नई दिल्लीl हिंदी के प्रख्यात कवि, गद्यकार विनोद कुमार शुक्ल को साहित्य अकादमी की प्रतिष्ठित महत्तर सदस्यता (फैलोशिप) प्रदान की गई है. उनके साथ प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक रस्किन बांड को भी महत्तर सदस्य घोषित किया गया है. यह फ़ैलोशिप भारत की साहित्य अकादमी द्वारा प्रदान किया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है. 1968 में सर्वपल्ली राधाकृष्णन फेलोशिप के लिए चुने गए पहले लेखक थे.
साहित्य अकादमी ने एक बयान में कहा कि अकादमी की आम परिषद ने अध्यक्ष डॉक्टर चंद्रशेखर काम्बर की अध्यक्षता में 18 सितंबर 2021 को हुई एक बैठक में अपने सर्वोच्च सम्मान- फेलोशिप की घोषणा की. फेलोशिप पाने वाले अन्य लेखकों में सिरशेंदु मुखोपाध्याय (बांग्ला), एम लीलावती (मलयालम), डॉक्टर भालचंद्र नेमाडे (मराठी), डॉक्टर तेजवंत सिंह गिल (पंजाबी) ,स्वामी रामभद्राचार्य (संस्कृत) और इंदिरा पार्थसारथी (तमिल) शामिल हैं.
साहित्य अकादमी के सबसे पहले महत्तर सदस्य डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन रहे हैं. चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, ताराशंकर बंधोपाध्याय, सुमित्रानंदन पंत, जैनेन्द्र कुमार, महादेवी वर्मा, आर.के. नारायण, विद्यानिवास मिश्र, कैफ़ी आज़मी, अमृता प्रीतम, शंख घोष, निर्मल वर्मा, कुंवर नारायण, गुरुदयाल सिंह, नामवर सिंह भी साहित्य अकादमी के महत्तर सदस्य चुने जा चुके हैं. भारत की साहित्य अकादमी के महत्तर सदस्य के रूप में एक समय में 24 भारतीय भाषाओं के कुल 21 सदस्य ही हो सकते हैं.
बता दें कि विनोद कुमार शुक्ल हिंदी के प्रसिद्ध कवि और उपन्यासकार हैं. 1 जनवरी 1937 को भारत के एक राज्य छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव में जन्मे शुक्ल ने प्राध्यापन को रोज़गार के रूप में चुनकर पूरा ध्यान साहित्य सृजन में लगाया. उनकी एकदम भिन्न साहित्यिक शैली ने परिपाटी को तोड़ते हुए ताज़ा झोकें की तरह पाठकों को प्रभावित किया, जिसको ‘जादुई-यथार्थ’ के आसपास की शैली के रूप में महसूस किया जा सकता है.
उनका पहला कविता संग्रह 1971 में ‘लगभग जय हिन्द’ नाम से प्रकाशित हुआ. 1979 में ‘नौकर की कमीज़’ नाम से उनका उपन्यास आया जिस पर फ़िल्मकार मणिकौल ने इसी से नाम से फिल्म भी बनाई. कई सम्मानों से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल को उपन्यास ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ के लिए वर्ष 1999 का ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार प्राप्त हो चुका है. विनोद कुमार शुक्ल हिंदी कविता के वृहत्तर परिदृश्य में अपनी विशिष्ट भाषिक बनावट और संवेदनात्मक गहराई के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने समकालीन हिंदी कविता को अपने मौलिक कृतित्व से सम्पन्नतर बनाया है और इसके लिए वे पूरे भारतीय काव्य परिदृश्य में अलग से पहचाने जाते हैं.
वे कवि होने के साथ-साथ शीर्षस्थ कथाकार भी हैं. उनके उपन्यासों ने हिंदी में पहली बार एक मौलिक भारतीय उपन्यास की संभावना को राह दी है. उन्होंने एक साथ लोकआख्यान और आधुनिक मनुष्य की अस्तित्वमूलक जटिल आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति को समाविष्ट कर एक नये कथा-ढांचे का आविष्कार किया है.
अपने उपन्यासों के माध्यम से उन्होंने हमारे दैनंदिन जीवन की कथा-समृद्धि को अद्भुत कौशल के साथ उभारा है. मध्यवर्गीय जीवन की बहुविध बारीकियों को समाये उनके विलक्षण चरित्रों का भारतीय कथा-सृष्टि में समृद्धिकारी योगदान है. वे अपनी पीढ़ी के ऐसे अकेले लेखक हैं, जिनके लेखन ने एक नयी तरह की आलोचना दृष्टि को आविष्कृत करने की प्रेरणा दी है. आज वे सर्वाधिक चर्चित लेखक हैं. अपनी विशिष्ट भाषिक बनावट, संवेदनात्मक गहराई, उत्कृष्ट सृजनशीलता से शुक्ल ने भारतीय वैश्विक साहित्य को अद्वितीय रूप से समृद्ध किया है.
कविता संग्रह-
· ‘ लगभग जयहिंद ‘ वर्ष 1971.
· ‘ वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहिनकर विचार की तरह’ वर्ष 1981.
· ‘ सब कुछ होना बचा रहेगा ‘ वर्ष 1992.
· ‘ अतिरिक्त नहीं ‘ वर्ष 2000.
· ‘ कविता से लंबी कविता ‘ वर्ष 2001.
· ‘ आकाश धरती को खटखटाता है ‘ वर्ष 2006.
· ‘ पचास कविताएँ’ वर्ष 2011
· ‘ कभी के बाद अभी ‘ वर्ष 2012.
· ‘ कवि ने कहा ‘ -चुनी हुई कविताएँ वर्ष 2012.
· ‘ प्रतिनिधि कविताएँ ‘ वर्ष 2013.
उपन्यास-
· ‘ नौकर की कमीज़ ‘ वर्ष 1979.
· ‘ खिलेगा तो देखेंगे ‘ वर्ष 1996.
· ‘ दीवार में एक खिड़की रहती थी ‘ वर्ष 1997.
· ‘ हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़ ‘ वर्ष 2011.
· ‘ यासि रासा त ‘ वर्ष 2017.
· ‘ एक चुप्पी जगह’ वर्ष 2018.
प्रमुख सम्मान :
· ‘ गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप ‘ (म.प्र. शासन)
· ‘ रज़ा पुरस्कार ‘ (मध्यप्रदेश कला परिषद)
· ‘ शिखर सम्मान ‘ (म.प्र. शासन)
· ‘ राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान ‘ (म.प्र. शासन)
· ‘ दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान’ (मोदी फाउंडेशन)
· ‘ साहित्य अकादमी पुरस्कार’, (भारत सरकार)
· ‘ हिन्दी गौरव सम्मान’ (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, उ.प्र. शासन)
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