उमेश यादव, सागर। मध्य प्रदेश आज एक विकसित राज्य है। लेकिन इस विकसित राज्य में आज भी कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जहां लोगों को चुल्लू भर पानी के लिए भी तरसना पड़ रहा है। हम बात कर रहे हैं सागर-बुंदेलखंड इलाके की। जहां सरकारी महकमे की लापरवाही और बस्तियों में सामंती प्रवृत्ति के चलते आम ग्रामीणों का आज भी पीने के पानी के लिए संघर्ष जारी है। हाल अब ये हो गए हैं कि लोगों को अपनी जान जोखिम में डाल कर पीने के पानी तक पहुंचना पड़ रहा है।

750 की आबादी में बस एक ‘कुंआ’

मामला नरयावली के पास इमलिया गांव के ऊपर मोहल्ला इलाके का है। जहां ग्रामीण अपनी जान जोखिम में डालकर कुएं में उतरकर पानी भर रहे हैं। 750 की आबादी वाले इस गांव में सिर्फ एक सरकारी कुंआ है, और उसमें भी पानी नहीं है। गांव के लोग अजब सिंह आदवासी के निजी कुएं से पानी भरते हैं। बिना मुंडेर के इस कुएं से पानी भरने की कोई व्यवस्था नहीं है। इस कारण सीढ़ियों के सहारे महिलाएं व बच्चे बर्तन लेकर 30 फीट गहरे कुएं में उतरते हैं। फिर पानी भरकर भरे बर्तनों के साथ ऊपर चढ़ते हैं। इससे गिरने का डर बना रहता है। कोई और इंतजाम न होने के कारण कई सालों से पानी भरने के लिए इसी तरह का जोखिम उठा रहे हैं।

बारिश का पानी पीने को मजबूर

गांव में दो सरकारी हैंडपंप हैं, लेकिन उनमें पर्याप्त पानी नहीं है। नल-जल योजना के तहत करीब चार साल पहले पाइप लाइन बिछाई गई। लेकिन पानी की टंकी अब तक नहीं बनी। गांव के लोगों का कहना है कि एक बार भी नलों से पानी नहीं आया। बारिश में खेतों में पानी भर जाने से वे कुएं तक नहीं पहुंच पाते। इस कारण ग्रामीण बारिश का पानी बर्तनों में भरकर पीने के उपयोग में लेते हैं।

20 साल है समस्या

ग्रामीण भगीरथ अहिरवार ने बताया कि गांव में एक निजी कुंआ है। जिससे सुबह 5 बजे पूरा गांव पानी भरता है। सरकारी कुआं दो साल पहले ही बना है लेकिन उसका पानी पीने लायक नहीं है। हर गर्मी में महिलाओं और बच्चों को कुएं में नीचे उतरकर जान जोखिम में डालकर पानी भरना पड़ता है। गांव में 15-20 साल से इसी तरह की समस्या है। गांव के ही निवासी पप्पू अहिरवार के अनुसार नल-जल योजना 4 साल से बंद है। सरकारी कुएं में पानी नहीं है। गांव में नल-जल योजना है लेकिन चालू नहीं है। चार-पांच साल पहले पाइप लाइन बिछाई गई, लेकिन अब तक एक बार भी पानी नहीं आया। पाइप लाइन बिछाने गांव के रोड खोद दिए और पानी भी नहीं मिला। बारिश में भी छप्पर से गिरने वाला पानी भरकर पीना पड़ता है। क्योंकि खेत की मिट्टी गीली हो जाने से रास्ता न होने के कारण कुएं तक नहीं पहुंच पाते।

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