

ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि क्योंकि ग्राम्य विकास और पलायन निवारण आयोग की हालिया सर्वे रिपोर्ट ने एजुकेशन सिस्टम की पोल खोलकर रख दी है. रिपोर्ट में बताया गया है कि सूबे के 1149 प्राइमरी स्कूलों में एक भी टीचर नहीं हैं. इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद विपक्ष ने धामी सरकार पर हमला बोला है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा का कहना है कि प्रदेश में शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्थाएं भगवान भरोसे चल रही हैं.

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कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि एक ओर सरकार ‘डबल इंजन’ की बात करती है, वहीं दूसरी ओर जमीनी हकीकत ये है कि हजारों बच्चे बिना शिक्षक के पढ़ाई करने को मजबूर हैं. यह अत्यंत शर्मनाक स्थिति है कि उत्तराखंड के 1149 प्राथमिक स्कूलों में एक भी शिक्षक नियुक्त नहीं है. ये आंकड़ा न सिर्फ शिक्षा व्यवस्था की दुर्दशा को उजागर करता है, बल्कि सरकार की प्राथमिकताओं पर भी सवाल खड़े करता है.

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करन माहरा ने कहा कि आज भी प्रदेश में शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं भगवान भरोसे हैं. केंद्र सरकार ‘क्लीन इंडिया’ का सपना दिखाती है और राज्य सरकार उसका अनुसरण करती है, लेकिन देहरादून जैसे राजधानी जिले में ही 100 से अधिक विद्यालय ऐसे हैं, जहां बच्चों के लिए शौचालय तक की व्यवस्था नहीं है. जब राजधानी की ये हालत है, तो दूरस्थ पहाड़ी इलाकों की स्थिति का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है.