प्रतीक चौहान. रायपुर. IIT कानपुर में पढ़ाई की… टॉपर भी रहे, लेकिन लास्ट सैमेस्टर पूरा नहीं कर पाए. फिर बैंगलुरू में उस कंपनी में जॉब किया, जिन्होंने सबसे पहले कम्प्यूटर बनाया था. वहां भी जॉब छोड़ने के बाद पान ठेला शुरू किया. लेकिन वहां भी मन नहीं लगा, जिसके बाद ट्रक ड्राइवरी शुरू की. इन सब के बीच परिवार पीछे छूट सा गया. नौबत यहां तक आ गई कि आईआईटी में पढ़ाई के हुनर को देखते हुए जिस पिता ने अपनी बेटी का कन्यादान किया था, उस पिता को अपने अंतिम समय में अपनी बेटी से ये कहना पड़ा था-मुझसे गलती हो गई… मुझे माफ करना.

लेकिन इस बेटी (अब 4 बच्चों को सफल बनाने वाली मां) ने परिवार में इतने दुखों के बाद भी कभी अपने मायके में फोन नहीं किया और दुखों का रोना रोकर उनसे आर्थिक मदद नहीं मांगी और अपने दम पर अपने 4 बच्चों को पढ़ाया. इस परिवार ने वो भी दिन देखा, जब वे इलहाबाद से 24 घंटे से अधिक समय तक ट्रेन के लोकल डिब्बे में सफर के बाद भूख से बिलखते रायपुर पहुंचे थे तब उन्हें पता नहीं था कि उनकी आगे की जिंदगी यहां कैसी होगी. लेकिन संघर्ष से पीछे नहीं हटे. हम बात कर रहे है राजधानी रायपुर की एक और टीवी रिपोर्टर प्रिया पांडे की.

मैं पेट में थी, तब सड़क हादसा हुआ

प्रिया पांडे बताती है कि उनके पिता ने अपनी शुरुआती पढ़ाई आईआईटी से की. लेकिन पढ़ाई अधूरी रही. इन बातों पर भरोसा न करते हुए वे कहती है कि उनके गांव में परिवार वाले ऐसा कहते है कि किसी ने उनके पिता पर टोना-टोटका किया, जिससे उनकी पढ़ाई पूरी नहीं हुई. मूलतः उत्तर प्रदेश के सुलतानपुर का रहने वाला ये परिवार फिर बैंगलुरू शिफ्ट हुआ. जहां पापा ने वहां जॉब शुरू कि जिस कंपनी ने सबसे पहले कम्प्यूटर बनाया था. लेकिन फिर वो जॉब भी छोड़ दी.

इसके बाद न जाने क्या हुआ कि पापा ने उनके पान ठेला खोला. लेकिन जब वे मां की गर्भ में थी तो एक सड़क हादसा हुआ, जिसमें उनके पिता और मां दोनो घायल हो गए. इसके बाद वे पान दुकान भी पिता ने बंद कर दिया और फिर ट्रक ड्राइवरी का काम शुरू किया. लेकिन इसी बीच उनके पापा परिवार से दूर होते गए. लेकिन इसके बाद मां ने अपने संघर्ष से चारों बच्चों को पाला. हालांकि कुछ-कुछ दिनों में पापा तब जब भी घर आया करते थे वे अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा मां को देते थे जो वे घर संभालने में लगाया करती थीं.
इसी बीच प्रिया ने कभी टैली का काम किया, तो कही न्यूज पोस्ट करने का. लेकिन प्रिया के दोस्तों ने उनका पूरा साथ दिया और इस बात के लिए प्रेरित किया

मेहंदी भी लगाई
प्रिया पांडे बताती है कि एक समय वो भी आया जब उन्होंने मेहंदी भी लगाई. लेकिन संघर्ष करने से कभी पीछे नहीं हटी. धीरे-धीरे समय बितता चला गया और उनके जीवन से अंधेरों के बादल छटते चले गए और आज प्रिया बतौर टीवी रिपोर्टर अपनी पेहचान से अपने पूरे परिवार का नाम रौशन कर रही है. उनकी इस उपलब्धि से आज उनके माता-पिता दोनों गौरांवित है. मां के संघर्ष और उन्हें सफल बनाने में पूरा योगदान देने वाली मां श्रीमती पुष्पा पांडे का नाम प्रिया अपने नाम के साथ प्रिया पुष्पा पांडे लिखती है.

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