रायपुर। आज विश्वकर्मा जयंती है. हर साल 17 सितंबर को ही विश्वकर्मा जयंती मनाई जाती है. आज के दिन हर तरह के निर्माण में इस्तेमाल किए जाने वाले औजारों और हथियारों की पूजा की जाती है. खासतौर पर उद्योग से जुड़े लोगों के लिए आज के दिन का बहुत महत्व है. इस दिन को भद्र संक्रांति और कन्या संक्रांति भी कहा जाता है. माना जाता है कि आज के दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से व्यवसाय में खूब तरक्की मिलती है. आज के दिन फैक्ट्रियों, दुकानों खासतौर पर लोहे की, वाहन शो रूम, सर्विस सेंटर वगैरह को खूब सजाया जाता है.
माना जाता है कि भगवान विश्वकर्मा ही सबसे पहले निर्माता है. उन्हें आज का इंजीनियर मान सकते हैं. उन्होंने ही स्वर्ग, स्वर्ण से बनी लंका, द्वारका, हस्तिनापुर तक का निर्माण किया. यहां तक कि देवताओं और असुरों के हथियारों को भी विश्वकर्मा ने ही बनाया था, जिसमें भगवान इंद्र का ‘वज्र’ भी शामिल है.
17 सितंबर 2017 को पूजा मुहूर्त
सूर्योदय- 6:17
सूर्यास्त- 18:24
संक्रांति का समय- 00:54
भगवान विश्वकर्मा के जन्म की कहानी
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, भगवान विश्वकर्मा का जन्म देवताओं और असुरों के बीच हुए समुद्र मंथन से हुआ था. वास्तुकारों के लिए भगवान विश्वकर्मा ही गुरू हैं.
पौराणिक कथाओं में लिखा है कि सृष्टि के प्रारंभ में सबसे पहले समुद्र में शेषशय्या पर लेटे भगवान विष्णु प्रकट हुए. उनकी नाभि कमल में ब्रह्मा जी थे. ब्रह्मा के पुत्र के रूप में धर्म का जन्म हुआ और धर्म के बेटे ‘वास्तुदेव’ थे. वास्तुदेव की पत्नी अंगिरसी हुईं, जिन्होंने वास्तुकला के आचार्य भगवान विश्वकर्मा को जन्म दिया.
भगवान विश्वकर्मा के पूजन की विधि
भगवान विश्वकर्मा की पूजा के लिए ‘ॐ आधार शक्तपे नम:’ और ‘ॐ कूमयि नम:’, ‘ॐ अनन्तम नम:’, ‘ॐ पृथिव्यै नम:’ मंत्र का उच्चारण करते हैं.
भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति या प्रतिमा की पूजा की जाती है. साथ ही उद्योग धंधों से जुड़े लोग कल-पुर्जों, हथियारों, गाड़ियों, यंत्रों, मशीनों का पूजन करते हैं. पूजा के बाद हवन का विधान है. पूजा में रोली, अक्षत, मिठाई, जल का इस्तेमाल करते हैं. भगवान विश्वकर्मा की पूजा के पहले भगवान विष्णु का ध्यान जरूर किया जाता है. भगवान विष्णु का ध्यान करने के बाद दाहिने हाथ में फूल और अक्षत लेकर मंत्र पढ़ें. अक्षत को चारों ओर छिड़क कर फूल को जल में छोड़ दें. हाथ में रक्षा सूत्र यानि मौली बांधें.
पूजा स्थल पर सफाई कर लें. जमीन पर अष्टदल कमल बनाएं. उस पर जल डालें. फिर सुपारी, पंचपल्लव, सप्त मृन्तिका, मिठाई, रोली, दक्षिणा कलश में डालकर कपड़े से कलश की तरफ अक्षत चढ़ाएं. एक बर्तन में चावल रखें और इसे विश्वकर्मा भगवान की मूर्ति के सामने रख दें. फिर औजार, मशीनों, यंत्रों, कलपुर्जों की पूजा करें. फिर हवन करें.
भगवान विश्वकर्मा को लेकर प्रचलित कुछ बातें
बताया जाता है कि भगवान विश्वकर्मा ने ही सभी देवताओं के भवन, पुष्पक विमान, सभी हथियार, देवताओं द्वारा पहने जाने वाले आभूषण भी बनाए हैं. उन्होंने ही कर्ण के कुंडल, भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र, शिवजी का त्रिशूल, यमराज का कालदंड बनाए हैं. प्राचीन काल में कई नगर समेत कई आविष्कार इनके द्वारा ही किए गए हैं.
ये देवताओं के शिल्पकार हैं.
विश्वकर्मा के 5 अवतार हैं- विराट विश्वकर्मा, धर्मवंशी विश्वकर्मा, अंगिरावंशी विश्वकर्मा, सुधन्वा विश्वकर्मा, भृंगुवंशी विश्वकर्मा.
भगवान विश्वकर्मा के मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी और दैवज्ञ नाम के पांच पुत्र हैं. मान्यता है कि ये सभी वास्तु शिल्प की अलग-अलग विधाओं में पारंगत थे. उनके पुत्र मनु को लोहे से, मय को लकड़ी, त्वष्टा को कांसे और तांबे, शिल्पी के ईंट और दैवज्ञ को सोने-चांदी से जोड़ा जाता है.