पुष्पेंद्र सिंह, दंतेवाड़ा। दंतेवाड़ा जिले की कटेकल्याण ब्लॉक की सूरनार, टेटम और मारजुम पंचायतों को लाल आतंक का गढ़ माना जाता था. सलवा जुडूम के बाद तो यहां जनता सरकार का बोलबोला रहा, यहां प्रशासन की पहुंच ही नहीं थी. दशकों तक स्वतंत्रता दिवस पर काला झंडा फहरा कर विरोध दर्ज करवाते रहे. पुलिस की कड़ी तपस्या ने अब इन पंचायतों को मुख्यधारा से जोड़ दिया है. माओवाद के गढ़ में काला झंडे को ग्रामीणों ने दरकिनार कर अब तिरंगा लहरा रहे हैं.

गांव के लोग कहते हैं रकि सड़क बनने से विकास सरपट दौड़ रहा है. इन पांच-छह वर्षो में दर्जनों माओवादियों ने सरेंडर किया है. कई माओवादियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है. इतना ही नहीं इन तीनों पंचायतें कई मुठभेड़ की साक्षी रही है. पुलिस को भी भारी नुकसान उठाना पड़ा है. पुलिस कर्मियों की शहादत के बाद यहां लोकतंत्र बहाल हुआ है. 15 अगस्त को बच्चों ने सूरनार में राष्ट्रगान किया. ग्रामीणों ने भी देश के सबसे बड़े पर्व में बढ़-चढ कर हिस्सा लिया है.

सूरनार, टेटम और मारजूम अब पूरी तरह से बदल गया है. लोग हाथों में तिरंगा लेकर विकास पथ पर आगे बढ़ रहे हैं. उसी तरह अबूझमाड़ क्षेत्र में इस बार पुलिस के साथ ग्रामीणों ने तिरंगा फहराया है. इंद्रावती नदी पार भी नक्सलवाद को ग्रामीणों ने नकार दिया है. तुमरीगुंडा, चेरपाल, पहुंरनार, काउरगांव और बड़करका जैसे अदरूनी इलाके के गांव में बड़ी शान से तिरंगा फहराया गया है. पुलिस कप्तान गौरव राय कहते है कि अंदरुनी इलाकों में माओवादियों के अब पैर उखड़ चुके हैं. इन इलाकों में ग्रामीण विकास में शरीक हो रहे हैं. स्वतंत्रता दिवस पर अंदरूनी क्षेत्र में शान से झंडा फहराया गया है.

मिडक़ोम राजू के समर्पण से शांति

कटेकल्याण ब्लॉक में हड़ता मंडावी उर्फ मिडकोम राजू के समर्पण से इन पंचायतों में शांति हुई. ग्रामीणों का कहना है कि काफी समझाने के बाद उसने मुख्यधारा को उपनाया था. पुलिस ने भी बड़ा प्रयास किया. मिडक़ोम राजू एलओस कमांडर था. उस पर शासन की ओर से पांच लाख रुपए का इनाम था. राजू के समपर्ण के बाद यहां से 18 और माओवादियों ने समर्पण किया. इन माओवादियों के मुख्यधारा में जुडने के बाद सूरनार लाल आतंक से दूर हुआ है. इसी तरह टेटम में 10 और मारजूम में 9 माओवादियों ने समर्पण किया. इन समर्पण के बाद प्रशासनिक पहुंच हुई. अब यहां सडकें बन रही हैं, देवगुडी बन चुका है. तमाम योजनाओं का ग्रामीण लाभ ले रहे हैं.

ब्लास्ट में शहीद हुआ मिडकोम राजू

दरभा डिवीजन की मजबूत कड़ी माने जाने वाले मिडकोम राजू एक दशक से अधिक कटेकल्याण इलाके में दहशत का पर्याय माना जाता रहा. समर्पण के बाद पुलिस के कंधे से कंधा मिलाकर अपने ही पुराने साथियों के लिए मैदान में उतरा. कईयों का समर्पण भी करवाया. पुलिस के साथ माओवादी मुठभेड़ों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. राजू ने अपने इलाके से माओवादियों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया. मिडक़ोम की निशानदेही पर सात माओवादियों को गिरफ्तार किया गया और मुठभेड़ में अलग घटनाओं में आठ माओवादी मारे भी गए. लेकिन 26 अप्रैल को मिडकोम राजू अरनपुर ब्लास्ट में शहीद हो गया. सूरनार गांव के लोग उसकी शहदत को नमन कर 15 अगस्त को झंडा फहरा रहे हैं.