रायपुर. बस्तर की महिलाएं योजनाओं का लाभ लेकर आत्मनिर्भर बन रही हैं. ऐसे ही एक कहानी शांति की है, जिन्होंने महिलाओं का समूह बनाकर योजनाओं का लाभ लेकर वनोपज खरीद रहीं, इससे अच्छी आमदनी हो रही है. 2 साल में ही 4 लाख रुपए की आमदनी हुई है.

2 साल पहले तक बस्तर ब्लाॅक के दुरा गांव की रहने वाली शांति कश्यप को ये नहीं पता था कि वो अपने घर की खराब आर्थिक स्थिति को कैसे ठीक करेगी. शांति को ये पता था कि जंगलों में मिलने वाले वनोपजों से आर्थिक लाभ कमाया जा सकता है, लेकिन वो ऐसा कैसे करे, ये नहीं पता था. ऐसे में शांति को वन धन योजना का सहारा मिला और शांति ने अपने जैसी कुछ महिलाओं को साथ जोड़कर तेलगिन माता महिला स्वसहायता समूह खड़ा कर दिया. शांति और समूह की महिलाएं अब महुआ बीज और करंज तेल को समर्थन मूल्य पर खरीदती हैं और अपने प्रसंस्करण केंद्र के माध्यम से ये इनका तेल निकालकर बाजार में बेचती हैं.


इमली से जुड़े उत्पादों के प्रसंस्करण का काम भी शुरू
महुआ बीज का तेल दीपक जलाने के काम आता है, जबकि करंज का तेल औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. तेलगिन माता महिला स्वसहायता समूह का ये प्रोडक्ट क्षेत्र में प्रसिद्ध है और इसकी मांग भी बढ़ती जा रही है. यही वजह है कि दो वर्षों के भीतर शांति और समूह की महिला सदस्यों ने साढ़े चार लाख रुपए का मुनाफा कमाया है. बाजार में बढ़ती मांग और शासन की तरफ से 65 लघु वनोपजों पर दिए जा रहे समर्थन मूल्य तथा वन धन योजना के मिश्रण से शांति अपने उत्पादन को बढ़ा रही हैं और आने वाले दिनों में अपने समूह को भी बड़ा करने का विचार कर रही. इसके लिए शांति कश्यप ने इमली से जुड़े उत्पादों के प्रसंस्करण का काम भी शुरू कर दिया है.