सुनील शर्मा, भिंड। पाकिस्तान पर भारत की जीत के उपलक्ष्य में देश आज विजय दिवस (vijay divas) मना रहा है। साल 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में शहीद हुए जवानों को देश नमन कर रहा है। विजय दिवस पाकिस्तान पर भारत की ऐतिहासिक जीत के 50 साल पूरे होने पर मनाया जा रहा है। विजय दिवस पर हम आपके लिए एक ऐसे शहीद की कहानी बता हैं, जिन्होंने भारत माता की रक्षा के लिए अपनी जान की आहुति दे दी। वहीं उनके जाने के बाद उनके परिवार को सिस्टम से कुछ नहीं मिला। शहीद का परिवार आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। हम बात कर रहे हैं। 1971 में भारत पाकिस्तान युद्ध में जान गंवाने वाले भिंड के शहीद लाल राम लखन गोयल (Martyr Lal Ram Lakhan GoeL) की बात कर रहे हैं। 

शहीद लाल राम लखन गोयल का परिवार अपनी पुश्तैनी जमीन को दबंगों का कब्जा खाली करवाने के लिए दर-दर की ठोकर खा रहा है। प्रशासन है कि सीएम शिवराज सिंह चौहान (CM Shivraj Singh Chouhan) और रक्षा मंत्रालय (Ministry of Defence) के आदेशों को भी दरकिनार कर मनमानी पर उतरा हुआ है। दरअसल भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 में 13 दिन चले युद्ध में भिंड ज़िले के 22 सैनिक शहीद शहीद हुए थे, जिनमें एक रामलखन गोयल भी शामिल थे। आज उनका परिवार ना सिर्फ़ अनदेखी बल्कि मानसिक प्रताड़ना का भी शिकार हो रहे हैं।

शहीद पत्नी लीला कुमारी ने यह भी बताया कि सिर्फ जमीन का मामला ही नहीं है। कुछ सालों पहले वे जीवन यापन के लिए दिल्ली से अपने शहीद पति के नाम पर पेट्रोल पम्प भी स्वीकृत करवा कर लाई। लेकिन जिला प्रशासन ने उसे भी नामंज़ूर कर दिया। उनका कहना है की शहीद दिवस (shaheed divas) हो या 15 अगस्त और 26 जनवरी सम्मान के नाम पर उन्हें बुलाया जाता है। शाल श्रीफल दे कर इतिश्री कर ली जाती है, लेकिन उनकी बात या परेशानी सुनने को कोई तैयार नहीं होता है।

मदद के नाम पर इंदिरा गांधी ने दिए थे 2 हजार, उसके बाद से नहीं मिली कोई मदद
शहीद की पत्नी लीला कुमारी ने बताया कि उनके जाने के बाद शासन से मदद के नाम पर 135 रुपय की पेंशन, शहीद कॉलोनी में एक मकान और सम्मान के नाम पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आकर दो हज़ार रुपये दिए थे। उसके बाद से आज तक किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली है। आज शहीद परिवारों को जैसा सम्मान और सुविधाएं दी जाती है। उससे अलग यहाँ कोई यह जानने की भी कोशिश नही करता की परिवार किस हाल में हैं।

एक ओर जहां हाल ही में हेलिकॉप्टर क्रेश में शहीद हुए पेरा कमांडो जितेंद्र वर्मा को CM शिवराज ने अंतिम विदाई दी। उनके परिवार को सम्मान के रूप में एक करोड़ की राशि, पत्नी को सरकारी नौकरी और तमाम सुविधाएँ देने की घोषणा की है। वहीं 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में शहीद हुए भिंड के वीर सपूत शहीद रामलखन गोयल का परिवार आज जीवन यापन के लिए जद्दोजहद कर रहा है। शहीद परिवार को सरकारी मदद तो दूर, निजी ज़मीन पर दबंगो ने क़ब्ज़ा कर रखा है। भारतीय रक्षा मंत्रालय (Indian Defense Ministry)  से लेकर सीएम शिवराज (CM Shivraj) इस ज़मीन वापस दिलाए जाने के लिए ज़िला प्रशासन को निर्देशित कर चुके हैं। लेकिन हद तो इस बात की है कि ऐसे सम्मानित परिवार की मदद के बजाय प्रशासन अपनी मनमानी पर तुला है।

शहीद परिवारों का सम्मान सिर्फ 26 जनवरी-15 अगस्त तक सिमटा 
शहीद पत्नी का आरोप है कि शहीद परिवारों का 15 अगस्त, 26 जनवरी या शहीद दिवस पर बुलाया जाता है। शॉल-श्रीफल और सम्मान पत्र थमा दिया जाता है। लेकिन इस सम्मान के उलट उनकी परेशनियां कोई नही सुनना चाहता। ऐसा ही एक परिवार है शहीद रामलखन गोयल का है। शहीद राम लखन गोयल देश की रक्षा के लिए 1968 में भारतीय थल सेना का हिस्सा बने थे। तीन साल बाद जब 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ तो भिंड के 22 शहीद जवानो में उनका भी नाम था। वे अपने पीछे अपनी पत्नी लीला कुमारी और 6 माह का बेटा छोड़ गए थे।

पार्थिव देह नहीं, सिर्फ़ टेलीग्राम आया था,
शहीद की पत्नी लीला कुमारी ने बताया के उनके पति ने युद्ध से तीन साल पहले ही आर्मी जोईन की थी। वे 1971 की दिपावली मनाने छुट्टी पर घर आए थे। दिवाली से एक रात पहले ही उन्हें सेना से बुलावा आया और वे त्योहार छोड़कर सीमा के लिए कूच कर गए। आख़िर बार था तब उन्हें देखा था, उसके बाद गांव में सिर्फ़ एक टेलीग्राम आया था। चूंकि परिवार उस दौर में पढ़ना लिखना नहीं जनता था। इसलिए उस टेलीग्राम को स्कूल के मास्टर ने पढ़कर गांव के लोगों को रामलखन गोयल की शहादत के बारे में बताया। पूरे गांव में शोक की लहर दौड़ पड़ी और धीरे-धीरे उनके परिवार को जानकारी मिली। लीला देवी ने बताया कि उस दौरान तो शहीदों के शव भी नही आते थे,ऐसे में उस टेलीग्राम ने हमारी पूरी दुनिया ही बदल दी।

अपनी ही जमीन के लिए लड़ रही शहीद पत्नी
लीला कुमारी ने बताया शासन से जीवन यापन के लिए ज़मीन मिलना तो दूर खुद उनकी बबेड़ी गाँव स्थित पैतृक ज़मीन पर दबंगों ने क़ब्ज़ा कर रखा है। सालों से वे अपनी ज़मीन पाने के लिए लड़ रही हैं। कुछ साल पहले मामला तहसीलदार कोर्ट में पहुंचा था। उसके तथ्यों के आधार पर तहसीलदार ने उनके पक्ष में फ़ैसला देते हुए पिता की ज़मीन का मालिकाना हक़ उन्हें दिया। बाक़ायदा ज़मीन का टैक्स भी भरवाया लेकिन गाँव के दबंगों ने कुछ समय बाद एसडीएम न्यायालय में फ़ैसले को चुनौती दी। पीड़ित लीला कुमारी का कहना है की भ्रष्टाचारी SDM ने फ़ैसला क़ब्ज़ा करने वाले दबंगों के पक्ष में कर दिया।

रक्षा मंत्रालय और CM की भी नही सुनते अधिकारी
अपनी ज़मीन पाने की जद्दोजहद में ज़िला प्रशासन की मनमानी के आगे भी उन्होंने हार नहीं मानी है। उन्होंने दिल्ली रक्षा मंत्रालय में तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर से मदद की अपील की। जिस पर रक्षा मंत्रालय ने एसडीएम का फ़ैसला रोक कर वीर नारी की उनकी ज़मीन दिलाए जाने के आदेश दिया। इतना ही नहीं खुद भोपाल जाकर लीला कुमारी ने सीएम शिवराज से भी मुलाक़ात की। जिन्होंने एक आदेश करते हुए तत्काल मदद के आदेश ज़िला प्रशासन को लिखा लेकिन ज़िला प्रशासन ने प्रदेश के मुखिया के आदेश को भी नज़र अंदाज कर दिया।

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