विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने गांजे के इस्तेमाल से कई बीमारियों को जोड़ा है, मसलन दिमागी क्षमता को क्षति, ब्रोनकाइटिस, फेफड़ों में जलन आदि. (यहां देखे वीडियो कैसे दवाई में कैसे होता है इस्तेमाल)
डब्ल्यूएचओ यह भी कहता है कि कुछ अध्ययन बताते हैं कि कैंसर, एड्स, अस्थमा और ग्लूकोमा जैसी बीमारियों के इलाज के लिए गांजा मददगार है. लेकिन उसका यह भी मानना है कि गांजे के चिकित्सीय इस्तेमाल को स्थापित करने के लिए और अध्ययन की जरूरत है.
पिछले कई सालों में कई अध्ययनों में यह स्थापित करने की कोशिश की गई है कि गांजे में औषधीय गुण हैं. अध्ययन में बताया गया है कि गांजे में पाए जाने वाले कैनाबाइडियॉल (सीबीडी) से क्रोनिक पेन का सफलतापूर्वक इलाज किया जा सकता है और इसके विशेष दुष्परिणाम भी नहीं हैं. इंडियन जर्नल ऑफ पैलिएटिव केयर के संपादक और मुंबई स्थित टाटा मेमोरियल सेंटर में असोसिएट प्रोफेसर नवीन सेलिंस का कहना है कि सीबीडी सकारात्मक नतीजे देता है.
कुष्ठरोग के मरीजों पर भी सीबीडी थेरेपी प्रयोग की जाती है. एपीलेप्सी एंड विहेवियर में 2017 में प्रकाशित अध्ययन कहता है कि इसके उपचार के सकारात्मक नतीजे निकले हैं, खासकर उन बच्चों पर जिन्हें मिर्गी के दौरे पड़ते हैं. नेचुरल प्रॉडक्ट्स एंड कैंसर ड्रग डिस्कवरी में जुलाई 2017में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, सीबीडी में क्षमता है कि वह कैंसर रोधी दवा बन सके. कीमोथैरेपी के बाद यह न केवल दर्द से राहत देता है बल्कि क्लीनिकल प्रयोग बताते हैं कि यह कैंसर की कोशिकाओं को विकसित होने से भी रोकता है.
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ आयुर्वेद एंड फार्माक्यूटिकल केमिस्ट्री में प्रकाशित एक पत्र के अनुसार, चिकित्सा में गांजे के शुरुआती प्रयोग की जानकारी 1500 ईसवीं पूर्व अथर्ववेद में मिलती है. इस प्राचीन ग्रंथ में भांग का उल्लेख है जो गांजे का ही एक रूप है. इसे पांच प्रमुख पौधों में से एक माना जाता है. होली के पर्व पर भी आज भी भांग के खाने की परंपरा है. प्राचीन चिकित्सीय ग्रंथ सुश्रुत संहिता में गांजे के चिकित्सीय प्रयोग की जानकारी मिलती है. सुस्ती, नजला और डायरिया में इसके इस्तेमाल का उल्लेख मिलता है.