अमित पांडेय, खैरागढ़. बुधवार का दिन राजनांदगांव रेंज के पुलिस महानिरीक्षक कार्यालय के लिए असामान्य रहा। खैरागढ़, मानपुर और राजनांदगांव तीनों इलाकों से नक्सल पीड़ित परिवार बड़ी संख्या में पहुंचे थे। कोई बुज़ुर्ग मां अपने बेटे की तस्वीर लिए खड़ी थी तो कोई महिला अपने छोटे बच्चों को साथ लेकर न्याय की गुहार लगाने आई थी। सभी की आवाज एक ही थी कि “हमें पुनर्वास नीति का हक चाहिए।
पीड़ित परिवारों ने आईजी को ज्ञापन सौंपकर कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार ने इस साल नक्सलवादी आत्मसमर्पण/पीड़ित राहत पुनर्वास नीति-2025 लागू की है। इसमें आश्रितों को शासकीय नौकरी, 15 लाख रुपये मुआवजा, आवास और बच्चों की शिक्षा का प्रावधान है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि किसी को न नौकरी मिली, न मुआवजा, न ही पुनर्वास की कोई ठोस सुविधा। गृहमंत्री तक आदेश जारी कर चुके हैं, मगर जिला स्तर पर अधिकारी चुप्पी साधे बैठे हैं। राजनांदगांव से पहुंचे एक परिजन ने कहा, “हम सालों से चक्कर काट रहे हैं। कभी कलेक्टर के पास जाते हैं, कभी तहसील के पास, लेकिन सुनवाई नहीं होती। अधिकारी सिर्फ आश्वासन देते हैं, हक नहीं।” मानपुर से आए परिवारों का दर्द भी यही था कि नक्सल हिंसा ने पहले उनका सहारा छीना, अब सरकारी उपेक्षा ने उनकी उम्मीदें भी तोड़ दी है।


पीड़ित परिवारों ने दी आंदोलन की चेतावनी
पीड़ित परिवारों के नेता धीरेंद्र साहू ने साफ कहा, अब और चुप नहीं रहेंगे। अगर हमारी मांगें पूरी नहीं हुई तो हम सब रायपुर जाकर राजधानी में आंदोलन करेंगे। हम अपने हक के लिए आख़िरी दम तक लड़ेंगे। उनके इस बयान ने उपस्थित सभी परिवारों की पीड़ा को आवाज दी। ज्ञापन में मांग की गई कि मृतक आश्रितों को तुरंत नौकरी या 15 लाख रुपये का मुआवज़ा दिया जाए, आवास और जमीन का आवंटन हो और बच्चों की शिक्षा की गारंटी सरकार अपने जिम्मे ले।
अफसरशाही की बेरुखी से अपना हक पाने भटक रहे लोग : धीरेंद्र
धीरेंद्र साहू ने कहा कि नीति लागू करना ही पर्याप्त नहीं है, उसे पारदर्शी और समयबद्ध तरीके से लागू करना ही असली न्याय है। नक्सल हिंसा से तबाह इन परिवारों की जिंदगियां अब प्रशासनिक उपेक्षा की वजह से और कठिन हो गई है। कभी नक्सलियों के डर से गांव छोड़ना पड़ा तो अब अफसरशाही की बेरुख़ी से दर-दर भटकना पड़ रहा है। सरकार ने कागज पर राहत की नीतियां तो बना दी, लेकिन पीड़ितों तक उनका लाभ नहीं पहुंचा। यही वजह है कि आज वे एकजुट होकर चेतावनी दे रहे हैं कि अगर हमें हमारा हक नहीं मिला तो हम सड़कों पर उतरेंगे।
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