कभी भारत के कॉरपोरेट जगत में “किंग ऑफ गुड टाइम्स” कहे जाने वाले विजय माल्या आज बैंक डिफॉल्ट और भगोड़ा आर्थिक अपराधी जैसे तमगों के साथ पहचाने जाते हैं. एक समय था जब उनके पास अपना बीयर ब्रांड, एयरलाइंस, क्रिकेट टीम और फार्मा कारोबार था, लेकिन देखते ही देखते सब कुछ बिखर गया.
आज हम जानेंगे कि कैसे एक ग्लैमरस और हाई-प्रोफाइल बिज़नेस टाइकून का साम्राज्य 9000 करोड़ रुपये के कर्ज तले दबकर मिट्टी में मिल गया.
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एक शराब कंपनी से शुरू हुआ था ‘यूबी ग्रुप’ का सफर
विजय माल्या के पिता विट्टल माल्या ने जिस यूबी ग्रुप (United Breweries Group) की नींव रखी थी, उसे विजय ने 1983 में संभाला और आगे बढ़ाया.
ग्रुप का प्रमुख ब्रांड किंगफिशर बीयर भारत में सबसे ज़्यादा बिकने वाले बीयर ब्रांड्स में शामिल हो गया.
शराब कारोबार में माल्या का दबदबा इस कदर बढ़ा कि उन्हें “Beer Baron” तक कहा जाने लगा.
जब माल्या ने बीयर को पंख दिए — किंगफिशर एयरलाइंस की शुरुआत
साल 2005 में विजय माल्या ने एक बड़ा दांव खेला — उन्होंने “किंगफिशर” ब्रांड को आसमान तक पहुंचाने का फैसला किया और लॉन्च की Kingfisher Airlines.
एयरलाइंस लग्ज़री, हाई-क्लास सर्विस और ब्रांड वैल्यू को लेकर खूब चर्चा में रही. हर सीट पर LCD स्क्रीन, बेहतर फूड सर्विस और फैशनेबल क्रू — सब कुछ ग्लैमर से भरपूर था. लेकिन यह चमक-धमक केवल बाहर से थी — भीतर मुनाफे की तस्वीर सदा धुंधली रही.
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Deccan Aviation के अधिग्रहण ने बढ़ाईं मुसीबतें
2007 में इंटरनेशनल उड़ानों का लाइसेंस पाने के लिए माल्या ने Deccan Aviation का अधिग्रहण किया.
इस मर्जर के बाद भले ही अंतरराष्ट्रीय रूट मिल गए, लेकिन कम लागत वाले मॉडल और प्रीमियम सेवाओं के मेल ने बिज़नेस को अस्थिर बना दिया. खर्च बढ़ते गए, लेकिन आय में कोई ठोस सुधार नहीं आया.
कर्ज पर चलता रहा किंगफिशर का इंजन
साल दर साल घाटे में डूबी एयरलाइंस को जिंदा रखने के लिए माल्या ने बैंकों से भारी कर्ज लेना शुरू किया.
एयरलाइन कभी भी मुनाफे में नहीं आ पाई और वेतन तक देने में असमर्थ हो गई.
समय पर टैक्स और ईंधन भुगतान न कर पाने के कारण DGCA ने 2012 में किंगफिशर का लाइसेंस रद्द कर दिया.
यूबी ग्रुप की नींव हिल गई
किंगफिशर एयरलाइंस में लगातार डूबते पैसे और बढ़ते कर्ज ने यूबी ग्रुप के अन्य कारोबारों को भी प्रभावित किया.
शराब कारोबार को बचाने के लिए हिस्सेदारी बेचनी पड़ी.
फार्मा सेक्टर में काम कर रही USV जैसी कंपनियों से माल्या ने पीछे हटना शुरू कर दिया. अंततः पूरा ग्रुप चरमरा गया.
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2016 में विदेश भागे विजय माल्या
जब बैंकों ने रिकवरी की प्रक्रिया तेज की, तो 2016 में माल्या चुपचाप भारत छोड़कर लंदन चले गए. उस समय तक वे 13 बैंकों के ₹9000 करोड़ से अधिक कर्जदार बन चुके थे. बैंकों ने उन्हें जानबूझकर कर्ज न चुकाने वाला डिफॉल्टर घोषित किया. ED और CBI ने उनके खिलाफ केस दर्ज किए.
कानूनी लड़ाई और प्रत्यर्पण की कोशिशें
भारत सरकार ने माल्या को यूके से प्रत्यर्पित कराने के लिए प्रक्रिया शुरू की. 2020 में ब्रिटिश कोर्ट ने प्रत्यर्पण को मंजूरी दे दी, लेकिन कुछ रहस्यमयी कानूनी अड़चनों के चलते अब तक माल्या को भारत लाना संभव नहीं हो पाया है.
महंगी गलतियों की कीमत
एक सफल शराब कंपनी का मालिक जब ग्लैमर और रुतबे के पीछे भागा, तो उसकी मूल ताकत छूट गई. किंगफिशर एयरलाइंस माल्या का सपना थी, लेकिन वही सपना ₹9000 करोड़ के कर्ज के बोझ के साथ उनका सबसे बड़ा अभिशाप बन गया.
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