टिकाऊ अर्थव्यवस्था का सूत्र है, गांव से शुरु होकर शहरों तक पहुंचना. शहर के ज्यादातर कारोबार गांवों पर निर्भर होते हैं. ग्रामीणों को अपनी आजीविका के लिए मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. राज्य सरकार ने अब आजीविका आधारित अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने का लक्ष्य तैयार किया है. हर क्षेत्र को रोजगार से जोड़ने का काम हो रहा है. सरगुजा में रेशम उत्पादन के कारोबार से करीब 14 गांवों की महिलाओं को समूह के माध्यम से रोजगार उपलब्ध कराया गया है, जिससे वे आर्थिक तौर पर सशक्त बन रही हैं.

गौठान के बाद अब वन आधारित ग्रामोद्योग से जुड़े रेशम उत्पाद पर फोकस किया गया है. जो छत्तीसगढ़ की पारंपरिक संस्कृति का हिस्सा है. जिसे अब आजीविका के साधनों से जोड़कर नए रोजगार के अवसर पैदा किए जा रहे हैं. जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति मिल रही है.

रेशम उत्पादन में कीर्तिमान

छत्तीसगढ़ में वन आधारित ग्रामोद्योग को बढ़ावा देने के संकल्प के रूप में रेशम विभाग द्वारा कोसा रेशम योजनाओं का कियान्वयन किया जा रहा है. राष्ट्रीय स्तर पर झारखण्ड के बाद छत्तीसगढ़ राज्य टसर कोसा उत्पादन में दूसरे नंबर पर है. विभाग द्वारा संचालित योजनाओं का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण और स्थानीय स्तर पर रोजगार का सृजन करना रहा है. यही वजह है कि देश में सबसे ज्यादा रेशम उत्पादन के साथ अब छत्तीसगढ़ भी इस कारोबार में तेजी से आगे बढ़ता जा रहा है. 25 से ज्यादा जिलों में रेशम उत्पादन का कार्य होने लगा है.

रीपा में धागाकरण की इकाई का संचालन

सरगुजा जिले के पुहपुरा ग्राम पंचायत में स्थापित ग्रामीण औद्योगिक पार्क में रेशम धागा निर्माण इकाई की स्थापना की गई है. जहां स्व-सहायता समूह की महिला सदस्यों को प्रशिक्षण देकर उनके द्वारा बड़े पैमाने पर रेशम के धागे तैयार किए जा रहे हैं. यहां भूरे रंग के रेशम धागे तैयार किए जाते है. ये महिलाएं घर का काम-काज निपटाकर रीपा आती हैं और धागा बनाने के काम में जुट जाती हैं. इन महिलाओं द्वारा तैयार किए गए धागे को ग्रामोद्योग विभाग द्वारा खरीद लिया जाता है. इससे महिलाओं को घर के खर्चों के लिए अतिरिक्त आमदनी मिल रही है. ग्रामीणों को अपने ही क्षेत्र में एक निर्धारित.

टसर और मलबरी रेशम के लिए प्रसिद्ध छत्तीसगढ़

आजीविका का साधन मिल गया है. इस कार्य से एक महिला धागा प्रसंस्करण इकाई में अगर 25 दिन काम करती है तो उसकी मासिक आय 5000-7000 रुपये बड़ी आसानी से हो रही है. पूरे राज्य में इस कारोबार से 50 हजार से ज्यादा लोगों को जोड़ा जा चुका है. छत्तीसगढ़ को रेशम की दो प्रजाति टसर और मलबरी रेशम के लिए जाना जाता है. टसर वन सिल्क कहलाता है, जिसका राज्य के वनांचल में बड़े पैमाने पर उत्पादन हो रहा है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने रेशम उत्पादन को आजीविका से जोड़कर इसे ग्रामोद्योग तक सीमित रखने के बजाए फैलाने पर जोर दिया था. अब इस कारोबार को उत्पादन तक सीमित करने के बजाए धागा और कपड़ा बनाने तक बढ़ाया जा रहा है. यह कारोबार प्रदेश के सभी जिलों में जोर पकड़ चुका है. ग्रामोद्योग विभाग गांवों में रह रहे कृषक परिवारों को उन्हीं के क्षेत्रों में रेशम से जुड़े कारोबार के माध्यम स्वरोजगार उपलब्ध करवा रहा है. इसके लिए कई योजनाओं को संचालित किया जा रहा है.

514 लाख नग से ज्यादा कोसा संग्रहण

राज्य सरकार द्वारा टसर रेशम विकास और विस्तार योजना के अंतर्गत कृमि पालकों को टसर स्वस्थ डिम्ब समूह सहायता और टसर ककून के उत्पादन के लिए 423 केन्द्र संचालित हैं. विभाग और अन्य योजना मद और प्राकृतिक वन खंडों में 10 हजार 486 हेक्टेयर टसर खाद्य पौधारोपण उपलब्ध है. नैसर्गिक टसर कोसा उत्पादन योजना के अंतर्गत बस्तर संभाग के सात जिलों में साल बहुल वन खंडों में ककून का उत्पादन होता है. इस योजना के तहत वर्ष 2022-23 में 100 नैसर्गिक कैंपों का आयोजन किया गया, जिसमें 514.59 लाख नग कोसा का संग्रहण किया गया है. जिसमें 18 हजार 359 हितग्राही लाभान्वित हुए. जिसमें 1826 अनुसूचित जाति और 11125 अनुसूचित जनजाति के संग्राहकों को लाभ मिला है.