-वैभव बेमेतरिहा

रायपुर. बलौदाबाजार में हिंसा की जो घटना घटित हुई थी, वह सिर्फ विरोध, प्रदर्शन और सिसायी बवाल नहीं है. इस घटना ने छत्तीसगढ़ की एकता, भाईचारा को खंडित किया है. इस घटना ने सामाजिक सद्भभाव को बिगाड़ने का काम किया है. इस घटना ने एक समाज के प्रति गलत छवि को गढ़ने का काम किया है. इस घटना ने समाज में असामाजिक तत्वों को जगह देने का काम किया है. इस घटना ने छत्तीसगढ़ की राजनीति को दूषित करने का काम किया है. इस घटना ने समाज को विघटित करने का काम किया है. इन्हीं सब कारणों से यह सवाल भी उठ रहा है कि इस मामले में सर्वदलीय, सर्वसमाज संग चर्चा क्यों नहीं ? क्योंकि यह घटना सिर्फ एक समाज आधारित घटना नहीं है, भले वह एक समाज के अंदर घटित घटना से ही ऊपजा हुआ विवाद आधारित क्यों न हो ?

दरअसल, छत्तीसगढ़ की पृष्ठभूमि उन राज्यों की तरह कतई नहीं है जैसे कई अन्य राज्यों में जातिगत, सामाजिक, साम्प्रदायिक आधारित विवादों, घटनाओं और आंदोलनों का रहा है. उन राज्यों की तरह कतई नहीं जहां राजनीति इन्हीं सब पृष्ठभूमि पर आधारित है. शायद इसके पीछे संत बाबा गुरु घासीदास का दिया हुआ संदेश- ‘मनखे-मनखे एक बरोबर’ रहा है. शायद इसके पीछे राज्य में पड़ा कबीर पंथ का छाप भी रहा है. शायद इसके पीछे बूढ़ादेव के वंशजों का सबके संग ‘सेवा जोहार’ रहा है. या शायद इसके पीछे छत्तीसगढ़ महतारी के आँचल में सर्व समाज का समाहित होना रहा है.

यही वजह है कि आदिवासी बाहुल्य राज्य छत्तीसगढ़ ने सभी समाजों को सर्वहित माना. सभी समाजों ने मिलकर इस राज्य को पूरे देश में सबसे शांति प्रिय क्षेत्र बनाया है. सभी समाजों ने मिलकर इस राज्य की छवि को देश में राजनीतिक हिंसा से दूर रखा है. यहां की सियासत को साम्प्रदायिक होने से बचाए रखा है. लेकिन बलौदाबाजार में हिंसा की घटना के बाद बहुत कुछ तेजी से बदल रहा है.

ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि इस घटना से सबक लेकर भविष्य में ऐसी घटनाओं को होने से रोका जा सके. क्योंकि यह सिर्फ कानून व्यवस्था का सवाल नहीं है. यह सिर्फ आंतरिक चूंक नहीं है. यह सिर्फ विरोध-प्रदर्शन के बीच घटित एक हिंसा की घटना नहीं. यह सिर्फ एक सतनामी समाज की ओर से आयोजित आंदोलन से ऊपजा विवाद नहीं. इस घटना ने सर्व समाज को रेखांकित किया है.

इस पर सर्व समाज को एकजुट होकर मंथन करना चाहिए. सभी राजनीतिक दलों को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सर्वदलीय विचार करना चाहिए. इस घटना को जिस भी योजनाबद्ध तरीके अंजाम दिया गया उसका पर्दफाश हर स्तर से होना चाहिए. कानूनी तौर भी और सामाजिक तौर पर भी. पक्ष और विपक्ष की राजनीति में यह मामला उलझकर न रह जाए. राजनीतिक आरोप और प्रत्यारोप में कहीं समाज आपस मेें न बंट जाएं ? यह इसलिए भी जरूरी हो चला है कि क्योंकि अब यादव समाज ने भी मोर्चा खोलने की चेतावनी दे दी है. यादव समाज की नाराजगी इस बात को लेकर है कि उनके समाज के विधायक देवेन्द्र यादव को गिरफ्तार किया गया है. ऐसे में अन्य समाजों को इस पर विचार करके मंथन करना चाहिए.

वैसे सवाल जनप्रतिनिधि किस समाज से है, यह नहीं होना चाहिए. क्योंकि जनप्रतिनिधि तो सर्वसमाज का होता है, किसी एक समाज का नहीं है. सवाल ये होना चाहिए, सामाजिक तौर पर सभी समाज को एक होकर इस बात का चिंतन करें, क्या ऐसी घटनाएं जायज है ? समाज को इस तरह हिंसात्मक और उग्र होने से कैसे रोका जाए ?

जनप्रतिनिधियों का भी यह यादित्व होना चाहिए वह अपने समाजों को उग्र आंदोलनों से रोक कर संत गुरुघासीदास और संत कबीर के दिखाए अहिंसा और सत्य की ओर जाने प्रेरित करते रहें. सरकारों को समाज के अंदर उठते या फूटते आंदोलनों की परवाह संवेदनशीता से करती रहनी चाहिए. क्योंकि नेता हो या सरकार सबकुछ समाज से ही है. समाज का भी दायित्व है कि वह सामाजिक तौर पर होने वाले आंदोलनों को लेकर पूरी तरह से सजग रहे. ऐसा न हो की कहीं से कोई समाज की आड़ में आंदोलन को किसी गलत दिशा में ले जाए. और इसका नुकसान सर्वसमाज को उठाना पड़े.

बहरहाल उम्मीद है कि पुलिस और न्यायिक जांच के बीच सरकार का सर्व समाज के साथ संवाद और राजनीतिक दलों के समन्वय से सत्य की खोज और जीत होगी. उस सत्य की जिसका संदेश बाबा गुरु घासीदास ने दिया है. सतनाम का जय होते रहेगा, जिसकी गूंज छत्तीसगढ़ के पग-पग में है. राजनेताओं की राजनीति समाज पर केंद्रित नहीं, छत्तीसगढ़ के विकास पर होगी. और यह तभी संभव है जब सब मिलकर एक साथ बैठेंगे, सर्वदल भी और सर्वसमाज भी.