Column By- Ashish Tiwari , Resident Editor

क्या खिचड़ी पक रही है?

विरोधी दलों के विधायक एक साथ कहीं घूम कर आए, तो भौंहे तिरछी कर लोग सवाल उठाएंगे ही कि आखिर खिचड़ी क्या पक रही है? बात यूं है कि पिछले दिनों एयरपोर्ट पर महिला विधायकों का जमावड़ा दिखा. इस टोली में सत्ताधारी दल कांग्रेस, कांग्रेस की खिंचाई करने विपक्ष में बैठी बीजेपी और साइड में रहकर कभी सरकार के साथ, तो कभी विपक्ष के साथ अपनी भूमिका की अदायगी करने वाली बसपा की महिला विधायक एक साथ नजर आईं. सभी महिला विधायक उदयपुर की उड़ान भरने एयरपोर्ट पर पहुंची थीं. तीन दिन उदयपुर और एक दिन माउंट आबू जाने का कार्यक्रम बना था. मालूम चला कि इस दौरे की स्पांसरशिप महिला-बाल विकास मंत्री अनिला भेड़िया ने किया था. बताते हैं कि एयरपोर्ट पहुंची एक महिला विधायक के दिलों की धड़कन उस वक्त बढ़ गई, जब वहां पहले से ही उनके दल के कई नेता मौजूद नजर आए. दरअसल ये सभी नेता प्रभारी की अगुवाई के लिए पहुंचे थे. नेताओं ने महिला विधायक को देख लिया. चर्चा है कि इस दौरे की जानकारी महिला विधायक ने संगठन नेताओं को नहीं दी थी. खैर, ये अच्छी बात है कि राजनीति के परे भी महिला विधायकों के रिश्तों का यह जोड़ बेहद मजबूत है. अपनापन बने रहे. 

हनी ट्रैप का डर

इधर महिला विधायकों की उदयपुर यात्रा तो हो गई, उधर हनी ट्रैप के जाल में कहीं फंस ना जाए, ये सोचकर कई विधायकों ने मालद्वीप की यात्रा छोड़ दी. दरअसल कुछ अरसा पहले विधानसभा ने विधायकों के लिए आस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड का ट्रिप प्लान किया था. बैग पैक होना शुरू हो ही गया था कि कोरोना ने दस्तक दे दी. विधायक मन मसोसकर रह गए. ना जाने कितने ख्याली पुलाव बना रखे होंगे. कहते हैं कि कोरोना की रफ्तार थमने के बाद विधानसभा ने एक दफे फिर मालद्वीप ट्रिप प्लान किया था. सत्ताधारी दल समेत विपक्षी दलों के विधायकों की सूची भी बन गई थी. मगर राजनीतिक गतिविधियों ने चुनावी चोला पहन लिया था. सुनाई पड़ा है कि सीडी बन जाने, हनी ट्रैप के जाल में फंसने की तमाम अटकलों के बीच विपक्षी दलों के कुछ विधायकों ने जाने से तौबा कर लिया. खासतौर पर बीजेपी के विधायक सेफ पैसेज ढूंढते दिखे. बताते हैं कि ख्यालों में मालद्वीप के सुंदर बिचेस से ज्यादा मोदी-शाह का चेहरा नजर आता था. थोड़े से मजे के लिए कहीं लेने के देने ना पड़ जाए, सोचकर ट्रिप पर जाने से तौबा करना ही मुनासिब समझा. 

ऑपरेशन लोटस

बीजेपी में ऑपरेशन लोटस शुरू हो गया है. इस ऑपरेशन में दूसरे दलों के नाराज नेताओं को साधने का काम तेजी से चल रहा है, साथ ही पार्टी छोड़कर गए मजबूत लोगों की घर वापसी कराई जा रही है. बीजेपी ने संभागीय प्रभारियों को यह जिम्मा सौंपा है. बताते हैं कि प्रभारियों से कहा गया है कि नाराज नेताओं पर चील की नजर रखो. जहां मौका मिले झपट लो. ऐन केन प्रकारेण बीजेपी में लाया जाए. रणनीतिकारों ने ईडी-आईटी जैसी एजेंसियों के इस्तेमाल से भी इंकार नहीं किया है. आने वाले दिनों में सत्ताधारी दल का कोई बड़ा नेता बीजेपी ज्वाइन कर ले, तो बड़ी बात नहीं. कुछ भी हो सकता है. बीजेपी में तो चर्चा है कि ऑपरेशन लोटस की शुरुआत राष्ट्रपति चुनाव से ही हो गई थी, जब एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में कांग्रेस के दो विधायकों ने वोट डाले थे. खैर कहा जा रहा है कि बीजेपी ने प्रभारियों के रुप में ओम माथुर, शिवप्रकाश, अजय जामवाल, नितिन नबीन जैसे चेहरों की तैनाती ही इसलिए की है कि ये सभी जोड़-तोड़ की राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं. जेसीसी विधायक रहे धर्मजीत सिंह की पार्टी सदस्यता रद्द करने के पीछे की बड़ी वजह ऑपरेशन लोटस ही बताया जा रहा है. चर्चा है कि धर्मजीत सिंह और प्रमोद शर्मा ने स्पीकर डॉ.चरणदास महंत से मिलकर एक नई पार्टी बनाने के संदर्भ में चर्चा की थी. इस चर्चा को इस समीकरण से जोड़कर देखा जा रहा है कि नई पार्टी बनाकर उसका विलय बीजेपी में कर दिया जाता. दल बदल कानून की जद से भी बच जाते. इसकी भनक अमित जोगी को लग गई और फिर जो हुआ वह सामने है.

भैंस के आगे बिन बजाए….

एक कहावत है, ‘भैंस के आगे बीन बजाए, भैंस खड़ी पगुराय’. राज्य में वन भैंसों के संवर्धन के लिए किए जा रहे सरकारी प्रयासों पर ये कहावत बिल्कुल सटीक बैठ रही है. वन भैंसा राजकीय पशु है, मगर जितनी इसकी जितनी दुर्गति की गई, उतनी किसी की नहीं. वन भैंसों के संवर्धन के लिए बीते बीस सालों से सरकार एक एनजीओ के भरोसे बैठकर रह गई है. करोड़ों खर्च हो गए, मगर हाल जस का तस है. सबसे पहले लाखों खर्च कर एक बाड़ा बनाया गया और वैज्ञानिक तरीके से मैटिंग कराई गई. अधिकांश बार नर भैंसा पैदा हुए. बाड़े में रहकर भैंसा स्ट्रेस में ना आ जाए, लिहाजा फिर लाखों खर्च कर कॉलर आईडी लगाई गई. मॉनिटरिंग का लेवल देखिए कि तब एक वन भैंसा मर गया, मगर यह मालूम चलने में चार दिन लग गए. वह भी एक ग्रामीण के बताए जाने पर. क्योंकि कॉलर आईडी की रिपोर्ट दिल्ली से आती थी. एनजीओ इसकी रिपोर्ट हफ्ते में एक दिन देता था. इसके बाद करोड़ों खर्च कर क्लोनिंग से बनाई गई एक मादा वन भैंसा लाकर जंगल सफारी में रखा गया. बताते हैं कि करनाल से लाई गई इस मादा वन भैंसा के लिए ढाई करोड़ रुपए का बाड़ा बनाया गया. इसकी डीएनए मैपिंग नहीं की गई. बाद में मालूम चला कि यह मुर्रा नस्ल की भैंस है. इसके बाद एनजीओ ने असम से वन भैंसा लाने की पहल शुरु की गई. नस्ल सही है या नहीं इसके लिए गोबर की जरुरत थी, मगर असम ने देने से मना कर दिया. केंद्र सरकार के हस्तक्षेप के बाद गोबर मिला. पता चला शुद्ध नस्ल है. फिर असम से दो किशोर वन भैंसा लाया गया. बारनवापारा में छोड़ा गया. एनजीओ के सुझाव पर अब कृत्रिम गर्भाधान किये जाने की तैयारी चल रही है. इतने सालों की कवायद के बाद भी वन भैंसों की संख्या नहीं बढ़ाई जा सकी. इंद्रावती के इलाके में बड़ी संख्या में वन भैंसा है. बताते हैं कि इस इलाके से लगने वाले महाराष्ट्र और ओडिशा जैसे राज्यों में वन भैंसा के लिए एक सुरक्षित इलाका डेवलप किया गया है. मगर पिछली सरकार से लेकर इस सरकार तक राजकीय पशु के संवर्धन के प्रयास फेल ही साबित हुए. वन भैंसा राजकीय पशु जरुर है, मगर राज्य में यह सिर्फ एक प्रयोगशाला बनकर रह गया.

तबादले पर मुंह फुलाए बैठे कांग्रेसी

कोरोना के बाद सरकार ने तबादले शुरू कर दिए हैं. मंत्री-विधायकों की मांग पर नई नीति बनाई गई. चुनावी साल है, बड़ी जरूरतें पूरी होंगी. मगर इन सबके बीच कांग्रेस संगठन हैरान है. हैरानी की बात यह है कि पीसीसी में तबादले को लेकर नेता-कार्यकर्ताओं की भीड़ नहीं आ रही. कांग्रेस जिस साल सरकार में बैठी थी, उस साल आवेदनों की इतनी भरमार थी कि संगठन नेता त्रस्त नजर आते थे. मगर अब हाल जुदां है. बकौल एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता सरकार में आने के पहले साल कई नेता-कार्यकर्ताओं ने अधिकारी-कर्मचारियों के तबादले के लिए रुचि दिखाते हुए आवेदन दिया था. जाहिर है सामने वाले को उम्मीद दिलाई गई होगी और बदले में कुछ अरमान पूरे किए गए होंगे, मगर खूब फजीहत हुई. ज्यादातर आवेदन रद्दी की टोकरी में फेंक दिए गए. बताते हैं कि इस दफे नेता-कार्यकर्ता अपनी फजीहत कराने से बच रहे हैं. यही वजह है कि तबादलों के आवेदन लिए पार्टी दप्तर में उमड़ने वाली भीड़ छंट गई है. लोग यह कहते भी सुने गए हैं कि पिछली बार के अनुभव से कांग्रेसी मुंह फुलाए बैठे हैं. 

कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस

 कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस की नई तारीख आ गई है. 8-9 अक्टूबर को यह कांफ्रेंस होगी. मंत्रालय ने कांफ्रेंस का एजेंडा भेजकर कलेक्टर-एसपी से 30 सितंबर तक की अवधि का अपडेटेड डाटा मांगा है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि चुनावी काउंटडाउन शुरु होने की वजह से कांफ्रेंस में अबकी बार अधिकारियों का पसीना निकाला जाएगा. जमीनी कामकाज को लेकर वैसे भी मुख्यमंत्री अब आक्रामक दिखाई पड़ रहे हैं. पिछले दिनों ही खराब सड़कों पर उनका गुस्सा अधिकारियों ने देख ही लिया है. सो कांफ्रेंस की सूचना मिलते ही कलेक्टर-एसपी कामकाज के हिसाब किताब में जुट गए हैं. वैसे एक खबर यह भी है कि इस कांफ्रेंस के बाद कईयों का भविष्य भी तय होगा. बेहतर काम का इनाम मिलेगा, वहीं लापरवाह अफसरों पर गाज गिरेगी. 

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