एक तरफ हमारा देश आजादी की 75वीं सालगिरह पर आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, तो दूसरी ओर बच्चों को मूलभूत शिक्षा हासिल करने के लिए रोजाना खेतों के मेढ़ से होते हुए स्कूल आना-जाना करना पड़ता है, क्योंकि स्कूल बस्ती से डेढ़ किमी दूर खेतों के बीच बना है.

बात हो रही है बेमेतरा जिले के बेमेतरा विकासखंड के ग्राम पंचायत कोदवा के आश्रित ग्राम सुरुंगदाहरा में संचालित शासकीय प्राथमिक शाला की. बस्ती से डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर बनाए गए स्कूल में पढ़ाई के लिए मासूम बच्चों को रोज डेढ़ किलोमीटर खेतों की मेढ़ों से होते हुए आना-जाना करना पड़ता है.

केवल बच्चों को ही नहीं स्कूल के शिक्षक, रसोइए और चपरासी तक को भी रोज यह मशक्कत करनी पड़ती है. मासूमों के कंधों पर रोजाना बस्तों का बोझ होता है, तो दूसरी ओर शिक्षकों पर पाठ्यसामग्री तो रसोइए और चपरासी पर खाना बनाने के सामानों का बोझ होता है. एक दिन की बात होती तो अलग यह रोज का काम है, और यह सिलसिला एक-दो साल से नहीं बल्कि 19 साल से चल रहा है.

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स्कूल में वर्ष 2002-03 से शैक्षणिक सत्र शुरू हुआ है, खेतों के बीच भवन स्थित होने की वजह से गाड़ी-घोड़ा स्कूल तक आ नहीं सकते, इस वजह से रोजाना छात्रों के साथ शिक्षकों का पैदल चलने का क्रम जारी है. वहीं जब से स्कूल भवन बना है, कभी भी शिक्षा विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों ने झांकने तक की जहमत नहीं उठाई है.

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प्रधान पाठक पारद लाल चंद्राकर बताते हैं कि गांव में वर्ष 1997 से स्कूल शुरू हुआ था. लेकिन शुरुआती दौर में सुरुंगदाहरा में अपने ही घर के आंगन में बच्चों की पढ़ाई कराया करते थे. भवन बनने के बाद सत्र 2002-03 की पढ़ाई स्कूल भवन में हुई. पहले स्कूल एकल शिक्षकीय हुआ करता था. वर्ष 2004-05 में एक और शिक्षक की नियुक्ति के बाद स्कूल में दो शिक्षक हुए.

देखिए वीडियो (साभार – रामकुमार जायसवाल, दाढ़ी)