रायपुर. हिंदू धर्म में हर वार को किसी न किसी देवता की पूजा होती है यानी हर दिन किसी न किसी देवता को समर्पित है. वहीं बुधवार भगवान गणेश को प्रिय है. अब यहां सवाल यह उठता है कि भगवान गणेश तो प्रथम पूज्य है. ऐसे में उनकी पूजा बुधवार को ही क्यों? क्यों ये दिन उन्हें इतना प्रिय है? Also Read – अपने बेटों का नाम सुनकर ही प्रसन्न हो जाती है मां लक्ष्मी, इस दिवाली आकस्मिक धन पाने के लिए जरूर लें मां के पुत्रों का नाम …

विघ्नहर्ता को प्रिय है बुधवार

पौराणिक कथाओं के अनुसार जब माता पार्वती के हाथों गणेश जी की उत्पत्ति हुई थी, तब उस समय भगवान शिव के धाम कैलाश में बुध देव भी उपस्थित थे. बुध देव की उपस्थिति के कारण श्री गणेश जी की आराधना के लिए वह प्रतिनिधि वार हुए यानी बुधवार के दिन गणेश जी पूजा का विधान बन गया. बुधवार की सबसे बड़ी विशेषता तो यही है कि इसे शास्त्रों में सौम्यवार कहा जाता है. इस दिन उनकी पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है. दूसरी ओर ज्योतिषियों का तो ये भी कहना है कि कोई भी नया काम शुरू करने के लिए बुधवार का दिन बेहद शुभ होता है. जिन लोगों की कुंडली में बुध कमजोर होता है, उन्हें बुधवार के दिन गणेश भगवान की पूजा विधि-विधान से करनी चाहिए.

21 दूर्वा की 21 गांठें से दूर होती विघ्न बाधा

मान्यता है कि गणेश जी को 21 दूर्वा चढ़ाई जाती है. 21 दूर्वा को इकट्ठा कर एक गांठ बांधकर रखी जाती है. एक कथा के अनुसार प्राचीन समय में अनलासुर नाम का एक विशाल दैत्य था. उनका अंत केवल भगवान गणेश के द्वारा ही संभव था. देवी-देवताओं को बचाने के लिए अनलासुर दैत्य को भगवान ने निगल लिया. लेकिन इससे उनके पेट में काफी जलन होने लगी. जिसे शांत करने के लिए कश्यप ऋषि ने दूर्वा की 21 गांठ बनाईं और गणेश जी को दी. इससे उनके पेट की जलन बिल्कुल शांत हो गई. इसके बाद से ही गणेश जी को दूर्वा चढ़ाई जाती है. Also Read – पापा के बेहद करीब थीं वैशाली ठक्कर, शेयर करती थी एक खास बॉन्ड …

गणेश जी को 21 दूर्वा की 21 गांठें चढ़ाने से व्यक्ति की सभी विघ्न बाधाएं दूर हो जाती है. इन्हें चढ़ाने के लिए 10 मंत्रों का उ’चारण किया जाता है. हर मंत्र के साथ दो दूर्वा चढ़ाई जाती हैं. जब आखिरी दूर्वा चढ़ाते समय सभी 10 मंत्रओं का जाप धारा-प्रवाह में करना चाहिए. पढ़ें ये 10 मंत्र… ऊं गणाधिपाय नम:, ऊं उमापुत्राय नम:, ऊं विघ्ननाशनाय नम:, ऊं विनायकाय नम:, ऊं ईशपुत्राय नम:, ऊं सर्वसिद्धिप्रदाय नम:, ऊं एकदन्ताय नम:, ऊं इभवक्त्राय नम:, ऊं मूषकवाहनाय नम:, ऊं कुमारगुरवे नम: है.