डोंगरगांव- डोंगरगांव विधानसभा क्षेत्र खनिज संपदा से संपंन रहा है. खनिज राजस्व का एक बड़ा हिस्सा डोंगरगांव से ही जाता है. लेकिन इस क्षेत्र में विकास घर-घर तक नहीं पहुंच पाया है. यह सीट कांग्रेस का किला रही है जिसे भेदने बीजेपी मैदान में उतर चुकी है. इस क्षेत्र में हमेशा से ही विकास की संभावनाएं रही हैं लेकिन बुनियादी सुविधाओं के अभाव में यह क्षेत्र हमेशा से ही उपेक्षित रहा है. गौरतलब है कि इस सीट से मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह भी विधायक रह चुके हैं.

कौन कौन है मैदान में-

कांग्रेस-दलेश्वर साहू

बीजेपी- मधुसूदन यादव

आम आदमी पार्टी- चंद्रमणी वर्मा

बसपा- अशोक वर्मा

मतदाता- 

कुल मतदाता- 1,83,025

महिला मतदाता- 90,924

पुरूष मतदाता- 92,101

2013 विधानसभा चुनाव, 

दलेश्वर साहू, कांग्रेस, कुल वोट मिले 67,755

दिनेश गांधी, बीजेपी, कुल वोट मिले 66,057

क्या हैं जनता के स्थानीय मुद्दे-

मूलभूत सुविधाओं का अभाव- इन क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. बिजली, पानी, शिक्षा, रोजगार के साधनों का अभाव हैं. अर्जुनी, एल्बी नगर, तुमड़ीबोड़, बिलहारी, मुसरा जैसी जगहों पर ग्रामिणों को आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए मशक्कत करनी पड़ती है.

सड़कों की बदहाली- अंदरूनी क्षेत्रों में सड़कों के नाम पर उखड़ी हुई पगडंडियां हैं. ग्रामीण इन्ही पगडंडियों से आना जाना करते हैं. बारिश के समय यहां की स्थिति और खराब हो जाती है. जनता चाहती है कि इस बार कोई भी सरकार बने बस उनकी जरूरतों और मांगो के ध्यान में रखकर काम करे.

शिक्षा स्तर में सुधार की मांग- ग्रामीण अंचल में बच्चों को उच्च स्तर की शिक्षा उपलब्ध नहीं हो पा रही है. कम पढ़े लिखे और अकुशल ग्रामिणों को कहीं नौकरी नहीं मिल पाती. इसलिए इनके उज्जव भविष्य के लिए शिक्षा के गिरते ग्राफ को उठाना जरूरी है.

क्या कहता है चुनावी समीकरण- 

इस विधानसभा सीट से भाजपा से मधुसूदन यादव, कांग्रेस से दलेश्वर साहू बसपा से अशोक वर्मा और आम आदमी पार्टी ने चंद्रमणि वर्मा चुनावी मैदान में है. इस सीट पर बीजेपी और कांग्रेस की सीधी टक्कर देखने को मिल रही है. बीजेपी की अगर बात करें तो यहां से राजनांदगांव निगम के महापौर और पूर्व सांसद मधुसूदन यादव को टिकट दिया गया है. मधुसूदन यादव का जिले में काफी नाम है औऱ जनता के बीच इनकी पैठ भी अच्छी है, लेकिन पूर्व प्रत्याशी दिनेश गांधी और प्रदीप गांधी सहित अन्य कई नामों की अनदेखी करने पर बीजेपी कार्यकर्ताओं में नाराज़गी है. जिसका खामियाज़ा बीजेपी को चुनाव में देखने को मिल सकता है.

वहीं कांग्रेस में भी प्रत्याशी को लेकर एक लंबी लिस्ट थी, लेकिन कांग्रेस ने पूर्व प्रत्याशी पर ही दांव लगाना सही समझा. दलेश्वर साहू की अगर बात करें तो अपने कार्यकाल के दौरान दलेश्वर जनता से मुख़ातिब होते रहे. इससे जनता के बीच उनकी पकड़ मजबूत है. उनका क्षेत्र में एक्टिव रहना और अच्छी छवि कांग्रेस को इस सीट पर जीताने के लिए अहम भूमिका निभा सकती है.

वहीं जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जोगी के पदाधिकारियों को टिकट ना देकर बसपा को इस सीट से टिकट देने की वजह से कई बड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं ने जोगी कांग्रेस का दामन छोड़ दिया. जिसका खामियाज़ा निश्चित तौर पर जोगी बसपा गठबंधन को देखने को मिल सकता है.