नई दिल्ली। रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच दुनिया में मचे गेहूं संकट के बीच भारतीय गेहूं की खेप को तुर्की ने रूबेला वायरस के नाम पर लेने से इंकार कर बड़े खेल को अंजाम देने के लिए रचे गए षड़यंत्र का खुलासा हो गया है. माना जा रहा है कि तुर्की की यह भारतीय गेहूं के बाजार को खराब करने की साजिश है, दूसरे देश भारतीय गेहूं लेने से कतराए और वह आने वाले समय में इसका फायदा उठा सके.

गेहूं की यह कहानी 55 हजार टन की एक खेप की है. असल में यह गेहूं भारत ने तुर्की को बेचा ही नहीं था. इस गेहूं की पूरी कहानी की एक मीडिया ने पड़ताल की है. रिपोर्ट में आईटीसी लिमिटेड के एग्री बिजनेश विंग के सीईओ रजनीकांत राय के हवाले से बताया गया कि आईटीसी ने डज फर्म ईटीजी कमोडिटीज को गेहूं की यह खेप बेची थी. जिसने स्विस कंपनी एसजीएस को गुणवत्ता परीक्षण के लिए नियुक्त किया था. डज फर्म ईटीजी ने इसे मई में तुर्की के एक खरीदार को बेच दिया था. सीईओ रजनीकांत के मुताबिक आईटीसी और ईटीजी को सौदे को भुगतान पूर्व में ही हो चुका है.

तुर्की की तरफ से बात उड़ाई गई कि गेहूं की इस खेप में रूबेला वायरस पाया गया है, वहीं गेहूंं की इस खेप में प्रोटीन की मात्रा भी कम होने की बात कही गई थी, लेकिन तुर्की की तरफ से इस मामले को लेकर अभी तक कोई भी आधिकारिक रिपोर्ट नहीं दी गई है. रजनीकांत राय ने बताया कि तुर्की ने भारतीय खेप को किस वजह से लौटाया है, इसकी रिपोर्ट अभी तक तुर्की की तरफ से ना ही डज फर्म ईटीजी को दी गई है, और ना ही इस बारे में हमें कोई जानकारी दी गई है.

राय ने बताया कि तुर्की से गेहूं को लौटाए जाने के बाद उसे मिस्त्र ने भी लौटा दिया है, यह पूरी तरह से अफवाह है. उन्होंने कहा कि जहाज कभी मिस्र गया ही नहीं और अब यह इजराइल में एक बंदरगाह पर खड़ा है. जिससे गेहूं उतारने की प्रतीक्षा की जा रही है, जो यह दर्शाता है कि गेहूं की इस खेप को एक नया खरीदार मिल गया है.