गोविंद पटेल, कुशीनगर. जनता को लुभाने के लिए सरकार तमाम योजनाएं बनाती है, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत क्या होती है यह सभी को मालूम है. योजनाएं सिर्फ कागजी आंकड़ों तक सिमट कर रह जाती हैं और लाभार्थी दर-दर भटकने पर मजबूर रहते हैं. मामला कुशीनगर जनपद के सोहसा मठिया गांव का है, जहां सैकड़ों की संख्या में बांसफोड़ जाति के लोग रहते है, जिनके पास तक सरकारी योजनाएं पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ देती है और ये नरक जैसे जीवन जीने पर विवश रहते हैं. इनको शुद्ध पीने के लिए पानी तक मुहैया नहीं हो पाया. शौचालय और आवास के लिए यह दर-दर भटकने पर मजबूर हैं.
सरकार विकास की बड़ी-बड़ी बातें भले करती हो, लेकिन इनकी जमीनी धरातल की तस्वीरें कुछ और ही है. जनपद के हाटा विकासखंड के सोहसा मठिया गांव में रहने वाले बांसफोड़ जाति के लोग हैं, जिन तक सरकारी योजनाएं पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ देते हैं. बांसफोड़ जाति के लोगों का जीवन यापन बांस से बने सामानों को बेचकर चलता है. सरकारी योजनाओं के लिए तरसते यह लोग ज्यादा पढ़े-लिखे भी नहीं हैं, जिससे कि यह अपने अधिकारों के बारे में जान सके. सर्व शिक्षा अभियान के बड़े-बड़े स्लोगन भले दीवारों पर लिखे हो, लेकिन इनके बच्चे कभी स्कूल नहीं जाते और ना ही कोई इस तरफ ध्यान भी देता है, जिससे कि इनके जीवन स्तर में बदलाव हो सके.
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जनपद में इनके खासी आबादी है और यह अपने पुश्तैनी रोजगार को चलाकर अपना जीवन यापन करते हैं, लेकिन आज के महंगाई के दौर में इनका जीवन मुश्किल भरा हो गया है. प्रधानमंत्री आवास को लेकर सरकार बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन आज तक इन लोगों को आवास मुहैया नहीं हो सका.
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जब इस बारे में अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों तक सवाल पूछा जाता है तो इनका कहना है कि जो पात्र होगा उसको योजनाओं का लाभ निश्चित ही मिलेगा, लेकिन अब इनसे पात्र कौन हो सकता है, जिनके पास ना रहने के लिए घर है और ना ही खेती करने के लिए भूमि है. किसी तरह हाड़तोड़ मेहनत करके अपना जीवन बसर करने पर मजबूर हैं. अब देखना यह है कि इन लोगों को सरकारी योजनाएं का लाभ मिल पाता है या इसी तरह दर-दर भटकने पर मजबूर रहते हैं.
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