रायपुर। किसानों के देशव्यापी आंदोलन के साथ एकजुटता के देशव्यापी आव्हान पर महिलाओ ने रायपुर में मानव श्रृंखला बनाई. इसमें बड़ी संख्या में माकपा, सीटू, आर डी आई ई यू महिला समिति व ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं के साथ समाज के हर हिस्से के नागरिकों ने भागीदारी दी. सीटू के राज्य सचिव धर्मराज महापात्र ने यह जानकारी देते हुए बताया कि शामिल लोगों ने प्रधानमंत्री के किसानों की मदद के दावों की निन्दा की, जो प्रधानमंत्री किसानों को बरबाद करे और कारपोरेट व विदेशी कम्पनियों की मदद करे, फिर भी अपने मुंह मिया मिटठू बने, देश के लिए शर्मनाक है.

नेताओं ने कहा कि 3 खेत कानून व बिजली बिल 2020 की वापसी किसानों की पहली व सबसे अग्रिम मांग है. शेष मांगें बाद में. प्रधानमंत्री बेतुके दावे कर अंजान लोगों को गोलबंद कर रहे हैं और किसानों की न्यायोचित मांग पर जनता के बीच संदेह फैला रहे हैं. भारत सरकार ने खेती में निजी निवेशकों की मदद के लिए 1 लाख करोड़ रुपये आवंटित किये हैं खुद निवेश करने को राजी नहीं हैं.

पीएम किसान निधि किसानों को मात्र रु. 16.32 का तुत्छ सहयोग है. फसल बीमा ने कम्पनियों की आय 10 हजार करोड़ प्रतिवर्ष से बढ़ाई. ओडीएफ में बने 90 फीसदी शौचालय गैर कार्यात्मक, 95 फीसदी बैंक खाता ज्यादातर शून्य बैलेन्स, रसोई गैस पर अब ज्यादातर सब्सिडी गायब, पीएम आवास में थोक के भाव गबन हो रहा है, श्रम कानून भी सरकार ने बदल दिए,

किसानों की 3 कृषि कानून व बिजली बिल वापसी की मांग पर मुंह मोड़ने के साथ-साथ भारत सरकार ने निजी निवेशकों द्वारा खेती में पैसा लगाने में सहयोग करने के लिए 1 लाख करोड़ रुपये आवंटित किया है, जबकि किसानों की मांग थी कि सरकार खुद सिंचाई, मशीनों की आपूर्ति, मंडियों में सुधार, लागत की सब्सिडी, एमएसपी व खरीद आदि में निवेश करे,

देश के किसान एआईकेएससीसी के नेतृत्व में कई सालों से सी 2.5 फीसदी के हर फसल के एमएसपी और हर किसान से खरीद तथा सभी किसानों, खेत मजदूरों, आदिवासियों की कर्जमाफी के लिए लड़ते रहे हैं. पर इन्हें हल करने के लिए मोदी सरकार 3 अध्यादेश और बिजली बिल 2020 को लेकर आई जिससे सभी वर्तमान सुविधाएं व सुरक्षाएं समाप्त हो जाएंगी और एक कानूनी ढांचा कारपोरेट व विदेशी कम्पनियों के मुनाफे का बनेगा. इससे खेती की प्रक्रिया, लागत की बिक्री, मशीनरी, फसल की खरीद, भंडारण, परिवहन, प्रसंस्करण और खाने की बिक्री पर उनका कब्जा हो जाएगा. इससे किसानों पर कर्ज बढ़ेगा, आत्महत्याएं बढ़ेंगी, फसलें सस्ती होंगी, खाना मंहगा होगा और जमाखोरी व कालाबाजारी बढ़ेगी.