रायपुर. गरीब परिवार की फटी हुई जेब महंगे अस्पतालों में अपने मरीज के इलाज की इजाजत नहीं देती. सरकारी अस्पतालों के बिस्तरों से लेकर बरामदे की जमीन पर पड़े मरीजों और उनके परिजनों के माथे की सिलवटों को एक बार देख आइए, मालूम चल जाएगा कि सरकारी व्यवस्था में इलाज की उनकी मजबूरी किस हद तक उनके चेहरों पर उभर आई है. गरीब के हर मर्ज का इलाज यही सरकारी अस्पताल है. एक तबके के लिए सरकारी अस्पताल जरूरत है, तो एक तबके के लिए यह लूट खसोट का कारोबार चलाने का जरिया है. इन सरकारी अस्पतालों के लिए छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन लिमिटेड (सीजीएमएससी) द्वारा बीते पांच सालों में खरीदी गई दवाओं, उपकरणों और अन्य चीजों की जांच कर ली जाए, तो एक महाघोटाला फूटकर बाहर आएगा. अगर जांच हुई तो यह भी पता चलेगा कि आखिर कैसे ठेकेदार और अफसरों के सिंडिकेट ने राज्य सरकार के खजाने को जमकर लूटा है. 

घपलों-घोटालों की इस कहानी का मजमून जानना हो तो सीजीएमएससी में की गई खरीदी का दस्तावेज झांक आना चाहिए. सीजीएमएससी द्वारा दवा और मेडिकल उपकरण की होने वाली कुल सालाना खरीदी से कहीं ज्यादा रिएजेंट (जांच के लिए इस्तेमाल होने वाला केमिकल) और इससे संबंधित उपकरणों की खरीदी कर ली गई. विभागीय सूत्र इस बात की तस्दीक करते हैं कि पूर्ववर्ती सरकार के आखिरी सालों में पांच सौ करोड़ रुपए से ज्यादा की खरीदी की गई. दुर्ग की कंपनी मोक्षित कारपोरेशन को इस खेल का मास्टरमाइंड बताया जाता है. कहते हैं कि वन विभाग में कभी ट्रांसपोर्टेशन का कारोबार करने वाली यह कंपनी पूर्ववर्ती भूपेश सरकार में फर्श से अर्श तक पहुंच गई. देखते ही देखते मोक्षित कारपोरेशन ने स्वास्थ्य महकमे को पूरी तरह से अपनी गिरफ्त में ले लिया. विभाग के आला सूत्र बताते हैं कि टेंडर में ऐसी शर्तें रखी जाने लगी, जिसका फायदा मोक्षित कारपोरेशन और उससे जुड़ी दूसरी कंपनियों को होता था. सरकार के एक आला अधिकारी कहते हैं कि ‘ मोक्षित कारपोरेशन का पनपना राज्य को बीमार करने जैसा है’. 

सीजीएमएससी से जुड़े एक पूर्व अधिकारी का कहना है कि दवा, उपकरण जैसी खरीदी पर मोक्षित कारपोरेशन की मोनोपोली हो चुकी है. सीजीएमएससी से लेकर स्वास्थ्य महकमे के कई आला अधिकारी और कर्मचारी उसके इशारों पर काम करते हैं. टेंडर शर्तों को मैनुपुलेट कर मोक्षित कारपोरेशन को कैसे फायदा पहुंचाया जा सके, इसका पूरा तंत्र खड़ा किया गया है. दस्तावेज बताते हैं कि सैकड़ों करोड़ रुपए की खरीदी में भंडार क्रय नियमों का उल्लंघन किया गया. राज्य के मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, स्वास्थ्य विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव और अलग-अलग जांच एजेंसियों को की गई शिकायत में इस बात का जिक्र किया गया है कि भंडार क्रय नियमों की अनदेखी करते हुए मोक्षित कारपोरेशन और उससे संबंधित अन्य कंपनियों से एक हजार करोड़ रुपए से ज्यादा लैब रिएजेंट, उपकरण व दवा खरीदी गईं. इन शिकायतों के प्रति लल्लूराम डॉट कॉम के पास मौजूद है. 

ओईएम के नाम पर खेल

विभागीय सूत्र बताते हैं कि ओरिजिनल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर (ओईएम) के नाम पर बड़ा खेल खेला गया है. कई टेंडर की शर्त में ओईएम का क्लाज जोड़ा जाता था, जिससे कई सप्लायर खुद ब खुद बाहर हो जाते थे. कभी डिस्ट्रीब्यूटर बनकर तो कभी ओईएम सर्टिफिकेट लगाकर टेंडर हासिल कर लिया जाता था. अलग-अलग फर्म बनाकर एक ही कंपनी टेंडर लेती रही. आधिकारिक सूत्र बताते हैं कि सीजीएमएससी, डायरेक्टर हेल्थ के डिमांड नोट के आधार पर ही खरीदी करती है. जैसा डिमांड भेजा जाता है, वैसी खरीदी होती है. कई बार दवा या उपकरण खरीदी मद में बजट नहीं होने के बावजूद टेंडर निकाला जाता था. तय सप्लायर को टेंडर देकर सप्लाई करवाई जाती थी और उस सप्लायर को दूसरे मद के लिए आवंटित राशि का मद परिवर्तन कर भुगतान किया जाता था. विभागीय सूत्र बताते हैं कि सरकारी अस्पतालों के लिए सीजीएमएससी करीब 90 फीसदी खरीदी करती थी, 10 फीसदी खरीदी जिला स्तर पर की जाती थी. लेकिन एक ही कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए खरीदी का यह प्रतिशत 60-40 का कर दिया गया. दवा, मेडिकल उपकरण तथा अन्य सामग्री की 40 फीसदी खरीदी जिला स्तर पर होने से टेंडर प्रक्रिया को ताक पर रख सीधे सप्लायर से खरीदी होने लगी थी. सप्लायर ने इसका खूब फायदा उठाया और करोड़ों रुपए की सप्लाई की. 

सप्लाई में घालमेल !

विभागीय जानकारी के मुताबिक मोक्षित कारपोरेशन ने जर्मनी की डायसिस कंपनी से इक्विपमेंट और रिएजेंट लेकर छत्तीसगढ़ सरकार को बेचा है. यदि राज्य सरकार सीधे डायसिस कंपनी से इक्विपमेंट और रिएजेंट की खरीदी करती, तो सरकार के सैकड़ों करोड़ रुपए बच जाते, लेकिन सिंडिकेट के किरदारों की वजह से राज्य सरकार को बड़ा नुकसान हुआ. अब भी करीब तीन सौ करोड़ रुपए लंबित है, जिसका भुगतान किया जाना है.  इतनी राशि से राज्य सरकार कई जिलों में सुपर स्पेशलिटी अस्पताल बना सकती थी. विधानसभा में सरकार के दिए गए लिखित जवाब में यह बताया गया है कि मोक्षित कारपोरेशन ने बाजार दर से कहीं ज्यादा कीमत पर रिएजेंट की सप्लाई सरकार कर बड़ा मुनाफा कमाया है. विधानसभा में दी गई एक जानकारी में इस बात का खुलासा हुआ था कि कुल 182 जांच उपकरण, मशीन और केमिकल रिएजेंट की खरीदी की गई थी. इस खरीदी पर कुल 608 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे. छत्तीसगढ़ सरकार को की गई सप्लाई में 4 गुना से लेकर 200 गुना तक मुनाफा कमाया गया. उदाहरण के लिए सीजीएमएससी ने 5000 पीडियाट्रिक ईडीटीए ट्यूब की खरीदी की थी. छत्तीसगढ़ सरकार को एक ईडीटीए ट्यूब की खरीदी करीब 3 हजार रुपए की दर से सप्लाई की गई, जबकि खुले बाजार में इसकी कीमत 5 रुपए की थी. दस्तावेजों में इस बात का भी जिक्र मिलता है कि जिस रिएजेंट की कीमत करीब 31 हजार रुपए है, उसे करीब 1 लाख 96 हजार रुपए में खरीदा गया. डायसिस कंपनी के एक अन्य रिएजेंट की कीमत जहां 28 हजार 417 रुपए थी, वहां इसकी खरीदी 1 लाख 76 हजार रुपए में कर दी गई. इसी तरह डी डीमर एफ एस रिएजेंट की खुले बाजार में कीमत करीब 70 हजार रुपए है, उसे करीब 5 लाख 86 हजार रुपए में खरीदा गया. इसी तरह अन्य दवाओं, उपकरणों और रिएजेंट की सप्लाई में बाजार मूल्य से कहीं अधिक कीमत पर खरीदी की गई. यूरिन टेस्ट की जिस स्ट्रिप के एक पैकेट की कीमत जहां खुले बाजार में 1300 रुपए है, उसकी खरीदी करीब 3 हजार 294 रुपए प्रति पैकेट की दर पर की गई. इसी तरह अन्य दवाओं, उपकरणों की सप्लाई में भी भारी घालमेल किया गया है. 

आडिट में पकड़ी गई गड़बड़ी

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता की ओर से मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को सौंपे गए शिकायत पत्र में कहा गया है कि ऑफिस ऑफ द प्रिंसिपल अकाउंट जनरल ऑडिट आब्जरवेशन ने बड़ी गड़बड़ी पकड़ी थी. ऑडिट ऑब्जरवेशन 29 जनवरी 2021 से 15 मार्च 2021 तक की गई थी. इस आडिट में 193 करोड़ रुपए की खरीदी में आपत्ति जताई गई थी. ऑडिट रिपोर्ट में की गई आपत्ति के बावजूद टेंडर निरस्त नहीं किया गया. मोक्षित कारपोरेशन ने अपनी सप्लाई जारी रखी. शिकायत में यह भी उल्लेखित है कि सीजीएमएससी के जनरल मैनेजर (टेक्निकल) बसंत कौशिक ने मोक्षित कारपोरेशन को फायदा पहुंचाने के लिए नियमों को ताक पर रख दिया. मुख्यमंत्री को भेजी गई शिकायत में यह मांग की गई है कि संबंधित के विरुद्ध आपराधिक प्रकरण दर्ज किया जाए. इधर कोरोना काल में उपकरण खरीदी में अनियमितता करने के एक मामले में स्वास्थ्य विभाग के विशेष सचिव रहे डा.सी आर प्रसन्ना ने एक आंतरिक जांच रिपोर्ट में बसंत कौशिक को जिम्मेदार मानते हुए अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की थी. बसंत कौशिक के विरुद्ध शिकायत पर ईओडब्ल्यू ने भी राज्य शासन से भ्रष्टाचार अधिनियम की धारा के तहत जांच शुरू करने को लेकर चिट्ठी लिखी थी. बावजूद इसके बसंत कौशिक के विरुद्ध अब तक कार्रवाई लंबित है. 

उच्च स्तरीय जांच जारी- स्वास्थ्य मंत्री

स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने लल्लूराम डाॅट काम से हुई बातचीत में कहा है कि इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच की जा रही है. जांच रिपोर्ट आने पर सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने कहा कि किसी को भी नहीं बख्शा जाएगा.

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