रमेश बत्रा,तिल्दा. सोशल मीडिया में पिछले कुछ दिनों से एक मैसेज वायरल हो रहा था. जिसमें बलौदाबाजार जिले के हिरमी गांव में 4 अनाथ बच्चों को गोद देने की अपील थी. ये खबर जब Lalluram.com को पता चली तो हम पूरे मामले के पड़ताल के लिए गांव पहुंचे. हमारे संवाददाता ने इसकी जानकारी प्रशासन को भी दी. जब हमारी टीम इस गांव में पहुंची तो इस मैसेज के बारे में पूछा तो ग्रामीण हमें इस परिवार तक लेकर गए. यहां चार बच्चे अपने दादा के साथ रह रहे हैं. इनमें सबसे बड़ी बच्ची की उम्र 8 साल, दूसरा 6 साल, तीसरा 2 साल और चौथा महज 4 दिन का है. 4 दिन पहले इनकी मां की मौत निमोनिया के चलते हो गई. जबकि पिता 4 महीने पहले ही बीमारी और समय पर इलाज नहीं मिलने के चलते काल के गाल में समा गए. इस परिवार की स्थिति बेहद खराब है. बच्चों को दादा और अन्य लोग संभाल रहे हैं लेकिन वे इस स्थिति में नहीं की इनका अच्छे से लालन-पालन कर सकें. ऐसे में सोशल मीडिया पर गांव के ही किसी शख्स ने खबर फैलाई की इन अनाथ बच्चों को कोई गोद लेना चाहता है तो संपर्क करे. इस खबर के आधार पर आज रायपुर से एक दंपति बच्चा गोद लेने के लिए हिरमी पहुंच गया. इसके लिए इन्होंने इसकी कानूनी प्रक्रिया जानने की भी जहमत नहीं उठाई.
इधर लल्लूराम डॉट कॉम से मिली जानकारी के आधार पर बाल विकास विभाग की टीम भी आज ही गांव पहुंच गई. टीम ने इस दंपति को समझाबुझा कर वापस भेजा और इसके लिए कानूनी तरिका अपनाने की हिदायत दी.
सरकारी मदद किस चिड़िया का नाम ?
राजधानी रायपुर से महज 60 किमी दूर हिरमी में रहने वाले इस परिवार की हालत बेहद खराब है. इन बच्चों के माता-पिता मजदूरी कर जैसे तैसे अपना जीवन यापन कर रहे थे, लेकिन बीमारी के चलते पिछले कई दिनों से वो भी नहीं कर पा रहे थे. बावजूद इसके इस परिवार को सरकारी मदद नहीं मिल पाई. ग्रामीणों ने गांव पहुंचे अधिकारियों से इस बारे में पूछा की आखिर क्यों ये परिवार तमाम सरकारी योजनाओं के बाद भी वंचित क्यों रह गया ? क्यों ये परिवार इन मासूमों को गोद देने के बारे विचार करने लगा ? अधिकारियों ने इन सवाल के जवाब में सरकारी मदद का भरोसा तो दिलाया है, लेकिन ये कब पूरा होगा देखने वाली बात होगी. वहीं फिलहाल बुजुर्ग दादा ने अधिकारियों के वादे पर भरोसा करते हुए इन मासूमों को गोद देने का विचार त्याग दिया है.
नियमों के चलते हम इन बच्चों का चेहरा नहीं दिखा रहे हैं. लेकिन इनकी आंखों में जो दर्द और मजबूरी के साथ एक खामोश सवाल है जिसका जवाब शायद जिम्मेदारों के पास भी नहीं है. शायद ये पूछ रही हैं सरकारी मदद किस चिड़िया का नाम है ?